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उदयपुर

रणबांकुरों की धरा : राजस्थान के इस लाल को हर हाथ देता है सलामी, इसकी याद खड़े कर देती है रोंगटे

वो तूफां था जो तूफां में जाकर मिल गया, कहानी छोड़ गया उम्र भर सिसकने की।

उदयपुरJan 25, 2018 / 05:32 pm

bhuvanesh pandya

abhinav nagori
भुुुुवनेश पंड्या/उदयपुर. आज कहानी शहीद अभिनव नागोरी की है, जिस उम्र में युवा कॉलेज से निकल मौज-मस्ती संग भविष्य का ताना-बाना बुनने में व्यस्त होते हैं, उस कच्ची उम्र में वह भारत माता की ममता भरी गोद में समा गया। उदयपुर का बेटा अभिनव 24 मार्च 2015 को अपने शहर, अपने दोस्त और अपने परिवार को हमेशा के लिए छोड़ गया। केवल 24 वर्ष की अल्पायु में भारतीय नौ सेना में पायलट पद तक पहुंचे अभिनव को गणतंत्र दिवस पर पत्रिका का नमन।
आंसुओं से बहती धारा में भी छलक रहा था चेहरे पर रौब : अभिनव के पिता धर्मचन्द नागौरी की आंखों से अश्रुधारा बह रही थी, लेकिन चेहरे पर पूरा रौब था कि बेटा देश के काम आ गया। नागोरी ने बताया कि आज भी उनका बेटा उतना ही पास है, जितना पहले था। ऐसा लगता है कि जब किसी बात के लिए उसकी जरूरत होती है, वह अप्रत्यक्ष रूप से आकर समझा देता है। पिता ने बताया कि याद में आंसुओं के अलावा क्या है, जिसका एक ही बेटा हो और वह चला जाए तो स्वाभाविक है कि मानसिक पीड़ा रहती है। उस संताप को सहना आसान नहीं, अभिव्यक्त करना भी ठीक नहीं लगता। बुढ़ापे की लकड़ी चली गई, लेकिन पीछे इसकी याद रह गई हैं। नागोरी ने बताया कि वह भी अच्छे पद पर रहे हैं, लेकिन शहीद बेटे के नाम से जाने जाने पर उनका सीना चौड़ा हो जाता है। मरते तो बहुत है, लेकिन वह कम उम्र में जो काम कर चला गया, उसका कोई सानी नहीं है। हमें इस बात पर गर्व होता है, जो प्रसिद्धि उसने हमें दिलाई उसमें मेरा नाम गौण होकर रह गया।
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उन्होंने कहा कि सेना में पायलट बनना आसान नहीं होता, देश के लिए ईश्वर ने जो काम उसे दिया था वह उसने पूरा किया। उसकी सोच खास थी,परिवार में छोटी-छोटी बातें होती थी, उस पर वह ध्यान नहीं देता था। वह स्वावलम्बी था, अपना हर काम समय पर खुद करना, उसकी आदत में शामिल था। वह हमें हर बात पर गाइड करता था, आज भी ऐसा लगता है, जैसे हर पल हमारे साथ है। मां सुशीला नागोरी वर्तमान में जिला शिक्षा अधिकारी के पद पर कार्यरत है। अभिनव की बात पर उनके बोल नहीं निकलते, आखिर मां कभी बेटे को अपने आंचल से दूर करती है भला।

बस सम्मान और सहयोग मिल जाए
नागोरी ने बताया कि मांगना अच्छा नहीं होता, सरकार की कुछ ड्यूटी रहती है कि शहीद के परिवार के हाल कैसे हैं, यह देखना चाहिए। शहीद के परिजनों को हर जगह सम्मान और सहयोग मिलना ही चाहिए। सरकार की ओर से हाउसिंग बोर्ड का मकान देने की योजना शहीद के लिए है, जुलाई 15 में आवेदन के बाद अभी तक कुछ नहीं हो पाया। मुझे जो सहायतार्थ राशि मिली थी, उसे मैंने शिक्षा क्षेत्र में जनकल्याण के लिए लगाया है। 27 मार्च 2015 को तीन वर्ष पूरे हो जाएंगे, परन्तु काम नहीं हुआ। केवल कागजी काम चल रहे हैं।

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