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केस 2 चंपा कॉलोनी की ही लक्ष्मीबाई के घर पहुंच कर शौचालय के बारे में पूछा तो वह बोली कि निगम वालों ने कहा था-बन जाएगा लेकिन बना नहीं। बोले, शौच तो खुले में ही जाते हैं, करें क्या?
केस 2 चंपा कॉलोनी की ही लक्ष्मीबाई के घर पहुंच कर शौचालय के बारे में पूछा तो वह बोली कि निगम वालों ने कहा था-बन जाएगा लेकिन बना नहीं। बोले, शौच तो खुले में ही जाते हैं, करें क्या?
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केस 3 एकलव्य कॉलोनी के लीला/हकमा का भी नाम चयनितों की सूची में था। आज तक उनके घर में शौचालय नहीं बना सका। परिजनों की मजबूरी है पिछोला किनारे शौचनिवृत्ति के लिए जाना।
केस 3 एकलव्य कॉलोनी के लीला/हकमा का भी नाम चयनितों की सूची में था। आज तक उनके घर में शौचालय नहीं बना सका। परिजनों की मजबूरी है पिछोला किनारे शौचनिवृत्ति के लिए जाना।
मुकेश हिंंगड़/ उदयपुर . खुले में शौच के लिए नहीं जाने का संदेश देने वालों ने घर पर शौचालय नहीं होने पर भरोसा दिलाया कि बस, आप फॉर्म भरिए आपके शौचालय बन जाएगा। इस पर फॉर्म भर दिया लेकिन नगर निगम ने वापस आकर नहीं पूछा। ODF ओडीएफ का सर्टिफिकेट लेते समय भले ही यह कह दिया कि यहां खुले में शौच के लिए कोई नहीं जाता है लेकिन सच यह है कि कई शहरवासी तो खुले में ही शौच के लिए जाते है, वह भी पिछोला झील के पेटे में।
यह कहना है मल्लातलाई क्षेत्र में चंपा कॉलोनी में रहने वालों का। खुले में शौच निवृत्ति को मजबूर परिवारों का कहना है कि उन सबका नाम चयनितों की सूची में था लेकिन शौचालय नहीं बना। सूची में करीब 13 चयनितों के नाम थे। जुमली बाई के घर बहुत पहले निगम के कार्मिक आए और बोले कि अपने स्तर पर प्लेटफॉर्म बना लें। इस पर जुमली ने वह भी बना दिया लेकिन शौचालय आज तक नहीं बना। चयनित परिवारों के लोग कॉलोनी से सटी पिछोला के किनारे शौच कर रहे हैं। जहां एक ओर, खुले में शौच मुक्त शहर के तमगे की पोल इस कॉलोनी में खुल रही, वहीं पिछोला झील को प्रदूषित किया जा रहा है।
ओडीएफ का प्रमाण पत्र मिला सब भूले नगर निगम को 2 अगस्त 2017 को ओपन डेफिकेसन फ्री (ओडीएफ) घोषित करने का प्रमाण पत्र मिला था। शहर के ओडीएफ घोषित होने पर निगम के जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों ने खुशी मनाई थी लेकिन चयनित परिवारों के घरों में अब तक शौचालय नहीं बन पाए हैं।
पत्रिका व्यू…..
पर्यटन नगरी झीलों की नगरी को ओडीएफ का दर्जा मिले दो वर्ष पूरे होने जा रहे हैं लेकिन खुले में शौच जाने वाले शहर की हर दिशा में दिख जाएंगे। शहर की चम्पा कॉलोनी तो एक उदाहरण है, ऐसी कई बस्तियां व कॉलोनियां है जहां पर खुले में शौच जाने वालों की लाइन लगती है। लोग जागरूक भी हुए हैं लेकिन वे स्पष्ट कहते हैं कि घर में शौचालय नहीं बना तो उनके पास विकल्प क्या है। ये जागरूक लोग सूची लेकर शौचालय बनवाने के लिए नगर निगम के चक्कर काट रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। अफसरों ने तो मान बैठे हैं कि शहर ओडीएफ घोषित हो चुका है, अब किस बात की चिंता। जमीनी स्तर पर स्थितियां बहुत खराब है। जरूरत इस बात की है कि नगर निगम के अफसरों को ओडीएफ की फाइलों को टटोल कर बकाया काम जल्द पूरे करने चाहिए, ताकि इस शहर को सुंदर बनाया रखा जा सके।
पर्यटन नगरी झीलों की नगरी को ओडीएफ का दर्जा मिले दो वर्ष पूरे होने जा रहे हैं लेकिन खुले में शौच जाने वाले शहर की हर दिशा में दिख जाएंगे। शहर की चम्पा कॉलोनी तो एक उदाहरण है, ऐसी कई बस्तियां व कॉलोनियां है जहां पर खुले में शौच जाने वालों की लाइन लगती है। लोग जागरूक भी हुए हैं लेकिन वे स्पष्ट कहते हैं कि घर में शौचालय नहीं बना तो उनके पास विकल्प क्या है। ये जागरूक लोग सूची लेकर शौचालय बनवाने के लिए नगर निगम के चक्कर काट रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। अफसरों ने तो मान बैठे हैं कि शहर ओडीएफ घोषित हो चुका है, अब किस बात की चिंता। जमीनी स्तर पर स्थितियां बहुत खराब है। जरूरत इस बात की है कि नगर निगम के अफसरों को ओडीएफ की फाइलों को टटोल कर बकाया काम जल्द पूरे करने चाहिए, ताकि इस शहर को सुंदर बनाया रखा जा सके।