
उदयपुर . तालाब की सुरक्षा का घेरा बने बबूल के पेड़ और जब सारस (क्रेन) की तेज आवाज कानों में पड़े मतलब यह है कि किशन करेरी तालाब आ गया है। पक्षियों से प्रेम रखने वाले आगुंतकों के लिए तो यह आवाज संकेत के रूप में है, जिससे उन्हें पता चल जाता है कि मुकाम आ गया है।
ऐसा ही अहसास है वेटलैंड किशन करेरी का। चित्तौडगढ़़ जिले की डूंगला तहसील में आने वाले इस गांव का भी जाना-माना नाम है। उदयपुर से करीब 84 किलोमीटर दूरी स्थित किशन करेरी में स्थित तालाब की पाल करीब-करीब कच्ची हैं परन्तु किसी जगह पर पक्की भी बनी है। पाल के किनारे देशी बबूल बहुतायत में है जो की तालाब के लिए सुरक्षा का घेरे के रूप में है।
इसलिए नाम पड़ा किशन करेरी: पक्षीविद् प्रदीप सुखवाल बताते है कि किशन करेरी को लेकर ऐसी मान्यता है कि इसी तालाब से भगवान द्वारकाधीश की मूर्ति निकाली गई थी। मूर्ति को भव्य मंदिर में स्थापित किया गया और इस गांव का नामकरण किशन करेरी भी इसी आस्था के चलते रखा गया। वे बताते हैं कि बताया जाता है कि वहां स्थित प्राचीन भव्य बावड़ी का निर्माण करवाने वाले संत ने समाधि ली थी जो अभी भी है।
कई प्रजातियों के कछुए भी: मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) राहुल भटनागर बताते हैं कि इस तालाब पर कई प्रजातियों के कछुए भी देखे जा सकते है। वे बताते हैं कि रूढि़ शैल डक, ग्रे लेग गूज, बार हेडेड गूज, सारस क्रेन, पेन्टेड स्टॉर्क, स्पूनबिल, ग्रे हेरोन, परपल हैरोन आदि विभिन्न प्रजातियों के पक्षी वहां देखे जा सकते है। इस तालाब के किनारे विभिन्न प्रकार की औषधियां भी पाई जाती हैं। स्थानीय लोंगो का कहना है कि रुद्रवन्ती नामक औषधि महत्वपूर्ण है, जो महिलाओं के काम ? आती है। किशन करेरी तालाब पर जरूरत के अनुसार पक्षी मित्रों द्वारा घोड़े पर पक्षी दर्शन की व्यवस्था भी वहां उपलब्ध करवाई जाती है। वहां पक्षी मित्रों द्वारा दो टापुओं का निर्माण करवाया गया है, साथ ही सघन पौधरोपण कर नियमित देखभाल भी की जा रही है।
Published on:
20 Dec 2017 01:40 pm
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