
Udaipur News : माता-पिता को भगवान का दूसरा स्वरूप माना गया है, लेकिन अगर बच्चों के सिर से उनका साया उठ जाता है तो भगवान ही उनसे रूठ जाता है। पढ़ने और खेलने की उम्र में उन पर जिम्मेदारियों का बोझ आ जाता है। कुछ ऐसा ही वाकया रुण्डेड़ा कस्बे के भीलों की कुड़िया में हुआ। करीब दो वर्ष यहां निवासरत दम्पती बाबूलाल भील (34) एवं उसकी पत्नी कन्नी बाई (33) की बीमारी से मौत हो गई। इसके बाद उनके तीन बच्चे प्रताप कुमारी (15), किशन (7) एवं 3 वर्ष का राहुल अनाथ हो गए।
माता-पिता के अलावा इनके घर में और कोई नहीं है। ऐसे में उनकी मृत्यु के बाद मासूम प्रताप कुमारी भील को पढ़ाई छोड़कर परिवार की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी। अब वह मजदूरी कर जैसे तैसे परिवार का गुजारा चला रही है। कहने को तो सरकार की ओर से ऐसे बच्चों के लिए अनेक योजनाएं हैं, लेकिन इस बेसहारा नाबालिग परिवार को सरकार व प्रशासन की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही। ये उज्ज्वला, पालनहार जैसी सभी योजनाओं से वंचित हैं। तीनों छोटे बच्चे हैं और समझ का भी अभाव है। इनके पास न मोबाइल फोन है और न ही बैंक में ख़ाता। डॉक्यूमेंट के नाम पर इनके पास फटा हुआ राशन कार्ड एवं प्रताप और किशन के आधार कार्ड है। वहीं राहुल का न तो आधार कार्ड है और न ही राशन कार्ड में नाम।
उनके एक बीघा जमीन है। जब पिता बीमार हुए, तब गिरवी रखकर 20 हजार रुपए लाए थे। अब जमीन छुड़वाने के रुपए नहीं हैं। इसलिए प्रताप अन्य लोगों के खेतों में मजदूरी है।
प्रताप कुमारी सुबह उठकर हेंडपम्प से पानी लाती है और खाना बनाकर अपने दोनों भाइयों को खाना खिलाती है। फिर खुद टिफिन लेकर मजदूरी को जाती है। उसके जाने के बाद 7 वर्ष का किशन अपने छोटे भाई 3 वर्ष के राहुल की देखभाल करता है। तीनों में से कोई स्कूल नहीं जाता है, क्योंकि प्रताप कुमारी अगर स्कूल जाए तो परिवार कैसे चलाएं। ऐसे ही अगर किशन स्कूल जाए तो राहुल की देखभाल कौन करें।
प्रताप कुमारी ने बताया कि पिता ने बिजली का कनेक्शन करवाया था, वे थे तब तक बल्ब जलाते थे, लेकिन उनकी मौत के बाद बिजली का बिल हम नहीं भर पाए। तब से हमने लाइट जलाना बंद कर दिया। अगर लाइट चालू करें तो बिल कहां से दें ? मजदूरी से मिलता है, उससे घर खर्चा भी पूरा नहीं चल पा रहा है। अभी तक 1700 रुपए का बिल बकाया है।
प्रताप कुमारी ने बताया कि हम तीनों अंधेरा होने के बाद रात को डरते हैं, इसलिए हमारे पिता के काका हमारे यहां सोते हैं। उनके परिवार में भी कोई नहीं है और उनके दोनों हाथ टूटे हुए हैं। जिसके कारण कोई काम नहीं कर सकते, इसलिए मैं खाना बनाती हूं तो उन्हें भी खिलाती हूं। वो हमारे आसरे और हम उनके आसरे जी रहे हैं।
Published on:
21 Feb 2024 04:17 pm
बड़ी खबरें
View Allउदयपुर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
