4साल बाद छलक पड़ा दर्द… सुविवि में में जब एबीवीपी से टिकट कटने पर छात्र संघर्ष समिति (सीएसएस) बना रवि शर्मा चुनाव लड़े और भारी मतों से जीते इसके बाद से यह संगठन सुविवि की राजनीति में पूरी ताकत से सक्रिय रहा और कई अध्यक्ष जीताए। २०१५ में सोनू अहारी जब एबीवीपी से टिकट मिला तब सीएसएस गौरव शर्मा को लड़ाना चाहती लेकिन राजनीतिक दबाव में सीएसएस का एबीवीपी में समझौते के तहत विलय कर दिया गया। इसके बाद ४ साल में सीएसएस विचारधारा के प्रत्याशी को एबीवीपी ने टिकट नहीं दिया। इस बार मोहित शर्मा का टिकट कटने से सीएसएस का खेमा सक्रिय हो गया और फिर से अपनी ताकत दिखाने के लिए बगावत कर एनएसयूआई का झंडा पकड़ लिया।
भीतरघात दोनों तरफ… एबीवीपी पदाधिकारी सोहन डांगी मोहित का टिकट कटने पर खुलकर विरोध जता चुके है वहीं कुछ एबीवीपी के कार्यकर्ता भी अंदरखाने मोहित को समर्थन दे सकते है। कॉलेज राजनीति में बंटे छात्रगुट भी गुपचुप सपोर्ट कर सकते है लेकिन इधर एनएसयूआई में भी निपटाने वाले सक्रिय है। एनएसयूआई के पास मजबूत प्रत्याशी नहीं था उन्हे उसकी तलाश थी जो पूरी हो गई। जमीनी स्तर पर संगठन की सक्रियता कम नजर आ रही है जो खुलकर लगे है उन्हे एबीवीपी अपनी तरफ मिलाने में लगी है जो भीतरघात का संकेत है।
एबीवीपी को बागी पड़ चुके है भारी… सुविवि की छात्रसंघ राजनीति में एबीवीपी से नाराज होकर बगावत करने वाले प्रत्याशी भारी पड़ चुके है। लेकिन इस बार का समीकरण क्या होगा यह कहा नहीं जा सकता है। २०१४-१५ में हिमांशु चौधरी का एबीवीपी से टिकट कटने पर एनएसयूआई ने टिकट दिया और वह जीत गए इसके बाद २०१६-१७ में मयूरध्वजसिंह को भी एबीवीपी ने नकार दिया तो वह निर्दलय उतकर चुनाव जीत गए।
इनका कहना…. मैने संगठन में पूरी निष्ठा से काम किया लेकिन उसका ईनाम टिकट काटकर उसे दे दिया जिसने पहले संगठन पदाधिकारियों पर टिकट बेचने के आरोप लगा खिलाफ काम किया था। एनएसयूआई का आभारी हूं जिन्होंने जमीनी कार्यकर्ता को पहचान टिकट दिया।
मोहित शर्मा, अध्यक्ष प्रत्याशी एनएसयूआई सुविवि