नगर निगम की ओर से इस पाल के सामने इन 9 मूर्तियों के प्रोजेक्ट पर लम्बे समय से काम चल रहा है लेकिन मामला हाईकोर्ट में चला गया तो काम अटक गया था, इसके बाद हाईकोर्ट के निर्देशों के तहत काम शुरू हुआ, वहां मूर्तियों लगने में वैसे समय लगेगा। गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया कहते है कि झीलों में नौकायन करने वाले ेपर्यटकों तथा फतहसागर आने वालों को विभूतियों के दर्शन हो, वे इनसे प्रेरणा ले, उनके बारे में जाने-समझे तथा पार्क के नाम की भी सार्थकता होगी। महापौर चन्द्रसिंह कोठारी कहते है कि यह कार्य चल रहा है, अभी हाईकोर्ट ने जो निर्देश दिए उसको पूरा किया जा रहा है, उसके बाद मूर्तियां स्थापित कर दी जाएगी।
9 पेडेस्टल बन चुके हैंं
– 9 फीट प्रत्येक प्रतिमा की ऊंचाई है
– 4 फीट का पेडेस्टल है
– 13 फीट कुल लम्बी होगी मूर्तियां
– 45 लाख रुपए प्रतिमा पर होगा खर्च
– 50 लाख प्रोजेक्ट पर खर्च होंगे
इनकी प्रतिमाएं लगेगी
1. राणा सांगा : सांगा का पूरा नाम महाराणा संग्रामसिंह था। राणा सांगा ने मेवाड़ में 1509 से 1527 तक शासन किया। राणा सांगा ने विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध सभी को एकजुट किया। राणा सांगा सही मायनों में एक बहादुर योद्धा व शासक थे जो अपनी वीरता और उदारता के लिये प्रसिद्ध हुए।
9 पेडेस्टल बन चुके हैंं
– 9 फीट प्रत्येक प्रतिमा की ऊंचाई है
– 4 फीट का पेडेस्टल है
– 13 फीट कुल लम्बी होगी मूर्तियां
– 45 लाख रुपए प्रतिमा पर होगा खर्च
– 50 लाख प्रोजेक्ट पर खर्च होंगे
इनकी प्रतिमाएं लगेगी
1. राणा सांगा : सांगा का पूरा नाम महाराणा संग्रामसिंह था। राणा सांगा ने मेवाड़ में 1509 से 1527 तक शासन किया। राणा सांगा ने विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध सभी को एकजुट किया। राणा सांगा सही मायनों में एक बहादुर योद्धा व शासक थे जो अपनी वीरता और उदारता के लिये प्रसिद्ध हुए।
2. राणा कुंभा : मेवाड़ के महाराणा कुंभा ने कई किलो को जीता। उन्होंने दिल्ली के सुलतान सैयद मुहम्मद शाह व गुजरात के सुल्तान अहमद शाह को भी कई युद्धों में हराया। बताते है कि मेवाड़ में निर्मित 84 दुर्गों में 32 का निर्माण महाराणा कुंभा ने कराया।
3. बप्पारावल : वीर योद्धा बप्पा रावल ने सिंध तक आक्रमण कर अरब सेनाओं को खदेड़ा था। बप्पा बहुत ही शक्तिशाली शासक थे। कई हतिहासकार इस बात को स्वीकारते है कि रावलपिंडी का नामकरण बप्पा रावल के नाम पर हुआ था।
4. रानी पद्मनी : पद्मनी चित्तौड़ की रानी थी। इन्हीं के नाम पर पदमावत फिल्म बनाई गई है। रानी पद्मिनी बहुत खूबसूरत थी और उनकी खूबसूरती पर एक दिन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की बुरी नजर पड़ गई। अलाउद्दीन किसी भी कीमत पर रानी पद्मिनी को हासिल करना चाहता था, इसलिए उसने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। रानी पद्मिनी ने आग में कूदकर जान दे दी लेकिन अपनी आन-बान पर आँच नहीं आने दी।
5. राणा हमीर सिंह : राणा हम्मीर मेवाड़ के एक योद्धा व शासक थे।
इन्होंने चित्तौडग़ढ़ जिले में स्थित चित्तौडग़ढ़ में अन्नपूर्णा माता के मन्दिर का निर्माण भी करवाया था। 6. विजय सिंह पथिक : विजय सिंह पथिक ने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ सक्रिय भाग लिया, उन्होंने राजस्थान में स्वतंत्रता आंदोलन की मशाल जलाई। पथिक ने राजस्थान सेवा संघ के माध्यम से बेंगू, पारसोली, भींडर, बांसी और उदयपुर में शक्तिशाली आन्दोलन व बिजौलिया में किसान आन्दोलन किया।
इन्होंने चित्तौडग़ढ़ जिले में स्थित चित्तौडग़ढ़ में अन्नपूर्णा माता के मन्दिर का निर्माण भी करवाया था। 6. विजय सिंह पथिक : विजय सिंह पथिक ने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ सक्रिय भाग लिया, उन्होंने राजस्थान में स्वतंत्रता आंदोलन की मशाल जलाई। पथिक ने राजस्थान सेवा संघ के माध्यम से बेंगू, पारसोली, भींडर, बांसी और उदयपुर में शक्तिशाली आन्दोलन व बिजौलिया में किसान आन्दोलन किया।
7. गोविंद गुरु : बांसवाड़ा जिले की आनंदपुरी पंचायत समिति की आमलिया ग्राम पंचायत अंतर्गत आंबादरा में एक हजार फीट ऊंची पहाड़ी है, जो मानगढ़ धाम के रूप में जानी जाती है। वर्ष 1913 में गोविन्द गुरु के नेतृत्व में अंग्रेजों से स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते हुए करीब 1500 आदिवासी शहीद हुए थे। गुरु गोविन्द का लक्ष्य था, देश की आजादी और व्यसनमुक्त, मेहनतकश समाज की स्थापना।
8. राजसिंह : राज सिंह प्रथम मेवाड़ के सिसाोदिया राजवंश के शासक (राज्यकाल 1652 – 1680) थे। वे जगत सिंह प्रथम के पुत्र थे। उन्होने औरंगजेब का अनेकों बार विरोध किया। राजनगर (कांकरोली / राजसमंद) के राजा महाराणा राज सिंह जी का जन्म 24 सितंबर 1629 को हुआ। उनके पिता महाराणा जगत सिंह और मां महारानी मेडतणी थीं। मात्र 23 वर्ष की छोटी उम्र में उनका राज्याभिषेक हुआ था।
9. केसरी सिंह बारहठ : केसरी सिंह बारहठ एक कवि और स्वतंत्रता सैनानी थे। वो राजस्थान की चारण जाति के थे। उनके पुत्र प्रतापसिंह बारहठ भी भारतीय क्रान्तिकारी थे। उनका जन्म 21 नवम्बर 1872 को शाहपुरा रियासत के देवपुरा नामक गांव में हुआ।