स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में पुराने शहर की पाइप-लाइनों को बदलने का प्रस्ताव है। शहर में 90 किलोमीटर की लाइनों को ही बदला जाएगा लेकिन इसके बावजूद 125 से 150 किलोमीटर की लाइनें ऐसी होंगी जिनको नहीं बदला जाएगा।
पाइप लाइनों के रखरखाव के लिए आपूर्ति के दौरान की-मैन, एईएन, जेईएन आदि सप्लाई वाले क्षेत्र में घूमते हैं। बाहरी लिकेज तो पकड़ा जा सकता है, लेकिन भूमिगत रिसाव को नहीं पकड़ा जा सकता।
भूमिगत रिसाव को पकडऩे के लिए कुछ वर्षों पूर्व जलदाय को लीक डिटेक्शन इंस्ट्रूमेंट मिला था लेकिन यह इंस्ट्रूमेंट संतोषप्रद काम नहीं कर सका। जलदाय कर्मचारियों ने उपयोग नहीं करते हुए इसे लौटा दिया।
रिसाव को पता लगाने के लिए जलदाय विभाग को स्मार्ट मीटर लगाने होंगे। इसके बाद मीटर में आने वाली रिडिंग और सप्लाई की रिडिंग दोनों को घटने से छीजत का आकलन हो पाएगा।
पाइपलाइन को इस तरह किया जाता है स्केन 1. लॉगर्स ए एवं बी
जिस दूरी में लीकेज ढूंढना है, उसके दोनों छोर पर एक—एक लॉगर्स उपकरण लगाया गया। पहला लॉगर उपकरण शुरुआती घर के मीटर के पास और दूसरा अंतिम छोर के घर में लगे मीटर पर। इसके नीचे चुम्बक लगी होती है, जिससे ये मीटर के पास पाइप पर चिपक जाता है। पाइप में से पानी फ्लो होता है तो इसमें भी रीडिंग शुरू होती है।
2. मेजरिंग व्हील
3 फीट लम्बाई के इस उपकरण के जरिए दूरी नापी जाती है। इसमें व्हील लगा होता है और ऊपर दूरी नापने का यंत्र। जहां पहला लॉगर लगाया, वहां से इसे जमीन पर रखकर आगे बढ़ाते हैं। जहां से पेयजल लाइन गुजर रही है, उसके ऊपर से ले जाया जाता है।
3. एक्वास्केन
लीकेज ढूंढने में इस उपकरण की मुख्य भूमिका है। दोनो लॉगर उपकरण के बीच लीकेज होता है या फिर पेयजल चोरी के लिए अलग से लाइन डाली गई है, उसकी जानकारी इसके स्क्रीन पर आ जाती है। खास यह है कि मुख्य लाइन में से घरों में कनेक्शन जा रहा है, वहां स्क्रीन पर हलचल आती है।