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रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा से पहले क्यों महत्वपूर्ण है अधिवास, आज से प्रक्रिया शुरू

ram mandir pran pratishtha- प्राण प्रतिष्ठा से पहले 11 अधिवास की प्रक्रिया करने से विग्रह को आकर्षक, ऊर्जावान और विशिष्ट आभा मिलेगी...।

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ललित सक्सेना

अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर में 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा प्रक्रिया में अधिवास भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। आमतौर पर प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव में 7 अधिवास होते हैं, न्यूनतम तीन अधिवास अभ्यास में होते हैं। अयोध्या में गुरुवार से 21 जनवरी के बीच 11 अधिवास होंगे। पंचमहाभूतों अग्नि, जल, वायु, आकाश, धरती की विशिष्ट ऊर्जा के साथ अधिवासों के माध्यम से सनातन संस्कृति के साथ संपदा, समृद्धि व उन्नति की राह प्रशस्त की जाएगी। मूर्ति को शक्तियों से ओतप्रोत करने में अधिवास सहायक होता है। इससे मूर्ति का विग्रह आकर्षक, ऊर्जावान तथा विशिष्ट आभा का दिखाई देता है।

राम मंदिर में होने वाले 11 अधिवास 18 जनवरी: जलाधिवास, गंधाधिवास 19 जनवरी: औषधाधिवास, केसराधिवास, घृताधिवास, धान्याधिवास 20 जनवरी: शर्कराधिवास, फलाधिवास, पुष्पाधिवास 21 जनवरी: मध्याधिवास, शैयाधिवास

पंचमहाभूतों के संतुलन की प्रक्रिया

वैदिक चिंतन में पंच महाभूत या पंचदेव व्यवस्था सामने आती है। इन्हीं नियमों का प्रभाव दिव्य ऊर्जा के रूप में अवतारी पुरुष या शक्ति के विभिन्न अवतार के रूप में पौराणिक रूप से विद्यमान हैं। विशिष्ट शक्तियों के संतुलन के लिए अधिवास कराते हैं।

विभिन्न अधिवास के विशिष्ट प्रभाव

सभी वस्तुओं का अपना विशिष्ट प्रभाव है। विभिन्न संकल्पों के माध्यम से अलग- अलग औषधियों के स्नान तथा सुगंधित द्रव्य, अन्न, फल, पुष्प, दूध, दही, घी, शहद, शकर, आदि से मूर्ति को प्रतिष्ठित करते हुए उनका प्रभाव लिया जाता है।

किस अधिवास का क्या फल

अन्नाधिवास (अन्न) : पृथ्वी कृषि से परिपूर्ण रहती है, जिससे संसार का अनुक्रम बढ़ सके। फलाधिवास : सृष्टि में कर्म फल स्थापित है अर्थात जो अर्पण करेंगे, उसका प्रतिरूप हमें प्राप्त होगा।
पुष्पाधिवास : पुष्प से गेरने पर जीवन में प्रतिष्ठा, संपदा, समृद्धि, उन्नति और यौवन प्राप्त होता है।
दुधादिवास (दूध): मूर्ति को दूध से परिपूरित करने पर परिवार या राष्ट्र में पशु संपदा का लाभ प्राप्त होता है।
दधिवास (दही) : चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति तथा संबंधित आयाम में उपलब्धि होती है।
घृताधिवास (घी) : घी से मूर्ति को गेरने पर संपूर्ण सनातन संस्कृति को पोषण होता है। उन्नति का प्रादुर्भाव होता है।
शहदाधिवास (शहद) : शहद से गेरने पर प्राकृतिक संतुलन, स्वास्थ्य व समृद्धि का राष्ट्रीय अनुक्रमणीय लाभ होता है।
शर्कराधिवास (शक्कर): यह करने से शांति समर्पण और सहिष्णुता की प्राप्ति होती है।
रत्नाधिवास (रत्न): रत्न से मूर्ति गेरने पर आर्थिक प्रगति, उन्नति आदि की प्राप्ति होती है।

धर्मशास्त्रीय मान्यता अनुसार विधिवत प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति के दर्शन से श्रद्धालु को गृहस्थ जीवन में आ रही बाधाओं के निराकरण की ऊर्जा प्राप्त होती है, नया मार्ग मिलता है। हालांकि सकाम और निष्काम दोनों दर्शन और भक्ति की बात कही गई है। संन्यासी निष्काम कर्म के संदर्भ में है जबकि गृहस्थ सकाम कर्म व फल की बात करते हैं। दोनों के लिए प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति के दर्शन कल्याणकारी माने जाते हैं।
-पंडित अमर डब्बावाला, ज्योतिषाचार्य