वर्ष में एक ही बार लगती है हल्दी
आशीष पुजारी ने बताया कि मान्यतानुसार भगवान महाकाल को हल्दी अर्पित नहीं की जाती है। दरअसल हल्दी स्त्री के सौंदर्य प्रसाधन में प्रयोग होती है। इसके अलावा हल्दी की तासीर गरम होती है। महाकाल को शीतल (ठंडे) पदार्थ अर्पित किए जाते हैं। ऐसे में सिर्फ वर्ष में एक बार ही शिवनवरात्रि के दौरान जिस तरह विवाह में दूल्हे को हल्दी लगाई जाती है, उसी प्रकार भगवान महाकाल को हल्दी लगाई जाती है। इसके साथ ही केसर, चंदन, इत्र और अन्य सुगंधित पदार्थ का उबटन लगाया जाता है।
शिव नवरात्रि में ऐसे होते हैं शृंगार
शिव नवरात्रि में प्रतिदिन शाम के समय बाबा महाकाल का अनूठा शृंगार किया जाता है। यह क्रम 5 फरवरी से आरंभ होगा। हल्दी, चंदन, सुगंधित उबटन स्नान के बाद राजा महाकाल को दूल्हा बनाया जाता है। महाकाल को कटरा, मेखला, दुपट्टा, मुकुट, मुंडमाल, वस्त्र-आभूषण, फलों की माला, भांग, धतूरा, आंकडे के पुष्प, चांदी का छत्र आदि से शृंगारित किया जाता है।
इसलिए किए जाते हैं विविध शृंगार
बारह ज्योतिर्लिंगों में से केवल महाकाल ही ऐसा मंदिर है, जहां नौ दिनों तक बाबा को दूल्हा स्वरूप में सजाया जाता है। प्राचीन समय में राजा-महाराजा जिस प्रकार वेशभूषा धारण किया करते थे, उसी परंपरानुसार बाबा महाकाल को प्रतिदिन अलग-अलग स्वरूपों में सजाया जाता है।
शृंगार और उसकी विशेषता
शेषनाग – पांच मुख वाले शेषनाग का मुघौटा धारण कराया जाता है।
घटाटोप – शिव की विकराल जटाओं से घटाएं छा गई थीं, वही दृश्य।
छबीना- भगवान महाकाल का अतिमनभावन स्वरूप।
होलकर – राजा-महाराजा की परंपरा को दर्शाया जाता है।
मनमहेश- मन को मोहने वाली छवि के दर्शन।
उमामहेश- माता पार्वती और भगवान शिव के एकसाथ दर्शन।
शिव तांडव- तांडव स्वरूप को दर्शाता शिव का यह रूप।
१३ फरवरी को महाशिवरात्रि पर्व – इस दिन महाकाल निराकार और साकार स्वरूप में दर्शन देंगे।
१४ फरवरी को सप्तधान व सेहरा दर्शन – महाकाल को सात प्रकार का धान्य अर्पण कर सवा क्विंटल फल और फूलों का सेहरा बांधा जाता है। इसी दिन दोपहर में 12 बजे भस्म आरती होती है, जो वर्ष में एक बार ही होती है। बाकी दिनों में तड़के 4 बजे होती है।