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बेटे की सुरक्षा पर न्यौछावर किए खुशियों के पल
पिछले वर्ष कोरोना महामारी की दस्तक के साथ ही जिला अस्पताल के युवा मेडिकल ऑफिसर डॉ रौनक एलची ने आरआरटी (रेपिड रिस्पोंस टीम) प्रभारी की प्रमुख जिम्मेदारी संभाल ली थी। तब उन्हें पिता बनने का सुख मिले कुछ महीने ही हुए थे। एक ओर डॉक्टर होने की जिम्मेदारी वहीं दूसरी ओर बेटे को सीने से लगाने के लिए उमड़ती भावनाएं। रौनक जानते थे बेटे कबीर को बार-बार देख वे उसे गोद में लेने से ज्यादा देर तक खुद को नहीं रोक सकेंगे। बेटे के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए उन्होंने अप्रेल 2020 में घर पर रहना छोड़ दिया। वे करीब दो महीने तक होटल में रहे। बीच-बीच में जब बेटे और परिवार से मिलने के लिए मन तड़पता तो वे कुछ समय के लिए घर के बाहर रुकते और सभी से मिलते। तब भी वे अपने बेटे को गोद में नहीं लेते और दूर से लाड़ कर मन को मनाने की कोशिश करते। उस दौरान कोरोना सभी के लिए नया था और इससे बचने-बचाने के तरीकों से पूरी तरह परिचित नहीं हो पाए थे। जब वे ड्यूटी के साथ संक्रमण से बचने को लेकर अभ्यस्थ हुए और सुरक्षा को लेकर आश्वस्त हुए, उसके बाद ही परिवार में लौटे।
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फादर्स डे पर पहली बार घर गए थे
डॉ. रौनक कहते हैं, पिता बनने पर सोचा था बेटे को अधिक से अधिक समय दूंगा लेकिन कुछ महीने बाद मुझे उसकी सेफ्टी के लिए उससे दूर होना पड़ा। यह मेरे लिए काफी कठोर निर्णय था लेकिन अपनी ड्यूटी की रिस्क में उसे व शामिल नहीं कर सकता हूं क्योंकि उसकी सुरक्षा मेरी पहली ड्यूटी है। उसे देख मन करता सीने से लगा लूं लेकिन पिता हूं उसे कैसे खतरे में डाल सकता हूं। पिछले वर्ष अप्रैल में डॉ. रौनक ने घर से बाहर रहना शुरू कर दिया था। उस दौरान 20 जून को फादर्स डे पर वे पहली बार अपने घर में गए थे। तब भी उन्होंने बेहद सावधानी बरती ताकि किसी को कोई खतरा न रहे। वहीं कोरोना की दूसरी लहर शुरू हुई तो उन्होंने पत्नी व बेटे को उसकी नानी के घर भेज दिया। माता-पिता शिवाजी पार्क में रहते हैं। पिता सीनियर सिटीजन एमके एलची शुगर व हर्ट पैशेंट हैं। ऐसे में रौनक ने पिता को लेकर भी रिस्क नहीं ली व ढाई महीने तक उनसे मिलने घर नहीं गए।
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