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Mere Ram: त्रेता युग में यहां से भी गुजरे थे राम, यहां गिरी थीं अमृत की बूंदें

यहां श्रीराम ने अपने पिता के साथ ही अन्य पूर्वजों का किया था तर्पण...

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भगवान महाकाल की नगरी में कल-कल बहती शिप्रा में समुद्र मंथन के दौरान अमृत की कुछ बूंदें गिरी थीं, इसीलिए यहां 12 साल में एक बार सिंहस्थ महाकुंभ लगता है। शिप्रा तट पर भगवान श्रीराम-सीता के चरण चिह्न मौजूद हैं। जो कि यह दर्शाते हैं भगवान राम अपनी भार्या सीता व अनुज लक्ष्मण के साथ उज्जैन आए थे। अमृत मंथन के दौरान शिप्रा नदी के रामघाट के समीप स्थित सुंदर कुंड में अमृत की बूंदें गिरी थीं, इसलिए शिप्रा नदी का महत्व और भी बढ़ जाता है। यहां पर भगवान श्रीराम ने पिता दशरथ व अन्य पूर्वजों का तर्पण किया था, इसलिए शिप्रा का प्रमुख तक राम घाट के रूप में जाना जाता है।

प्राचीन मान्यता के अनुसार जब भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास पर निकले, तब उनके पिताश्री दशरथ ने अपने प्राण त्याग दिए, इस संदेश ने उन्हें दुखी कर दिया। इस वन यात्रा के दौरान जब श्रीराम ने पिता के दिवंगत होने का समाचार मिलते ही परिवार में जेष्ठ होने के नाते हर तीर्थ पर अपने पितरों के निमित्त पिंडदान किया। इसी कड़ी में अवन्तिकापुरी में यात्रा के समय महाकाल वन में प्रवाहित मोक्षदायिनी मां शिप्रा के पिशाचमोचन तीर्थ पर पिंडदान किया, तब सभी देवताओं ने साक्षी देकर उनके अनुष्ठान को स्वीकार किया।

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आज भी सुरक्षित हैं चरण पादुकाएं

धर्माधिकारी पं. गौरव उपाध्याय ने बताया कि उज्जयनी तीर्थ पर मोक्षदायिनी मां शिप्रा के पावन तट पर भगवान श्रीरामचंद्र जी ने त्रेता युग में अपने दिवंगत पिता राजा दशरथ व समस्त पितरों का स्मरण कर मोक्ष की कामना को लेकर पिंडदान-तर्पण किया था। बताया जाता है कि भगवान श्रीराम ने एक दिव्य शिवलिंग की स्थापना कर स्वयं की तथा माता सीता की चरण पादुकाएं चिन्हित की थीं। तब से लेकर वर्तमान तक रामघाट पर ये पादुकाएं एक ओटले पर सुरक्षित हैं। पुजारी पं. गौरव नारायण उपाध्याय धर्माधिकारी ने बताया कि अनेक विपत्तियों के बाद भी हमारे पूर्वजों ने भगवान राम के पद चिन्हों को सुरक्षित व संरक्षित किया हुआ है। कई विधर्मियों ने आकर इन चिन्हों को मिटाने का प्रयास किया, पर हमारे परिवार द्वारा इनकी नित्य सेवा पूजन से ये चैतन्य अंश सुरक्षित है। आने वाली 22 जनवरी को इस दिव्य स्थान पर विशेष अनुष्ठान किया जाएगा।

रामघाट की अन्य विशेषताएं

- हर 12 साल में एक बार सिंहस्थ मेला लगता है। जिसमें देश-विदेश के साधु-संत और श्रद्धालु आते हैं।

- कार्तिक मास में दीपदान होते हैं, मेला लगता है और पर्व विशेष पर बड़ी संख्या में स्नान के लिए श्रद्धालुओं की सैलाब उमड़ता है।

- रामघाट के सामने दत्त अखाड़ा है। इसके समीप नृसिंह घाट और यहां पर मौलाना मौज की दरगाह भी है।

- गुड़ी पड़वा पर यहां सूर्य को अर्घ्य देने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु जमा होते हैं। इसके अलावा सूर्य षष्ठी पर बिहारी लोग भी आकर पूजा पाठ करते हैं।

- महाकाल लोक बनने के बाद शिप्रा की ख्याति और बढ़ गई, बड़ी संख्या में पर्यटक आने लगे हैं।

- सावन-भादौ में जहां भगवान महाकाल की पालकी रामघाट आती है, वहीं सोलह श्राद्ध के दौरान महाकाल मंदिर में उमा-सांझी महोत्सव होता है, इस अवसर पर मां पार्वती जी की सवारी भी रामघाट आती है।

- महाकवि कालिदास समारोह का शुभारंभ भी रामघाट पर विधिवत पूजन-अर्चन के बाद यहां से जल ले जाकर किया जाता है।

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