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स्त्री-पुरुष नहीं, अर्द्धनारिश्वर में जीते हैं हम, ये बहुत गहराई की बात… गुलाब कोठारी

MP News Gulab Kothari in Ujjain: आज उज्जैन में पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी, स्त्री देह से आगे विषय पर करेंगे संवाद...

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Stri Deh Se Aage chief in editor patrika Group ujjain

MP News: उज्जैन. स्त्री देह से आगे विषय विवेचन कार्यक्रम के दौरान महिलाओं और युवतियों ने पत्रिका ग्रुप के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का माला पहनाकर स्वागत किया।

MP News Gulab Kothari in Ujjain: 'हम तो अर्द्धनारिश्वर में जिंदा है, बहुत गहराई की बात आज हमें समझ नहीं आ रही है। अगर हम अग्नि और सोम बनकर जी रहे हैं, तो कभी तो पूर्णता होगी मानव में… लेकिन आज ये पूर्णता कहां और क्यों टूट रही है, हमें इस पर चिंतन करना है, हमें अपने निर्माण में उस पूर्णता को जोड़ना है, स्त्री-पुरुष दोनों भोग की वस्तुएं हो गए हैं। विज्ञान ने इंसान को संसाधन बना दिया है। इसीलिए आज विज्ञान में मानव संसाधन सबसे बड़ा विषय हो गया है।'

पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने 'स्त्री देह से आगे’ विषय विवेचन पर आयोजित संवाद कार्यक्रम में ये शब्द कहे। मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन में आयोजित इस कार्यक्रम में 'अर्द्धनारिश्वर ही सृष्टि और समाज का आधार' के महत्व को गहराई से समझाते हुए कोठारी ने वर्तमान में स्त्री-पुरुष का बढ़ता भेद और उस पर महिलाओं पर बढ़ते अपराधों पर चिंतन करने की बात कही है।

आज हम संसाधन बन गए हैं, हमारा इज्जत कहां है?

व्यक्ति दिव्य उत्पाद है, उसे निकृष्ठ बना दिया। आर्थिक प्रगति आदमी से बड़ी हो गई, मूल प्रश्न ये है कि आज हम संसाधन बन गए हैं, तो हमारी इज्जत कहां है?

आज नारी संसाधन की वस्तु बन गई और सारे अत्याचार उसी पर हो रहे हैं, आज अर्द्धनारिश्वर की ये पूर्णता क्यों खत्म हो गई?

उन्होंने आगे कहा कि पहले दो आत्माओं की शादी होती थी, आज दो शरीरों की शादी होती है। आज कोई नहीं कहता कि मैं आत्मा हूं, आज शरीर जीता है, आत्मा नहीं..।

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आज की शिक्षा केवल करियर और पैकेज

कोठारी ने कहा कि, आज हमारी शिक्षा हमें क्या सिखा रही है? आप किसी भी स्कूल, कॉलेज या शैक्षणिक संस्थान में पहुंच जाएं, हर जगह आपको क्या सिखाया जाता है या आप क्या सीखना चाहते हैं, आज इन संस्थानों में सिर्फ…करियर और पैकेज की बात की जाती है, हम और कुछ नहीं सीखते।

मां बाप की पूरी पूंजी खत्म करके आज हम पेट भरने के लिए नौकरी ढूंढ रहे हैं, क्यों ऐसी परिस्थितियां हमारे सामने आ रही है, सारी चेतना जड़ के पीछे यानि लक्ष्मी के पीछे भाग रही है। संवेदनाएं कहां हैं? संवेदनाएं आज सिखाई कहां जाती हैं?

कॉलेजों में लक्ष्मी, अंधकार, पंचमहाभूतों का पाठ पढ़ाया जा रहा है, हमारे अस्तित्व को मिट्टी में मिलाना सिखाया जा रहा है। आत्मा की चर्चा नहीं हम शरीर में जी रहे हैं, सोचेंगे तो पाएंगे हमने क्या खोया और क्या पाया…?

मर्यादा ही हमें देवता बनाती है- कोठारी

स्त्री या मां कैसे महान और बड़ी...?

गुलाब कोठारी ने महिलाओं के सवालों और उनके मन की उलझनों को समेटते हुए समझाया कि, मर्यादा ही तो देवता बनाती है, उसको वहां समझें हम, मुझे अगर दिव्य भाव में जीना है, तो मर्यादा में रहना होगा, बिना मर्यादा के कोई बड़ा नहीं होता। बड़ा होने के लिए देने का भाव होना चाहिए, मां कभी नहीं मांगती, गरीब की मां भी नहीं मांगती, जिसको देना आता है, वही मां है, मां के लिए औरत होना भी जरूरी नहीं। बिना अपेक्षा के जिसे देना आता है वही मां है। देवता भी तो मां हैं। वो देते हैं वापस लेते नहीं। बीज पेड़ बनता है, क्यों कि वो देना चाहता है, छाया, फल, फूल, पक्षियों को घोंसले की जगह बांटना चाहता है, कुछ मांगता नहीं है, लेकिन उस बीज को पेड़ बनने के लिए खुद को जमीन में गड़ना पड़ेगा। वो अपने लिए नहीं जी सकता, ये मां होने का पहला लक्षण है।

इसीलिए मैंने जिक्र किया कि वो शादी होने के समय शरीर को पीहर में छोड़कर गई, आत्मा को ससुराल लेकर गई और आत्मा को वहां आहूत कर दिया। दोनों एक हो गए, उसका नाम परिचय सब खत्म, वहीं एक ही परिचय रह गया। यही परिचय उसका जमीन में गढ़ जाना है, वहीं पेड़ बनना है, वहीं फलों को बांटना है, वहीं छाया को बांट देना है, अब हम अपने फलों को खुद भोगना चाहेंगे, तो कभी पेड़ नहीं बन सकते। हम थोड़े दिन बाद आंधियों में उड़ जाएंगे, बिखर जाएंगे, खत्म हो जाएंगे।

कन्यादान क्यों?

--यदि स्त्री को देह से आगे मानते हैं तो आज भी उसका कन्यादान क्यों?

कोठारी- कन्यादान से मतलब शरीर का दान नहीं बल्कि पिता के प्राणों का एक हिस्सा है, जिसे उसने अपने दामाद के प्राणों के साथ जोड़ दिया है। यही कन्यादान है।

सभी महिलाएं करियर और पैसे के पीछे भाग रहे, तो भविष्य क्या?

आज महिलाएं जड़त्व और पुरुषत्व की ओर जा रही हैं, उसी में गौरव भी महसूस कर रही हैं, वो अपने बच्चों से भी वही उम्मीद करती हैं, ऐसे में भविष्य क्या होगा?

कोठारी- बात यही है कि ये आपको तय करना है कि आपको कहां जाना है? आपको अपने भीतर झांकना होगा। क्योंकि मुझे तो इस दिशा में बढ़ने से कहीं से भी कोई सुख आता नजर नहीं आ रहा। महिलाएं प्रकृति से लड़ रही हैं, जबकि प्रकृति से वो कभी जीत नहीं सकतीं। प्रकृति से उनकी लड़ाई ही समाज को कैसे बदल रही हैं, इस बारे में गंभीरता से सोचना होगा।

ये हुए शामिल

पत्रिका स्टेट एडिटर विजय चौधरी के नेतृत्व में आयोजित इस कार्यक्रम में गुलाब कोठारी ने महिलाओं से अस्तित्व, महत्व और दिव्यता पर वैदिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर चर्चा की। यह आयोजन भरतपुरी स्थित मध्यप्रदेश सामाजिक विज्ञान शोध संस्थान (Madhya Pradesh Social Science Research Institute) सभागार में हुआ। भरतपुरी स्थित मध्यप्रदेश सामाजिक विज्ञान शोध संस्थान (Madhya Pradesh Social Science Research Institute) सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में उज्जैन के सामाजिक कार्यकर्ता, प्रोफेसर, प्रोफेशनल्स व कॉलेज की छात्राओं ने भाग लिया।

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