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उज्जैन. यहां की भूमि देवी-देवताओं से परिपूर्ण है। इस शहर में उत्तर वाहिनी शिप्रा, दक्षिणेश्वर ज्योतिर्लिंग श्रीमहाकाल, दक्षिणेश्वरी महाकाली हरसिद्धि, दक्षिणी तंत्र प्रधान अष्ट महाभैरव, अष्ट विनायक गणेश सहित नवनाथ, तंत्र सिद्ध स्थली, ओखरेश्वर, महाशक्तिभेद श्मशान तीर्थ, चक्रतीर्थ, चौरासी महादेव, नव नारायण आदि विशेष देव तथा देवियों से परिपूर्ण यह उज्जयिनी समस्त तीर्थों से तिल भर बड़ी एवं धर्म-कर्म के क्षेत्र में प्रबल मानी गई है। इसी तरह यहां राधा-कृष्ण के भी अनेक मंदिर हैं। कृष्ण जन्माष्टमी पर पत्रिका की विशेष रिपोर्ट
सांदीपनि आश्रम में पढऩे आए थे कृष्ण-बलराम
अंकपात मार्ग स्थित महर्षि सांदीपनि आश्रम में भगवान कृष्ण पढऩे आए थे। उज्जैन को ही भगवान कृष्ण ने अपना पठन-पाठन और शिक्षा का केंद्र चुना। वे यहां बड़े भ्राता बलदाऊजी के साथ शिक्षा प्राप्त करने गुरु महर्षि सांदीपनि के आश्रम आए थे। 64 दिनों में उन्होंने 64 विद्या और 16 कलाएं सीखी थीं। यहीं पर उनकी मित्रता सुदामाजी से हुई। यह स्थान आज भी दर्शनीय है। कहा जाता है कि स्लेट पर लिखे शब्द या अंक धोने के कारण ही इस मार्ग का नाम अंक पात रखा गया।
कृष्ण-मित्रवृंदा धाम : उज्जैन के दामाद भी थे कृष्ण
यह धाम भेरूगढ़ रोड पर स्थित है। मित्रवृंदा यहां के राजा की पुत्री थीं। जब भगवान श्रीकृष्ण उज्जैन आए थे, तब मित्रवृंदा से उन्होंने विवाह किया था। इसलिए भगवान कृष्ण यहां के दामाद भी कहलाते हैं। मंदिर में मौजूद प्रतिमाएं अनूठी हैं। अधिकांश जगहों पर हमें राधा-कृष्ण की खड़ी प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं, लेकिन उज्जैन में कृष्ण-मित्रवृंदा की बैठी प्रतिमाएं मौजूद हैं। साथ ही मंदिर के बाहर गरुडज़ी की नागवाहन वाली प्रतिमा के भी दर्शन प्राप्त होते हैं।
मीरा-माधव मंदिर : भक्ति की अनूठी मिसाल
उज्जैन के मक्सी रोड पर स्थित यह मंदिर अपने आपमें अनूठा और भक्ति की मिसाल के रूप में नजर आता है। भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में बैठी हुई मीराबाई के दर्शन यहां होते हैं। यहां प्राकृतिक सौंदर्य भक्तों को लुभाता है। प्रतिदिन बड़ी संख्या में भक्तगण पहुंचते हैं। पर्व के दिनों में यहां भीड़ लगी रहती है।
गोपाल मंदिर : नेपाल से लाए थे प्रतिमा
ग्वालियर स्टेट के समय इस मंदिर की स्थापना हुई थी। यहां जो प्रतिमा विद्यमान है, वह नेपाल से तैयार कर लाई गई थी। इस मंदिर में भगवान की काले पाषाण की प्रतिमा मौजूद है, जिसकी दाढ़ी में हीरा दूर से ही चमकता नजर आता है। महाकाल की शाही सवारी पर ग्वालियर के सिंधिया परिवार के सदस्य आज भी यहां आकर महाकाल और गोपालजी की संयुक्त आरती उतारने की परंपरा का निर्वाहन करते हैं। इसी प्रकार वैकुंठ चतुर्दशी पर यहां हरि-हर मिलन की भी परंपरा है। भगवान महाकाल की सवारी रात 11 बजे निकलती है, जो गोपाल मंदिर पहुंचती है। यहां दोनों देवता अपने स्वभाव के विपरीत मालाएं धारण करते हैं। अर्थात गोपालजी को बिल्वपत्र और भोलेनाथ महाकाल को तुलसी की मालाएं अर्पण कर महाआरती उतारी जाती है। इस दृश्य को निहारने बड़ी तादात में भक्तजन रात 12 बजे मंदिर के बाहर खड़े रहते हैं और जोरदार आतिशबाजी करते हैं।
कृष्ण-सुदामा धाम : दोस्ती की मिसाल बना ये मंदिर
शहर से करीब 35 किलोमीटर दूर ग्राम नारायणा में कृष्ण-सुदामा का धाम बना हुआ है। यह स्थान पौराणिक कथाओं पर आधारित है। उल्लेखनीय है कि सांदीपनि आश्रम से जब कृष्ण-सुदामा लकडिय़ां बीनने जंगल गए थे और अधिक बारिश के कारण पेड़ पर रात गुजारी थी। उसी स्थान पर यह धाम बनाया गया है। तेज बारिश के कारण चुनी हुई गीली लकडिय़ों को उन्होंने उसी जगह छोड़ दिया था, वे आज पेड़ों के झुरमुट के रूप में नजर आती हैं। साथ ही गुरुमाता द्वारा दिए गए चने कृष्ण से छुपाकर सुदामा ने खाए थे, जिसका दंड उन्हें दरिद्रता के रूप में भोगना पड़ा था। इसका उल्लेख भी यहां मिलता है।
जानिए उज्जैन नगरी के बारे में
यहां दो प्रकार के मत बताए गए हैं। पहला यह शिप्रा के तट पर बसी उज्जयिनी, जो मोक्षदायिनी शिप्रा के नाम से जानी जाती है। दूसरा महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, जिसका शिव महापुराण में विशेष उल्लेख है। इसके अंतर्गत भगवान महाकालेश्वर ने अघौर पंथ के तीन बिंदुओं का समायोजन उज्जयिनी के जीरो रेखांश से संबंधित बताया है, और भी अन्य कई कारण हैं, जिसमें उज्जैन की महिमा का देवता तथा यक्ष, गंधर्व, नाग आदि द्वारा विशेष स्तुति गायी गई है, यही कारण है कि वर्षभर यहां अलग-अलग देवी-देवताओं के व्रत, त्योहार, उपवास आदि आते रहते हैं।
अन्य तीर्थों से अधिक पुण्य फलदायी
धर्म शास्त्र के अंतर्गत लिखा हुआ व्रतों का पुण्य फल, स्नान, दान, धर्म, शिक्षा, दीक्षा, अध्यात्म, संन्यास आदि का विशेष पुण्य धर्म शास्त्र एवं पुराणों में बताया गया है, इसलिए उज्जैन के सिंहस्थ की मान्यता अन्य तीर्थों से विशेष बताई गई है।
Published on:
30 Aug 2018 11:35 am
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