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@NITYANAND: ‘यहां आने वाले 90 फीसदी लोग पैदाइशी हिंदू नहीं हैं’

परमहंस नित्यानंद का शिविर सिंहस्थ के वैभवशाली पंडालों में शुमार है। भव्य गेट दूर से ही दक्षिण भारतीय मंदिरों की वास्तुकला से रूबरू कराता है। अंदर घुसते ही विशाल स्तंभ और स्वर्णिम आभा से दमकते रथ आपका स्वागत करते हैं।

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Lalit Saxena

May 05, 2016

The bigger problem, as great success

The bigger problem, as great success

अमित मंडलोई@उज्जैन. परमहंस नित्यानंद का शिविर सिंहस्थ के वैभवशाली पंडालों में शुमार है। भव्य गेट दूर से ही दक्षिण भारतीय मंदिरों की वास्तुकला से रूबरू कराता है। अंदर घुसते ही विशाल स्तंभ और स्वर्णिम आभा से दमकते रथ आपका स्वागत करते हैं। मंदिर में विशाल मूर्तियों की पूरी शृंखला है। इन सबके बीच थर्ड आई का प्रदर्शन करते बच्चे, हीलिंग के जरिये मानसिक शांति का अनुभव बांटते साधक भी नजर आते हैं। विदेशी भक्तों की टोली भी ध्यान खींचती है। सवाल उठता है कि क्या लोग सिर्फ चकाचौंध देखने आ रहे हैं या कुछ और भी है। ऐसे ही सवालों को लेकर मैं दोबारा उनके पास पहुंचा।

दुनियाभर से इतने लोग क्यों आ रहे?
हमारी वैदिक जीवनशैली को पूरी दुनिया समझना चाहती है। हमारे यहां परिवार स्थिर हैं, तलाक की दर 8 फीसदी से कम है। अमेरिका के जिन इलाकों में भारतीय रहते हैं, जमीन के दाम अन्य इलाकों के मुकाबले दोगुना हैं, क्योंकि अपराधमुक्त समाज है। दुनिया में 49 संस्कृतियां थीं, सिर्फ हमारी बची है। उसी की शक्ति लोगों को यहां ला रही है।

बड़े पद छोड़ संन्यास की वजह क्या?
हमारे यहां हताश लोग नहीं आते। अपने क्षेत्र के माहिर और सफल लोग हमारी जीवनशैली को समझना चाहते हैं। अमेरिका में 70 फीसदी लोग बिना दवाई के सो नहीं पाते। हमारे यहां ऐसे गिने-चुने लोग हैं। लोग आत्मिक उन्नति के लिए, भीतर की शक्तियों को महसूस करने के लिए आ रहे हैं।

इन शक्तियों की जरूरत क्या है?
आप मन से जितने शक्तिशाली होंगे, उतने बड़े मसलों पर काम कर पाएंगे। जितनी बड़ी चुनौती स्वीकार करेंगे, सफलता भी उतनी ही बड़ी होगी। अपनी चिंता करेंगे तो सेहतमंद होंगे, परिवार की करेंगे तो मुखिया होंगे, शहर की करेंगे तो मेयर होंगे, प्रदेश की करेंगे तो मुख्यमंत्री। यह क्रम ऐसे ही चलता है। पूर्णता को महसूस करने की क्षमता ही तरक्की की ओर ले जाती है।

हिंदू के अर्थ बदल रहे हैं?
मुझे इसके राजनीतिक या सामाजिक अर्थ से लेना-देना नहीं। मेरे लिए आध्यात्मिकता महत्वपूर्ण है। मैं उसी को लोगों तक पहुंचाना चाहता हूं। यहां आने वाले 90 फीसदी लोग पैदाइशी हिंदू नहीं हैं।

तिलक, जटा, माला क्यों?
इनकी कोई जरूरत नहीं है और ना ही इन्हें अपनाने के लिए किसी को कहा जाता है। भीतर के आनंद को अभिव्यक्त करने का सबका अपना तरीका होता है। भक्ति का उत्सव लोग अपने ढंग से मनाते हैं। ये सब उसी के प्रतीक हैं।

बच्चों पर क्यों सिद्धांत लादना?
गुरुकुल में किसी बच्चे पर कुछ भी करने के लिए दबाव नहीं डाला जाता। सभी बच्चों के पास अपने आईपैड हैं। वे अपनी तरह से जिंदगी जीने को स्वतंत्र हैं। वैदिक अभ्यास करते हैं, जिनमें उन्हें आनंद आता है। उनकी याददाश्त तेज होती है, कम समय में ज्यादा बेहतर सीख पाते हैं।

मासूमियत तो नहीं चली जाती उनकी?
स्वतंत्रता वैदिक जीवनशैली की पहली शर्त है। गुरुकुल के सभी बच्चे अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। विदेशों से आने वाले बच्चों के लिए तो यह अनिवार्य है कि उनके अभिभावकों में से एक यहीं रहे। लोग अपनी नौकरी छोड़कर रहते हैं। बच्चे गुरुकुल छोड़कर अमेरिका में पढ़ाई को तैयार नहीं हैं। यहां उनकी मासूमियत और सुरक्षित रहती है।

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