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शायद आपने भी नहीं देखा होगा बाबा महाकाल यह प्राचीन प्रवेश द्वार, क्यों नहीं आता था नजर

महाकाल द्वार को पुराना स्वरूप देने का कार्य जारी, प्रचलित निर्माण से ही उभरने लगी इस प्राचीन मार्ग की खूबसूरती  

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Maybe you have not even seen Baba Mahakal, this ancient entrance

महाकाल द्वार को पुराना स्वरूप देने का कार्य जारी, प्रचलित निर्माण से ही उभरने लगी इस प्राचीन मार्ग की खूबसूरती

उज्जैन. हमारा शहर उज्जैन धार्मिक के साथ एेतिहासिक और पौराणिक सौगातों से संपन्न है, जरूरत सिर्फ इन धरोहरों को सहेजने-संवाने की है। महाकाल द्वार भी एेसी ही विरासत है जो अपने आप में एक गौरवमयी व्यवस्था का पूरा इतिहास समेटे हुए हैं। वर्षों की अनदेखी ने इसे गंदी गली बना दिया था जिसके कारण वर्तमान में कई लोग इससे अनजान हैं। देश विदेश से महाकाल मंदिर आने वाले कई श्रद्धालुओं ने तो शायद इसे पहले कभी देखा ही नहीं होगा। अब जब पत्थर की दीवारों में इस अनदेखी को चुना गया तो मानो नए भविष्य की पटकथा लिखने इतिहास खुद लौट आय हो। कुछ महीनों में शहर को फिर वह महाकाल द्वार मिलेगा जो कभी प्राचीन समय में श्रद्धालुओं के प्रवेश का मार्ग था।

स्मार्ट सिटी के मृदा फेज-२ (सिटीज) अंतर्गत शहर की प्राचीन धरोहरों के संधारण व पुनर्विकास के लिए भी कार्य किया जा रहा है। इसके अंतर्गत महाकाल थाने के नजदीक करीब दो करोड़ रुपए की लागत से महाकाल द्वार का जिर्णोद्धार हो रहा है। रखरखाव की कमी, असामाजिक तत्वों का जमवाड़ा होने से इस मार्ग की स्थिति काफी खराब हो गई थी। यहां तक कि यह द्वार व मार्ग भी अपनी पहचान और महत्व तक खोने लगा था। अब विशेषज्ञों की निगरानी में इसे दोबारा इसके पुराने स्वरूप में लौटाया जा रहा है। कुछ महीनों में कार्य पूरा होने की उम्मीद है। इसके बाद महाकाल वन क्षेत्र में आने-जाने के लिए इस मार्ग का उपयोग भी हो सकेगा।

पुरानी रिटर्निंग वाल का दोबारा निर्माण

प्रोजेक्ट अंतर्गत मार्ग के दोनो ओर बनी पुरानी रिटर्निंग वॉल को खोलकर दोबारा इसे पुराने स्वरूप में ही पत्थरों से बनाया जा रहा है। प्राचीन द्वार की सफाई व जरूरी मरम्मत की जा रही है। साथ ही सीढि़यां भी बनाई जा रही हैं। द्वार व मार्ग के आसपास पेड़-पौधों से सौंदर्यीकरण व लैंड स्केपिंग किया जाएगा। मार्ग के नजदीक कुछ जगह बैठने की व्यवस्था भी रहेगी।नए समय में पुरानी पद्धति का ही उपयोग पूर्व में जिस मटेरियल से द्वार, दीवार, मार्ग आदि का निर्माण हुआ था, अभी भी उसी मटेरियल का उपयोग किया जा रहा है। इसके लिए पहले लेबोरेटरी में द्वार-दीवार आदि में लगे मटेरियल की जांच की गई है। विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में चूना, बालू, रेत,ईंट पावडर, गुड़, बिल्व रस, गोंद, मैथी दाना पावडर, उड़ददाल पावडर, गुगल का पेस्ट आदि का उपयोग कर निर्माण किया जा रहा है। यही नहीं द्वार में जिस लंबाई-चौड़ाई की ईंट लगी थी, विशेष रूप से से उसी आकार की ईंटें बनवाकर यहां लगाई जा रही है। दीवारों की बारिकी से सफाई की जा रही है। जो ईंट या पत्थर खराब हो गए हैं, उन्हें बदलकर उन्हीं आकार के ईंट-पत्थर लगाए जा रहे हैं।

600 साल पुराना है द्वार

जानकारों के अनुसार द्वार का वर्तमान स्ट्रक्चर करीब ६०० वर्ष पुराना है। इतिहासविदों की माने तो यह मांडू के सुल्तानों ने बनवाया था। इस द्वार से होकर क्षिप्रा की ओर आना जाना होता था इसलिए इसे क्षिप्रा द्वार भी कहा जाता था। द्वार का ऊपरी भाग ईंट और नीचे का भाग पत्थर से बना है। एेसे में माना यह भी जाता है कि वर्तमान स्ट्रक्चर से पहले भी यह द्वार था। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि बाद में श्रद्धालु क्षिप्रा में स्नान कर इसी द्वार से महाकाल मंदिर क्षेत्र में पहुंचते थे। इसलिए प्रोजेक्ट में इसे महाकाल द्वार ही नाम दिया गया है। द्वार करीब ५ मीटर ऊंचा व ३.५ मीटर चौड़ा है। यहां के मार्ग की लंबाई लगभग ५० मीटर और चौड़ाई ३.५ से ४ मीटर है।