10 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Nagpanchami 2024: महाकाल मंदिर के शिखर पर विराजित हैं दुर्लभ विग्रह नागचंद्रेश्वर, नागपंचमी पर कर सकेंगे दर्शन

Nagpanchami 2024: नागपंचमी पर नागचंद्रेश्वर के रूप किसकी हो पूजा... महंत विनीत गिरी, पुजारी महेश गुरु और ज्योतिर्विद आनंदशंकर व्यास ने अपने तर्कों से स्थिति की स्पष्ट

3 min read
Google source verification
nagpanchami

महाकालेश्वर मंदिर के शीर्ष पर है नागचंद्रेश्वर मंदिर, नागपंचमी पर कर सकेंगे दर्शन।

Nagpanchami 2024: हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। नागों को भगवान शिव के गले का हार भी कहा जाता है। देशभर में नागों के कई मंदिर हैं, इन्हीं में से एक है महाकाल मंदिर के शिखर के ऊपरी हिस्से में स्थापित नागचंद्रेश्वर का मंदिर। यह मंदिर वर्ष में सिर्फ एक दिन 24 घंटे के लिए नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही खोला जाता है। यहां विराजित दुर्लभ प्रतिमा की ही नागचंद्रेश्वर के रूप में पूजा की जाती है।

स्वयं मंदिर में रहते हैं नागराज तक्षक

कहा जाता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं। नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक दुर्लभ प्रतिमा भी है, जिसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। बताया जाता है कि यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। महाकाल मंदिर के शिखर में विराजित दुर्लभ प्रतिमा ही असली नागचंद्रेश्वर है, इसी तल पर पिंडी स्वरूप में जो हैं, उन्हें सिद्धेश्वर कहा जाता है।

नागपंचमी (Nagpanchami) के दिन दोनों की ही विधिवत पूजा की जाती है। महानिर्वाणी अखाड़े के महंत विनीत गिरि महाराज ने बताया कि पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। एमपी के उज्जैन में मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या है। भगवान भोलेनाथ (Lord Shiva) के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए नजर आते हैं। नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है।

यहां देवता पिंडी स्वरूप में पूजे जाते हैं

बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में हर देवता पिंडी स्वरूप में पूजे जाते हैं। चाहे वे गोलामंडी के बृहस्पतेश्वर हों या शनि मंदिर के नौ ग्रह देवता। पुजारी महेश गुरु का कहना है कि महाकाल मंदिर के शिखर में स्थापित प्रतिमा को नागचंद्रेश्वर माना जाने लगा है, जबकि नीचे ओंकारजी और महाकालजी पिंडी रूप में हैं। शिखर के तीसरे तल में जो शिवलिंग है, वह सिद्धेश्वर कहलाते हैं। रही बात दीवार में दुर्लभ मूर्ति की, उसमें तो पूरा शिव परिवार विराजमान है।

नागचंद्रेश्वर अकेले नहीं हैं। ऐसे में उस प्रतिमा को नागचंद्रेश्वर कहना कुछ ठीक नहीं लगता है, लेकिन लोक मान्यताओं के कारण इस प्रतिमा को ही नागचंद्रेश्वर मानकर पूजा जाने लगा है। यह क्रम साल-दर-साल से चला आ रहा है। पुराने नाग मंदिर की बात करें तो पटनी बाजार में 84 महादेव के क्रम में जो नागचंद्रेश्वर मंदिर है, जहां से पंचक्रोशी यात्री बल लेकर यात्रा करते हैं। दूसरा रामघाट पर शेषनाग की प्रतिमा है, जहां वर्षों पहले नागपंचमी के दिन मेले लगते थे। शहर में इन दो स्थानों पर नागचंद्रेश्वर के मंदिर स्थापित हैं।

नागपंचमी के दिन दोनों के दर्शन की मान्यता

वरिष्ठ ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास ने कहा कि महाकाल मंदिर के शिखर में जो प्रतिमा और पिंडी रूप में नागचंद्रेश्वर हैं, उनके दर्शन नागपंचमी पर करने की विशेष मान्यता है। पौराणिक मान्यता है कि सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक को अमरत्व का वरदान दिया। इसके बाद से तक्षक ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया।

महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में किसी प्रकार का विघ्न बाधा न हो। अत: वर्षों से यही प्रथा है कि केवल नागपंचमी के दिन ही मंदिर के पट खोले जाते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा अनुसार मंदिर बंद रहता है।

सरकारीकरण से शासकीय पूजा

पं. व्यास ने बताया कि यह मंदिर प्राचीन है। परमारकालीन राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। बाद में स्टेट साम्राज्य खत्म हो गए। मंदिर का सरकारीकरण होने से शासकीय पूजा की प्रथा चल गई। हर त्योहार वाले दिन पहले तहसील की तरफ से पूजा होती थी, अब कलेक्टर करते हैं।

पिछली बार प्रशासन नेकेवल दुर्लभ प्रतिमा के ही दर्शन कराए थे

शहरवासियों से जब चर्चा की तो लोगों का कहना था कि वर्ष में एक बार ही अवसर आता है, जब नागचंद्रेश्वर मंदिर जाना होता है। पिछले साल प्रशासन ने अधिक भीड़ का हवाला देकर एअरो ब्रिज से दर्शन कराने के बाद वहीं से लोगों को वापस लौटा दिया गया था, जबकि इससे पिछले वर्षों में हर बार प्रशासन ऊपरी तल में शिवलिंग है, वहां तक श्रद्धालुओं को ले जाया जाता था।

ये भी पढ़ें: Kishore Kumar Birthday: किशोर कुमार का वो सपना जिसे कंकाल ने नहीं होने दिया पूरा