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Pitra Paksha: पितृ पक्ष में जरूर करें ये काम, हमेशा खुश रहेंगे पूर्वज और आप

Pitra Paksha: इसे करना बहुत ही आसान है। जिस प्रकार हम प्राणायाम योग करते हैं, इसे भी उसी तरह करना है, बस श्वास भरते और छोड़ते समय हमें अपने पूर्वजों के नाम और उनका चेहरे को ध्यान में लाना होगा, यहां जानें पितृ प्रमायाम की पूरी विधि...

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pitra yoga

पितृ पक्ष में जरूर करें पितृ योग, दूर होंगे पितृ दोष

pitra paksha pitra pranayam: पूर्वजों के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान तो बहुत सुना होगा, लेकिन पितृ प्राणायाम भी होता है। यह प्राणायाम करके हम अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति और हमारे जीवन में कई सारे बदलाव कर सकते हैं।

इसे करना बहुत ही आसान है। जिस प्रकार हम प्राणायाम योग करते हैं, इसे भी उसी तरह करना है, बस श्वास भरते और छोड़ते समय हमें अपने पूर्वजों के नाम और उनका चेहरे को ध्यान में लाना होगा। इससे हम अपनी कुंडली के सभी 10-12 घरों में आने वाले दोषों को दूर कर जीवन में खुशहाली ला सकते हैं।

क्या है पितृ दोष और उसका सटीक उपाय

ज्योतिषाचार्य पं. कृष्णा गुरुजी ने बताया, कोई कार्य रुक रहा हो, मांगलिक कार्यों में व्यवधान आता हो, तो ऐसे जातकों को पितृ दोष से पीडि़त बताया जाता है। असल में जातक की पत्रिका में अगर नवम घर में सूर्य हो, उसके साथ राहु, केतु, शनि भी साथ हो तो पितृदोष बनता है।

अगर नवम घर के अलावा भी किसी और घर में भी सूर्य ग्रह के साथ उपरोक्त ग्रहों को युति हो तो भी ग्रहण या अर्ध पितृ दोष माना जाता है।

विधि के बाद क्या करें….

- -पितृ ध्यान-- पितृ प्राणायाम के बाद अपने हाथों में तीन सफेद पुष्प थोड़े जल में भिगोकर काले तिल के साथ हाथों में रख आंखें बंदकर सुखासन में बैठे।

-- बायीं नासिका, बाएं कंधे पर ध्यान रख बहन, मामा, मासी परिवार पर ध्यान ले जाएं, उनके साथ बिताए पलों को याद करें।

-- आत्मिक यात्रा पूर्ण होने पर ध्यान सीधे कंधे पर ले जाकर पितृ परिवार का ध्यान करें।

--अंत में नाभी का ध्यान कर अपने ससुराल पक्ष के दिवंगतों का ध्यान करें।

क्या है पितृ प्राणायाम की विधि

  1. सुखासन में बैठ जाएं।
  2. सीधे हाथ के अगूंठे से अपनी दायीं नासिका बंद करें।
  3. अंगूठे के पास की तर्जनी अंगुली को आज्ञा चक्र पर रखें (आई ब्रो के बीच का स्थान)।
  4. बायीं नासिका से अपनी मां को याद करते हुए श्वास भरें।
  5. अब बायीं नासिका को सूर्य की अंगुली अनामिका से बंद कर, दाईं नासिका से श्वास छोड़ें, अपने पिताजी का स्मरण करें
  6. कुछ पल विश्राम कर पुन: दायीं नासिका से श्वास लेें और दादा को याद करें।
  7. पुन: अपनी दायीं नासिका को अपने सीधे हाथ के अगूंठे से बंद कर बायीं नासिका से श्वास छोड़ें, दादी को याद करें। श्वास छोड़कर विश्राम करें। पहले चक्र में कुल चार बार श्वास लेने और छोडऩे की प्रक्रिया हुई।
  8. दूसरे च्रक्र में नाना, नानी का स्मरण करते हुए यह प्रक्रिया दोहराएं।
  9. तीसरा चक्र अपने सास-ससुर, को याद करते हुए करें। इस प्रकार तीन चक्र में 12 बार श्वास लेने और छोडऩे की क्रिया में 12 पूर्वजों का स्मरण कर लेंगे।