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Rashtriya Panchang: राष्ट्रीय कैलेंडर को लेकर दो दिवसीय सम्मेलन शुरू

200 से ज्यादा ज्योतिषी, पंचांगकर्ता, खगोल विज्ञानी, विद्वान पहुंचे उज्जैन

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उज्जैन. भारत में काशी उज्जैन सहित अलग अलग क्षेत्रों के 30 अलग अलग पंचांग को एक रूप करने के लिए एक राष्ट्रीय कलेंडर होने अब आवश्यक हो गया है। इसी राष्ट्रीय कैलेंडर पर मंथन करने के लिए उज्जैन में दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित हो रहा है। शुक्रवार से शुरू हुए सम्मेलन में राष्ट्रीय कैलेंडर के वैज्ञानिक पहलुओं पर मंथन किया जा रहा है।

भारत के राष्ट्रीय कैलेंडर जिसे सौर दिनदर्शिका के वैज्ञानिक पहलुओं पर मंथन करने के लिए देशभर से 200 से ज्यादा विद्वान उज्जैन पहुंचे हैं। यह सम्मेलन 22 और 23 अप्रैल को विक्रम विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयंती सभागार में आयोजित किया जा रहा है। दो दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन शुक्रवार को सुबह 10 बजे हुआ। सम्मेलन में देशभर से 200 से ज्यादा ज्योतिषी, पंचांगकर्ता, खगोल विज्ञानी, विद्वानों को आमंत्रित किया गया है। सम्मेलन में ही भारत के विभिन्न हिस्सों में उपयोग किए जाने वाले 30 कैलेंडरों की प्रदर्शनी भी लगाई गई है।

भारतीय राष्ट्रीय दिनदर्शिका (नेशनल कैलेंडर ऑफ इंडिया) को स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के परिप्रेक्ष्य में केंद्र सरकार की तरफ से ये पहल की जा ही है। आयोजन में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय, केंद्रीय विज्ञान प्रोद्योगिकी विभाग, विज्ञान प्रसार, भारतीय तारा भौतिकी संस्थान, खगोल विज्ञान केंद्र, विज्ञान भारती, धारा, मप्र विज्ञान-प्रोद्योगिकी परिषद, विक्रम विश्वविद्यालय व पाणिनी संस्कृत विवि उज्जैन भागीदार हैं। 1956 में नेशनल कैलेंडर के लिए प्रयास हुए थे।

लेकिन बाद में मामला आगे नहीं बढ़ा। हाल ही में केंद्र सरकार ने फिर से इसकी पहल शुरू की है। देशभर में एक समान तिथि, वार और त्योहारों के अनुसार राष्ट्रीय कैलेंडर सुनिश्चित करने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए मध्य प्रदेश की धर्मनगरी उज्जैन में दो दिन देशभर के ज्योतिष, पंचांगकर्ता और खगोल विज्ञान से जुड़कर विद्वान मंथन कर रहे हैं। इसका फायदा ये होगा कि, विभिन्न अंचलों से पंचांगों के कारण व्रत-त्योहार, तिथि आदि को लेकर उत्पन्न होने वाले भेद समाप्त होंगे। इसके अलावा देश में अंग्रेजी कैलेंडर की जगह भारतीय कैलेंडर को मान्यता मिलेगी।

उज्जैन कालगणना का प्राचीन केंद्र
उज्जैन कालगणना का प्राचीन केंद्र रहा है। उज्जैन की कालगणना को ही विश्व में मान्यता थी। उज्जैन कर्क रेखा पर स्थित है। इसलिए समय की गणना यहां सबसे ज्यादा शुद्ध होती है। इसलिए उज्जैन में राजा जयसिंह ने वेधशाला स्थापित की थी। इसके बाद पुराविद् डॉ विश्री वाकणकर द्वारा कर्क रेखा की दोबार खोज किए जाने के बाद महिदपुर तहसील के डोंगला में नई वेधशाला बनाई गई है, जहां खगोल को लेकर अत्याधुनिक उपकरण व अंतरराष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी आदि के लिए सभागृह आदि उपलब्ध हैं।

भारत के राष्ट्रीय कैलेंडर पर संगोष्ठी में अपनी बात रखते राष्ट्रीय विज्ञान केंद्र के उपाध्यक्ष देखें वीडियो...