अभ्युदयपुरम के प्रेरक संस्थापक एवं संस्कार यज्ञ प्रणेता मालव मार्तंड डॉ. आचार्य मुक्तिसागर सूरिश्वर महाराज के अनुसार गृहस्थ जीवन में रहते हुए कुछ समय के लिए संत जैसा जीवन जीने का नाम ही उपधान तप साधना है। उन्होंने कहा कि 48 घंटे यानी पूरे दो दिन और दो रात में मात्र एक ही बार एक बैठक पर ही भोजन ग्रहण करते हुए शेष समय संपूर्ण रूप से ध्यान, साधना, स्वाध्याय आदि के साथ प्रभु भक्ति में बिताया जाएगा।
साध्वी करेंगी युवतियों-महिलाओं को संस्कारित
वर्तमान परिस्थितियों और भागमभाग वाले जीवन में हर मनुष्य कहीं न कहीं एकांत चाहता है, इसका सबसे मुख्य कारण यही है कि वह कहीं न कहीं तनाव भरी जिंदगी से परेशान हो रहा होता है। यही वजह है कि वर्ष में लोग परिवार के साथ बाहर घूमने का प्लान बनाते हैं, लेकिन जैन समाज द्वारा किए जा रहे 50 दिवसीय विशेष साधना शिविर में लोग जुडक़र भौतिक वस्तुओं से दूर रहेंगे, तो उन्हें 50 दिन बाद अपने आपमें अलग अनुभूति होगी, वे खुद को ताजगी से भरपूर करेंगे। धार्मिक साधना अपनी जगह है, लेकिन मेडिकल भाषा में कहें, तो इस तरह के तप और साधना से मन और शरीर दोनों डिटॉक्स हो जाएंगे।
50 दिवसीय यह संपूर्ण तप साधना पूना के ज्योति बेन नरेन्द्र भाई दलाल परिवार द्वारा करवाई जा रही है। अभ्युदयपुरम ट्रस्ट मंडल ने अधिक से अधिक जुडऩे के लिए समग्र जैन समाज से अपील की है। अब तक मालवा, मेवाड़, राजस्थान, गुजरात आदि से अनेक साधकों की ओर से नामांकन पत्र भरे जा चुके हैं।
आचार्यश्री ने बताया कि अप्रेल और मई माह में स्कूली बच्चों का अवकाश होता है। स्कूल जून महीने में प्रारंभ होते हैं। बच्चों में संस्कारों को सींचने की आवश्यक होती है। इसी उद्देश्य से यह उपधान 14 अप्रेल से प्रारंभ होकर 2 जून को मालारोपण के साथ समाप्ति होगी।