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घाट पर कपड़े धोए, कंठी माला भी बेची, जानिए मलखंभ में पहला द्रोणाचार्य अवाॅर्ड पाने वाले योगेश की कहानी

मलखंभ में देश का पहला द्रोणाचार्य अवाॅर्ड पाने वाले योगेश के संघर्ष की कहानी।

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घाट पर कपड़े धोए, कंठी माला भी बेची, जानिए मलखंभ में पहला द्रोणाचार्य अवाॅर्ड पाने वाले योगेश की कहानी

उज्जैन/ शनिवार को राष्ट्रीय खेल दिवस था। इस अवसर पर केंद्र सरकार ने उज्जैन के रहने वाले 40 वर्षीय योगेश मालवीय को मलखंभ में देश के पहले खेल रत्न ‘द्रोणाचार्य अवाॅर्ड’ से नवाज़ा। कोविड-19 नियमों की वजह से ये अवाॅर्ड योगेश को राष्ट्रपति ने ऑनलाइन कार्यक्रम में वर्चुअली दिया। योगेश ने अभावों के बीच मलखंभ साधना को जारी रखा। किसी भी खेल में प्रशिक्षक के रूप में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए उन्हें द्रोणाचार्य अवाॅर्ड से नवाज़ा गया है।

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बचपन से ही शुरु कर दिया था मलखंभ का खेल

भारतीय मलखंभ महासंघ के अध्यक्ष डॉ. रमेश हिंडोलिया के मुताबिक, देश में मलखंभ के लिए ये पहला द्रोणाचार्य अवॉर्ड है। योगेश शहर में ही गुदरी चौराहा क्षेत्र में रहते हैं। वे 5 साल की उम्र से मलखंभ कर रहे हैं। उन्होंने 16 वर्ष की उम्र से खुद मलखंभ करने के साथ इसका प्रशिक्षण देना भी शुरू कर दिया था। हालांकि, उन्हें मिले इस सम्मान से न सिर्फ शहर बल्कि प्रदेश का भी सम्मान बढ़ा है।

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धोबी घाट पर कपड़े धोए, कंठी-माला भी बेची

योगेश के पिता धर्मपाल मालवीय शहर स्थित महाकाल मंदिर के नज़दीक ड्रायक्लीन की दुकान चलाते थे। पारिवारिक स्थिति ठीक न होने के कारण योगश के कांधों पर बचपन से ही बड़ी जिम्मेदारियां थीं। काफी कम उम्र से ही वो पिता की दुकान भी संभालने लगे थे। धोबी घाट पर जाकर कपड़े धोने और प्रेस करने के साथ उन्होंने अपना मलखंभ का अभ्यास जारी रखा। शुरुआत में उन्होंने कबड्‌डी अभ्यास किया, लेकिन धीरे-धीरे वे मलखंभ और योग के प्रति पूरी तरह समर्पित हो गए। 2006 में महाकाल क्षेत्र में पिता के साथ भक्ति भंडार की दुकान खोली। प्रशिक्षण देने के बाद नियमित यहां कंठी-माला बेचकर आजीविका भी चलाते रहे। 2006 में उन्हें शाजापुर में खेल एवं युवक कल्याण विभाग में मलखंभ डिस्ट्रिक्ट कोच के रूप में नियुक्त भी किया गया।

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योगेश के नाम के साथ जुड़ चुकी हैं ये उपलब्धियां

-उनके शिष्य पंकज सोनी और चंद्रशेखर चौहान (2014) को विक्रम अवाॅर्ड, तरुणा चावरे को 2018 में विश्वामित्र अवाॅर्ड मिल चुका है।