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अनिल मुकाती/ललित सक्सेना@उज्जैन. अंधेरी रात... तलवार हाथ में लिए बैखोफ राजा विक्रमादित्य... उनके सामने भयावह दिखता घना बरगद का पेड़ और उस पर लाल होंठ, बड़े नाखुन, लंबे बाल वाला उलटा लटका सफेद पोश बेताल... विक्रम-बेताल का नाम आते ही यह दृश्य जहन में अपने आप ही आ जाता है। हकीकत जो भी हो लेकिन न राजा विक्रम भुलाते हैं, न वीर बेताल और नहीं वह पेड़ जिसके नीचे से पच्चीसी कहानियों की शुरुआत होती थी। आज वह पेड़ तो नहीं है लेकिन शिप्रा किनारे एक टीला है जो उस पेड़ के होने की कहानी को जिंदा रखे हुए हैं। हालांकि वर्तमान में उस टीले पर एक अघौरी ने अपनी कुटिया बना ली है।
मान्यतानुसार राजा विक्रमादित्य के वीरों में से एक बेताल जिस बरगद के पेड़ पर उलटा लटका रहता था वह उज्जैन में शिप्रा किनारे लगा था। रखरखाव की कमी के कारण पेड़ पूरी तरह सूख चुका था। लगभग ४२ वर्ष पहले पेड़ अपने आप ही टूट गया। आज भले ही वह पेड़ नहीं है लेकिन लोगों में उस स्थान को जाानने की जिज्ञासा आज भी है। प्रचार-प्रसार की कमजोरी के कारण बाहरी ही नहीं स्थानीय कई लोगों को उस स्थान की जानकारी नहीं है।
रोज मंदिर जाते थे बेताल बाबा
बैताल जिस पेड़ पर रहते थे, उसके सामने स्थित विक्रांत भैरव मंदिर के पुजारी बंसीलाल मालवीय बताते हैं बैताल बाबा रोज यहां आते थे। मंदिर के बाहर पत्थर का चबूतरा है। बंसीलाल के अनुसार विक्रमादित्य इसी चबूतरे पर बैठते थे।
क्षेत्रवासियों ने सहेजी निशानी
विक्रम बेताल के किस्से देश ही नहीं विदेशों में चर्चित हैं। इसके बावजूद शासन-प्रशासन तो इस विरासत को सहेज नहीं पाया लेकिन क्षेत्रवासियों की सक्रियता के कारण निशानी फिर भी बची हुई है। क्षेत्रीय निवासियों ने पेड़ वाली जगह पर वर्ष १९८० के लगभग एक छोटा ओटला बना दिया था कि स्थान की पहचान हो सके।
आज भी होती है पूजा
विक्रांत भैरव मंदिर और नदी पार ओखलेश्वर शमशान व आसपास का क्षेत्र आज भी तंत्र क्रियाओं के लिए जाना जाता है। क्षेत्रीय लोगों अक्सर टीले पर बने ओटले की पूजन करते हैं।
ऐसे पहुंच सकते हैं टीले पर
बेताल का बरगद अति प्राचीन ओखलेश्वर शमशान के नजदीक लगा हुआ था। यहां पहुंचने के लिए गढ़ कालिका मंदिर तक जाना होगा। गढ़कालिका मंदिर के बिलकुल नजदीक से नीचे की ओर सड़क जा रही है जो लगभग ५०० मीटर दूरी पर ओखलेश्वर शमशान तक पहुंचती है। शमशान के पास ही वह टीला और ओटला स्थापित है। इसी के सामने शिप्रा पार विक्रांत भैरव मंदिर है। वहां काल भैरव मंदिर के सामने स्थित मार्ग से होते हुए पहुंचा जा सकता है।
Published on:
23 Feb 2018 08:15 pm
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