
कोलकाता. नोबेल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर टैगोर के हाथों से बनी एकमात्र मूर्ति एक करोड़ रुपए में नीलाम हुई। पत्थर की 'दिल' नाम की यह मूर्ति टैगोर ने अपने बड़े भाई ज्योतिरिंद्रनाथ टैगोर की पत्नी कादंबरी देवी को समर्पित की थी। मूर्ति की शुरुआत 1883 में कर्नाटक के कारवार में एकांतवास के दौरान की गई थी। तब टैगोर सिर्फ 22 साल के थे।कलेक्टर्स चॉइस नाम की नीलामी का आयोजन कोलकाता के अस्टगुरु ने किया। इसमें टैगोर के लिखे 35 पत्र और 14 लिफाफों का एक खास सेट 5.9 करोड़ रुपए में बिका। दिल के आकार की मूर्ति सबसे बड़ा आकर्षण रही। अस्टगुरु नीलामी मंच के चीफ मार्केटिंग ऑफिसर मनोज मनसुखानी ने कहा, ये सिर्फ साहित्यिक दस्तावेज नहीं हैं, बल्कि टैगोर की जुबानी उनका आत्म-चित्र हैं। इन पत्रों में उनके दार्शनिक विचार, साहित्य को लेकर उनका नजरिया, सौंदर्यशास्त्र की समझ और संवेदनाएं झलकती हैं। टैगोर की चिट्ठियां आमतौर पर बहुत कम देखने को मिलती हैं। पहले एक-दो पत्र ही सामने आए हैं। इतने पत्र और लिफाफे बेहद दुर्लभ हैं। टैगोर की ज्यादातर चिट्ठियां विभिन्न संस्थागत संग्रहालयों में सुरक्षित हैं।
क्या कभी आंसुओं की धार से मिट जाएगा...
मूर्ति पर टैगोर ने बांग्ला में लिखा था, 'अपने दिल को काटकर मैंने पत्थर पर हाथों से उकेरा है। क्या यह कभी आंसुओं की धारा से मिट जाएगा?' इसे टैगोर ने अपने दोस्त कवि अक्षयचंद्र चौधरी को भेंट किया था, जो ज्योतिरिंद्रनाथ के सहपाठी थे। अक्षयचंद्र ने मूर्ति अपनी बेटी उमारानी को दे दी थी। मूर्ति सबसे पहले 2024 में कोलकाता में प्रदर्शित की गई। तब यह उमारानी की बेटी देबजानी के पास थी।
1927 से 1936 के बीच लिखे थे पत्र
नीलाम हुए पत्रों में से 12 टैगोर ने 1927 से 1936 के बीच अपने करीबी समाजशास्त्री धुरजति प्रसाद मुखर्जी को लिखे थे। कई पत्र विश्व भारती, उनके शांति निकेतन के उत्तरायण आवास, दार्जिलिंग के ग्लेन ईडन और उनकी नाव 'पद्मा' के लेटरहेड पर हैं। नीलामी में चित्रकार एम.एफ. हुसैन की एक कृति 3.80 करोड़ रुपए में बिकी। यह उनकी 'मदर टेरेसा' श्रृंखला से थी।
Published on:
30 Jun 2025 12:48 am
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