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UP Politics: महाराष्ट्र पॉलिटिक्स में लगी आग पहुंची UP, चुनाव से पहले भतीजे को जोर का झटका देंगे शिवपाल!

UP Politics: शिवपाल के करीबी लगातार सपा का साथ छोड़ रहे है। ऐसे में चाचा एनडीए के साथ चले जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।

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लखनऊ

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Prashant Tiwari

Jul 04, 2023

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शिवपाल सिंह यादव

महाराष्ट्र की राजनीति में लगी आग अब धीरे -धीरे पूरे देश में फैलने लगी है। शरद पवार की पार्टी में हुए दो फाड़ के बाद अब उत्तर प्रदेश में भी ऐसी राजनीति की आशंका जताई जा रही है। दो दिनों के भीतर रामदास अठावले और ओम प्रकाश राजभर ने दावा किया कि प्रदेश मेंं शिवपाल यादव अखिलेश ऐसा झटका दे सकते है। हालांकि इन दोनों नेताओं के बयानों पर समाजवादी पार्टी ने पलटवार करते हुए इसे कपोर कल्पना बताया है। लेकिन अगर ध्यान से देखा जाए तो लग रहा है कि चाचा शिवपाल के दिमाग में ऐसा ही कुछ चल रहा है।

सपा में घर वापसी लेकिन अधिकार नहीं
2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान सपा कैसे दो फाड में बटी ये किसी से छुपा नहीं। चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश के रिश्ते में ऐसी खटास आई कि दोनों अलग हो गए। शिवपाल ने सपा का साथ छोड़ अपनी खुद की पार्टी बना ली। दोनों बार राष्ट्रपति चुनाव में शिवपाल ने NDA का साथ दिया।

अक्टूबर 2022 में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद वह वापस सपा में आए। अखिलेश की पत्नी के लिए प्रचार कर उन्हें मैनपुरी उपचुनाव में संसद भी बनवा दिया। इसके बदले में अखिलेश यादव ने उन्हे न सिर्फ पार्टी में लिया। बल्कि उन्हें पार्टी का महासचिव भी बना दिया। सपा पर नजर रखने वाले पत्रकार बताते है कि शिवपाल की पार्टी में वापसी तो हो गई लेकिन अखिलेश ने उन्हें अधिकार नहीं दिए।

सपा से लगातार दूर हो रहे शिवपाल के करीबी
अगर ध्यान से देखा जाए तो यह बात साफ तौर पर दिखती है कि शिवपाल के करीबी लगातार सपा का साथ छोड़ रहे है। इनमें फर्रुखाबाद के सपा नेता, कई बार के विधायक रहे नरेंद्र सिंह यादव सपा छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए। उनके साथ उनकी जिला पंचायत अध्यक्ष बेटी और सपा के दूसरे पदाधिकारी भी बीजेपी में चले गए। इसी तरह अजय त्रिपाठी मुन्‍ना भी बीजेपी में चले गए। गाजीपुर से सपा सरकार में मंत्री रही और शिवपाल की करीबी शादाब फातिमा विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गई।

शिवपाल के बयान ने दिए था संकेत
बात उस समय है कि जब मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव हो रहे थे। उस वक्त अखिलेश और डिंपल की मौजूदगी में शिवपाल जनसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि बहू हमें टीपू (अखिलेश) का भरोसा नहीं है। अब तुम ध्यान रखना।' हालांकि, डिंपल जीती। पूरा परिवार एकजुट दिखा। लेकिन धीरे-धीरे लगने लगा कि सब कुछ ठीक नहीं है।


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रामदास अठावले और राजभर का बयान संकेत तो नहीं!
कहते है राजनीति में कुछ भी अचानक से नहीं होता। महाराष्ट्र में जिस तरह से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में दो फाड़ हुआ उसकी पटकथा पहले लिखी जा चुकी थी। ठीक उसी तरह यूपी में शिवपाल को लेकर दो नेताओं के बयान कहीं ये तो इशारा नहीं कर रहे है कि लोकसभा चुनाव से पहले चाचा शिवपाल भतीजे अखिलेश को जोर का झटका धीरे से न दें। वैसे भी शिवपाल यादव भी सपा में अपना भविष्‍य न देखकर कहीं एनडीए के साथ चले जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।