उनके बड़े भाई डॉ. सिद्धार्थ आनंद शर्मा भी होम्योपैथी के चिकित्सक हैं, जबकि बहन वैशाली आनंद शर्मा ऑस्ट्रेलिया में रहती हैं और शिक्षिका हैं। वैभव ने बताया कि बचपन से ही वह देखते थे कि उनके पिता होम्योपैथी अधिकारी हैं, फिर भी जिलाधिकारी को रिपोर्ट करते हैं।
ऐसे में शुरू से ही उनके मन में जिलाधिकारी के पद के प्रभाव को लेकर उत्सुकता बन गई थी। उन्होंने दिल्ली पब्लिक स्कूल से 92 फीसदी अंकों से दसवीं और 82 फीसदी अंकों से इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद वैभव ने जेपी इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन ब्रांच से बीटेक किया है। पढ़ाई पूरी करने के बाद दो वर्ष उन्होंने एक निजी कंपनी में मार्केटिंग विभाग में एग्जीक्यूटिव के पद पर नौकरी भी की है।
सोशल मीडिया से रहे दूर प्रतिदिन पढ़ा अखबार
वैभव ने बताया कि मैंने कोचिंग के बजाय स्वाध्याय से तैयारी करने को प्राथमिकता दी। प्रतिदिन छह से सात घंटे पढ़ते थे। पिछले वर्षों के प्रश्नपत्र को पढ़ने के साथ समाज में हो रहे घटनाक्रम को गहराई से समझते थे। इंटरनेट से कंटेंट जुटाकर पढ़ाई करते थे। कॅरिअर के लिहाज से कोई भी क्षेत्र नहीं है कम- वैभव
वैभव ने कहा कि युवाओं को आकांक्षाएं रखने की बहुत जरूरत है। वह किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। वह चाहें तो आर्किटेक्ट बनें, डॉक्टर बनें, गायक बनें, पत्रकार बन सकते हैं। समाज रूपी सुंदर गुलदस्ता बनाने के लिए यह सभी क्षेत्र बहुत जरूरी हैं। हमें सभी सफलता का जश्न मनाने की जरूरत है।