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देवशयनी एकादशी पर काशी में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब, गंगा स्नान और विष्णु पूजा से गूंजे घाट

देवशयनी एकादशी के मौके पर काशी में श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान और भगवान विष्णु की पूजा की। आइए जानते हैं इस दिन के महत्व, पौराणिक मान्यताएं और चातुर्मास की शुरुआत से जुड़ी खास बातें।

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देवशयनी एकादशी के मौके पर काशी में श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान और भगवान विष्णु की पूजा की। (Photo: IANS)

सनातन धर्म में विशेष महत्व रखने वाली देवशयनी एकादशी के पावन अवसर पर रविवार को काशी के गंगा घाटों पर श्रद्धालु उमड़ पड़े। श्रद्धालुओं ने सुबह दशाश्वमेध घाट सहित अन्य प्रमुख घाटों पर गंगा स्नान किया और भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की।

व्रत और पूजन का महत्व

मान्यता है कि इस दिन गंगा में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है और पुण्य फलों में वृद्धि होती है। सुबह से ही घाटों पर स्नान और पूजन का सिलसिला शुरू हो गया। दशाश्वमेध घाट पर महिलाओं के साथ ही बच्चे और बुजुर्ग भी आस्था की डुबकी लगाते नजर आए। प्रतापगढ़ से काशी पहुंचे श्रद्धालु शिवम ने बताया, “एकादशी के दिन गंगा नदी में स्नान करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यता है कि कई पाप और दोष खत्म हो जाते हैं।”

भक्ति में डूबा काशी का माहौल

राजन कुमार ने बताया, “गंगा में स्नान करने से तन-मन दोनों पवित्र हो जाते हैं और पूजा-पाठ से कई पुण्य फल मिलते हैं। हम लोग आज के दिन अन्न का त्याग कर फलाहार ही खाते हैं, व्रत रखते हैं और भोलेनाथ के साथ नारायण की पूजा करते हैं।”दशाश्वमेध घाट के पुरोहित विवेकानंद पाण्डेय ने बताया, “आषाढ़ मास की एकादशी है। आज के दिन व्रत-पूजन करने से कई लाभ मिलते हैं। भक्त भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वो उनके दुख-दर्द दूर करें।”

'हर-हर महादेव' और 'नारायण-नारायण' के जयघोष से घाटों का माहौल भक्तिमय बन गया। श्रद्धालुओं ने गंगा जल से भगवान विष्णु का अभिषेक किया, पीले फूल, तुलसी पत्र और पंचामृत अर्पित किए। वहीं, कई भक्तों ने विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी किया और दान-पुण्य के कामों में हिस्सा भी लिया। इस दिन किए गए दान को विशेष फलदायी माना जाता है।

मांगलिक कार्यों पर रहती है रोक

हिंदू धर्म में देवशयनी एकादशी का विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के लिए क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव संभालते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है, जो 6 जुलाई से शुरू होकर 1 नवंबर को देवउठनी एकादशी तक चलेगा। इस दौरान विवाह, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्यों पर रोक रहती है, क्योंकि मान्यता है कि भगवान विष्णु की अनुपस्थिति में शुभ कार्यों में उनका आशीर्वाद नहीं मिलता।