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यार शाहिद, बनारस तुम्हें याद करके बहुत रोयेगा

- यारों के यार थे बनारस के लाल और भारतीय हॉकी के मसीहा मोहम्मद शाहिद

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Ahkhilesh Tripathi

Jul 20, 2016

Mohammad shahid

Mohammad shahid

आवेश तिवारी
वाराणसी. बनारस में जब संकटमोचन मंदिर में धमाके हुए तो शाहिद ने कहा जिसने भी ये किया वह इंसान नहीं हो सकता और ख़ुदा को भी ऐसे लोगों पर शर्म कर रहा होगा कि उसने ऐसे लोगों को क्यों बनाया"। पूरी तरह से बनारस की बनारसियत को जीने वाले शाहिद न हिन्दू थे न मुसलमान वो सिर्फ एक खिलाड़ी थे।

ड्रिब्लिंग का मास्टर और भारतीय हॉकी के इतिहास का सबसे ताकतवर सेंटर फारवर्ड अब हमे छोड़कर जा चुका है।देश का गौरव बढ़ाने वाला हॉकी का यह खिलाड़ी हमेशा कहा करता था मेरा मंदिर तो मैदान है। अर्दली बाजार के छोरों के बीच शाहिद भाई के नाम से पुकारे जाने वाले मोहम्मद शाहिद की हथेलियो को वहां के युवाओं के कंधे हमेशा याद रखेंगे,चाहे चाय पान की दूकान हो या गली के किसी कोने में लगी अड़ी, शाहिद के होने भर से गुलजार हो जाया करती थी।शाहिद के पुराने मित्रों ने से एक पप्पू यादव कहते हैं "अब हमे कोई नहीं कहेगा का बे पप्पुआ बिहववा न करबे का ?

शाहिद के ज्यादातर मित्र हिन्दू खासतौर से यादव थे, जिन्हें बनारस में सरदार कहा जाता है। खुद हॉकी खेलने वाले शाहिद बाड़ी बिल्डर्स को देखकर बहुत खुश हुआ करते थे शायद यही वजह थी कि मोहम्मद शाहिद की मजलिस में कसरती देह वाले लड़कों की भरमार लगी रहती थी। एक बार का किस्सा मोहम्मद शाहिद की लोकप्रियता को बयां करता है।

बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद पूरे देश में हिंसा हुई थी बनारस में भी हालात बेहद ख़राब थे । मदनपुरा,रामापुरा,बजरडीहा और खुद शाहिद के मोहल्ले अर्दली बाजार में हालात बेकाबू हो रहे थे शाहिद उस वक्त दिल्ली में थे। उन्होंने अपने एक हिन्दू मित्र को फोन किया और अगले पांच मिनट में बनारस के मोहम्मद शाहिद के तमाम दोस्त उनके घर पर इकठ्ठा हो गया।

70 के दशक में जब शानदार खेल दिखाने के बावजूद मोहम्मद शाहिद को तीन मैचों से बाहर कर दिया गया तो हिंदी के एक अखबार में पत्रकार नरेंद्र नीरव ने उनका साक्षात्कार छापा था। नीरव कहते है "मैंने उन्हें अपने जीवन के सर्वाधिक मुश्किल वक्त में भी पत्थर की तरह अडिग खड़ा देखा है जो बात शाहिद को नागवार लग जाए उसे कहने में वो एक पल को भी विलम्ब नहीं लगता था।जब शाहिद को बाहर किया गया उन्होंने खुलकर अपनी बात कही।

शाहिद ने कहा कि खेल से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता। नतीजा यह हुआ कि उन्हें टीम में वापस ले लिया गया।बनारस शाहिद के रग रग में बसा हुआ था वो देश में जहां कही भी जाते बनारसियों को तलाशते। एक बार उनसे किसी ने पूछा अगर आप बनारस में न पैदा होते तो क्या होता ? शाहिद का जवाब था अगर मैं बनारस में पैदा न होता तो मैं शाहिद न होता।

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