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वाराणसी में मिली अमेरिका की नदी में पाई जाने वाली मछली, खा जाती है सभी छोटी मछलियों को, वैज्ञानिक चिंतित

- गंगा की पारिस्थितिकी के लिए है बेहद खतरनाक- मछुआरों की आजीविका के लिए बन सकती है संकट  

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Catfish

Catfish

वाराणसी. काशी की गंगा नदी (River ganga) में कैटफिश (Catfish) प्रजाति की एक मछली मिलने से वैज्ञानिकों के होश उड़ गए हैं। अचंभे की बात यह है कि मछली देशी नहीं बल्कि विदेशी है और अमेरिका की अमेजन नदी (Amazon river) में पाई जाती है। वैज्ञानिक इसलिए भी चिंतित है क्योंकि इसमें न ही कोई खाद्य गुणवत्ता है और न ही इनमें किसी प्रकार का औषधीय गुण है। यही नहीं, यह अपने से छोटी मछलियों व अन्य जलीय जीवों को भी खा जाती हैं। जो मछुआरों की अजीविका के लिए एक बड़ा खतरा है। साथ ही यह मछली गंगा की पारिस्थितिकी के लिए बेहद खतरनाक मानी जा रही है। मांसाहारी प्रवृत्ति की इस मछली का जंतु वैज्ञानिक नाम हाइपोस्टोमस प्लोकोस्टोमस है। विदेशों में इसे प्लैको नाम से भी जाना जाता है।

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24 सितंबर को काशी के दक्षिण में रमना गांव के पास गंगा में यह मछली मछुआरों के महाजाल में फंस गई। इस अजीबो गरीब मछली को देख कर मछुआरों ने इसकी सूचना गंगा प्रहरी दर्शन निशाद को दी। देहरादून के वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट में प्रशिक्षित दर्शन निशाद इसे देखते ही पहचान गए। उन्होंने उसे जीवित अवस्था में बीएचयू के जंतु विज्ञानियों तक पहुंचाया। साथ ही इस मछली की फोटो व वीडियो देहरादून के वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट की मछली विशेषज्ञ डॉ. रुचि बडोला को भी भेजी है। इससे पहले 3 सितंबर को सुनहरी रंग की सकर कैटफिश गंगा में सूजाबाद के पास मिली थी। बीएचयू के जंतु विज्ञानियों ने इस मछली के कारण होने वाले पारिस्थितिकीय परिवर्तनों के बारे में पता लगाने का काम शुरू कर दिया गया है। बीएचयू के जंतु विज्ञानी प्रो. बेचन लाल का कहना है कि उन्होंने बताया कि इन मछलियों को नदियों से समाप्त करना अब असंभव हो गया है।

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जलीय पारिस्थितिकी में असंतुलन का कारण-
बेचन लाल ने बताया कि यह जलीय पारिस्थितिकी में भयानक असंतुलन का कारण है। यह अपने से छोटी मछलियों ही नहीं बल्कि अन्य जलीय जीवों को भी खा जाती हैं। देसी मछलियों को प्रजनन के लिए विशेष परिस्थिति की जरूरत होती है, लेकिन हाइपोस्टोमस प्लोकोस्टोमस के साथ ऐसा नहीं है। ये मछलियां जल में किसी भी परिस्थिति में और कहीं भी प्रजनन कर सकती हैं।