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BHU बवाल: अभी तो एक लिटमस टेस्ट बाकी है

तीन अक्टूबर को खुलेगा विश्वविद्यालय तब एक और इम्तिहान होगा बीएचयू व जिला प्रशासन का. छात्रगुटों में तनाव। विपक्ष तैयारी में।

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छावनी में तब्दील बीेएचयू परिसर

बीएचयू परिसर

वाराणसी. लड़के-लड़कियों पर लाठीचार्ज के बाद बंद काशी हिंदू विश्वविद्यलाय नौ दिन के अवकाश के बाद तीन अक्टूबर को खुलेगा। इसे लेकर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर्स, कर्मचारी और छात्र बड़े ही संशय में हैं कि क्या सब कुछ सामान्य हो जाएगा। पठन-पाठन शुरू हो जाएगा कि फिर से कोई नया बखेड़ा शुरू होगा। लोग पशोपेश में हैं। परिसर में रहने वाले शिक्षक और कर्मचारी तक पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हैं। हालांकि ऊपरी मन से सभी कह रहे हैं कि अब सब कुछ सामान्य हो चला है, विश्वविद्यालय प्रशासन ने चाहे जैसे छात्राओं की मांगों को मान लिया है। उसके अनुरूप कार्य शुरू हो गए हैं। चीफ प्रॉक्टर बदल ही नहीं दिए गए बल्कि महिला चीफ प्रॉक्टर की नियुक्ति हो गई है। नई चीफ प्रॉक्टर ने मीडिया के मार्फत छात्र-छात्राओं के बीच सकारात्मक संदेश भी दिया है। बावजूद इसके छात्रा-छात्राओं का बड़ा समूह है जिसके बीच अभी भी आक्रोश है। वे छात्राएं जिन पर लाठियां बरसीं या वो जिन्होंने छात्रावास में ताला बंद होने के बाद अकेले ही पूरी रात सड़क पर गुजारी, जैसे-तैसे भोर में अकेले अपने स्थानीय अभिभावक के घर पहुंचीं। उनकी आपबीती सुन साथी छात्र-छात्राओं का मन अभी भी अंदर ही अंदर सुलग रहा है। इसी दरम्यान पुलिस कार्रवाई के तहत जिन छात्रों को नोटिस भेजी जा रही है वो भी सहमे हुए हैं कि कहीं उनकी गिरफ्तारी न हो। उनका कहना है कि नोटिस के माध्यम से कई धाराएं भी लगाई जा रही हैं। ऐसे में कहीं वो छात्र-छात्राएं जिन्होंने दो दिनों तक धरना दिया था उन पर कोई कार्रवाई होती है तो माहौल फिर से बिगड़ सकता है। वैसे भी छात्रों और प्रोफेसरों का भी यह मत है कि कोई भी आंदोलन हो, जो बवाल करते हैं,जिन्होंने पथराव किया या आगजनी की उनकी तो कोई पहचान हुई नहीं है, ऐसे में निरीह छात्र-छात्राएं ही फंसाए जाएंगे। पुलिस उन्हें ही हिरासत में ले या गिरफ्तार करे। अगर ऐसा होता है तो एक बार फिर से विश्वविद्यालय गर्म होगा। ऐसी आशंका जताई जा रही है।

वैसे विश्वविद्यालय के सुरक्षाकर्मी रमाशंकर कहते हैं कि लगता है कि सब कुछ सामान्य हो चला है। परिसर में लाइटिंग की समुचित व्यवस्था होने लगी है। सीसीटीवी कैमरे भी लगने लगे हैं। नई चीफ प्रॉक्टर ने मीडिया से बातचीत में जितनी बातें कहीं हैं उसका संदेश तो सकारात्मक ही जाता है। ऐसे में उम्मीद की जाती है कि तीन अक्टूबर को जब विश्वविद्यालय खुलेगा तो सब कुछ सामान्य रहेगा। कक्षाएं शुरू हो जाएंगी। प्रोफेसर अभी खुल कर मीडिया के सामने कुछ कहने को तैयार नहीं, लेकिन उनका भी कहना है कि ये दशहरा बाद का ही वो समय होता है जब कोर्स पूरा करने के लिए हर कोई पूरी तन्मयता से जुट जाता है। छात्र-छात्राओं से लेकर शिक्षक तक कोई कक्षा छोड़ना नहीं चाहता। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि माहौल शांत रहेगा।

लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि अकेले चीफ प्रॉक्टर को बदलने से क्या हो जाएगा। अभी उन वार्डेंन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई जिन्होंने पीड़ित छात्रा के साथ अशोभनीय बात की थी। छात्राओं के बीच तो उन्हें लेकर भी गुस्सा है। फिर इस पूरे मामले या इस तरह की किसी भी पूर्व की घटना से हमेशा खुद को अलग रखने वाले छात्र अधिष्ठाता प्रो. एमके सिंह पर भी सवाल उठने लगे हैं। पुराने छात्र-छात्राएं हों या विश्वविद्यालय संविधान को जानने वाले प्रोफेसर, उनका कहना है कि संवैधानिक व्यवस्था के तहत तो छात्र-छात्राओं के किसी आंदोलन या किसी समस्या के लिए जवाबदेह छात्र अधिष्ठाता होता है न कि चीफ प्रॉक्टर। चीफ प्रॉक्टर तो विश्वविद्यालय परिसर में विधि व्यवस्था कायम रखने के लिए होता है। कानून व्यवस्था का सवाल खड़ा होने की सूरत में ही उसकी जिम्मेदारी बनती है। इससे पहले की सारी जिम्मेदारी छात्र अधिष्ठाता की है। लेकिन पूर्व कुलपित डॉ लालजी सिंह के कार्यकाल से ही छात्र अधिष्ठाता प्रो. एमके सिंह अपनी जिम्मेदारी से हमेशा खुद को किनारे कर लेते हैं और सारा ठीकरा चीफ प्रॉक्टर पर फोड़ जिया जाता है। अगर छात्र अधिष्ठाता अपनी जिम्मेदारी का वहन करें तो कानून व्यवस्था बिगड़ने ही न पाए।

दूसरे छात्रों का बड़ा समूह पशोपेश में है। अंदर ही अंदर वो सुलग रहे हैं। उन्हें डर है कि विश्वविद्यालय खुलते ही पुलिस उनकी गिरफ्तारी शुरू कर देगी। अगर ऐसा होता है तो निःसंदेह यह मामला बिगाड़ने वाला खेल होगा। छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने मनमाने तरीके से एक हजार लोगों के खिलाफ मुकदमा करवा दिया है। इसमें वो ही सारे नाम हैं जिनकी सूची कुलपति और विश्वविद्यालय प्रशासन के पास पिछले तीन साल से पड़ी है। हर मामले में ठीक उसी तरह से उन्हीं नामों को थाने भेज दिया जाता है जैसे शहर या गांवों में कोई घटना होने पर पुलिस चिह्नित लोगों को पकड़ लाती है थाने। चाहे उनका सरोकार घटना से हो या न हो, दिन विशेष को वो शहर में हों या न हों। उनका कहना है कि इसके अलावा पहली बार विश्वविद्यालय में शुरू हुई क्राइम ब्रांच की जांच के तहत जो नोटिस भेजी जा रही है उसे लेकर भी संशय है, कहा तो जा रहा है कि जानकारी के लिए बुलाया जा रहा है कि अपना पक्ष रखें, लेकिन कहीं गए और वहीं मौके पर गिरफ्तार कर लिया गया तो। यह भय ही है कि कोई आगे नहीं आ रहा। यह भय भी विश्वविद्यालय के शांत होने की राह में बड़ा रोड़ा है। फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस बयान कि सभी छात्र-छात्राओँ पर से मुकदमा हटा लिया जाएगा, स्थानीय प्रशासन की ओर से अभी तक कोई पहल नहीं हई है। लिहाजा छात्रों में इसे लेकर बड़ा भय है कि विश्वविद्यालय खुलते ही बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां होंगी।

उधर वो लोग जिन्हें बड़े दिनों पर राजनीतिक रोटियां सेंकने को मिला है वो भी पूरा जो लगा देंगे अपनी ताकत का एहसास कराने में। तैयारियां जारी हैं। विश्वविद्यालय खुलते ही वो अपना पूरा जोर लगाएंगे एक बारगी। विश्वविद्यालय की बंदी के बाद कुलपति के तमाम विवादास्पद बयानों को लेकर शहर में सरगर्मी तेज है। सोशल मीडिया पर लगातार पक्ष-विपक्ष में द्वंद्व जारी है। ऐसे में यह मान लेना कि सब कुछ सामान्य हो जाएगा। विश्वविद्यालय की गाड़ी पटरी पर आ जाएगी ऐसा लग नहीं रहा है। कम से कम मौजूदा खामोशी कुछ और ही संकेत दे रही है।