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Liver Day 2022: एम्स का दर्जा प्राप्त BHU अस्पताल में लिवर ट्रांसप्लांट की सुविधा नहीं, होती तो बचाया जा सकता था ओलंपियन मो शाहिद को

Liver Day 2022: बनारस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संस्दीय क्षेत्र है। बनारस का सासंद बनने के बाद पीएम मोदी ने इसे हेल्थ हब के रूप में तब्दील करने की भरपूर कोशिश की। यहां तक कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल चिकित्सालय को एम्स का दर्जा दिलवा दिया। पर बनारस सहित पूरे पूर्वांचल में ऐसा कोई अस्पताल नहीं जहां लिवर ट्रांसप्लांट हो सके। काश कि ये सुविधा भी मिल जाती BHU को।

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बीएचयू अस्पताल (फाइल फोटो)

बीएचयू अस्पताल (फाइल फोटो)

वाराणसी. Liver Day 2022: बनारस पूर्वांचल की राजधानी मानी जाती है। इसी बनारस से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सांसद है। पिछले सात-साढे सात साल में उन्होंने बनारस की तस्वीर बदलने को कोई कोरकसर नहीं रख छोड़ा। खास तौर पर उन्होंने बनारस से पूरे पूर्वांचल क्या समूचे उत्तर भारत के लोगों के बेहतर इलाज के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के सर सुंदरलाल चिकित्सालय को एम्स का दर्जा दिला दिया। कैंसर संस्थान हो गया है यहां, डेंटल व आखों के इलाज के लिए बेहतर सुविधा हो गई है। इन सबके बावजूद एक कसक बनारस और पूर्वांचल के लोगों को है, यहां लिवर ट्रांसप्लांटेशन की कोई व्यवस्था नहीं है, अन्यथा ओलंपियन मोहम्मद शाहिद को इलाज के लिए बनारस से बाहर नहीं जाना होता। समय से लिवर ट्रांसप्लांटेशन की सुविधा मिली होती तो हाकी के जादूगर को बचाया जा सकता था।

बीएचयू के गैस्ट्रो विभाग में 6-7 हजार लिवर सिरोसिस के मरीज आते हैं महीने में

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल चिकित्सालय के गैस्ट्रो विभाग में हर महीने लिवर सिरोसिस के 6-7 हजार मरीज आते हैं। इसमें से करीब डेड हजार को लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है। इसी में एक ओलंपियन मो शाहिद भी थे। उनका भी इलाज यहीं चल रहा था। इसी गैस्ट्रो विभाग में और डॉक्टर थे प्रो वीके दीक्षित। लेकिन जब हालात ज्यादा बिगड़ गए तो मेदांता के लिए रेफर करना पड़ा। वो भी लिवर ट्रांसप्लांट के लिए। वो गए पर जिंदा वापस नहीं लौटे।

पांच साल पहले बना था लिवर ट्रांसप्लांट का प्रोजेक्ट

बीएचयू के सर सुंदरलाल चिकित्सालय में लिवर ट्रांसप्लांट के लिए पांच साल पूर्व प्रोजेक्ट तैयार किया गया था। प्रोजेक्ट शासन को भी भेजा गया। लेकिन तब से अब तक यहां का प्रशासन इंतजार ही कर रहा है उस प्रोजेक्ट को हरी झंडी मिलने का। लिहाजा बीएचयू हॉस्पिटल आने वाले मरीजों को गुड़गांव, दिल्ली, मुंबई या ऐसे ही अन्य महानगरों की ओर भागना पड़ता है। इससे इलाज का खर्च और बढ़ता है साथ ही मरीज के साथ जो तीमारदार जाते हैं उनके लिए अलग खर्च। एक अनुमान के अनुसार ऐसे मरीजों को दूसरे शहर में ले जाने और लिवर ट्रांसप्लांट कराने पर 15-20 लाख रुपये का खर्च आता है।

प्राइवेट हॉस्पिटल में लिवर ट्रांसप्लांट की राह कमजोर तबके के बस की नहीं
गैस्ट्रो विभाग के अध्यक्ष प्रो वीके दीक्षित भी ये मानते हैं कि कमजोर तबके के मरीजों के लिए प्राइवेट हॉस्पिटल में लिवर ट्रांसप्लांट करा पाना संभव नहीं।