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Mumukshu Bhawan: यहाँ लोग मरने के लिए बुक कराते हैं कमरे, देह त्यागने के लिए पन्द्रह दिन की मिलती है मोहलत

यहां के 116 कमरों में से 40 कमरे मृत्यु का इंतज़ार करने वाले काशीवासियों के लिए आवंटित हैं। इस भवन की व्यवस्था देखने वालों के मुताबिक इस भवन में रहने के लिए हर साल ढेरों आवेदन आते रहते हैं लेकिन कमरों की संख्या सीमित होने की वजह से कुछ को ही यहाँ रहने का सौभाग्य प्राप्त होता है।

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Mumukshu Bhawan: यहाँ लोग मरने के लिए बुक कराते हैं कमरे

Mumukshu Bhawan: यहाँ लोग मरने के लिए बुक कराते हैं कमरे

Mumukshu Bhawan. हिंदुओं के लिए दुनिया के सबसे पवित्र शहरों में से एक है काशी जिसे लोग बनारस और वाराणसी के नाम से भी जानते हैं। यह वो शहर हैं जहाँ लोग मोक्ष की तलाश में सदियों से यहां आते रहे हैं। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक यहाँ मरने से और गंगा किनारे दाह-संस्कार होने से जन्म-मरण का चक्र टूट जाता है और मोक्ष मिलता है। कहते हैं कि महाभारत युद्ध जीतने के बाद पांडव भी अपने पापों से मुक्ति के लिए काशी आए थे। यहाँ एक तरफ सैलानी और तीर्थयात्री नावों में बैठकर घाट घूमते हैं, तो दूसरी तरफ चिता से उठते धुएं के बीच पुजारियों और मृतक के परिजनों को मरने वाले की आत्मा की शांति के मंत्रोच्चार करते देखा जा सकता है।

मुमुक्षु भवन

मुक्ति के लिए काशी आने वाले पुरुषों और महिलाओं को काशीवासी कहा जाता है। उनके लिए विशेष लॉज बने हुए हैं जिनको चैरिटी संगठनों और व्यापारिक समूहों से दान मिलता है। मुमुक्षु भवन इस तरह के सबसे पुराने प्रतिष्ठानों में से एक है। यहां के 116 कमरों में से 40 कमरे मृत्यु का इंतज़ार करने वाले काशीवासियों के लिए आवंटित हैं। इस भवन की व्यवस्था देखने वालों के मुताबिक इस भवन में रहने के लिए हर साल ढेरों आवेदन आते रहते हैं लेकिन कमरों की संख्या सीमित होने की वजह से कुछ को ही यहाँ रहने का सौभाग्य प्राप्त होता है। इस भवन में सिर्फ उन्हीं लोगों को प्राथमिकता दी जाती है जो ज़्यादा ज़रूरतमंद होते हैं, जो अपने ख़र्च उठा सकते हैं और जिनके रिश्तेदार उनकी सेहत और मृत्यु के बाद दाह-संस्कार की ज़िम्मेदारी उठा सकते हैं।

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60 साल से कम उम्र के लोग नहीं रुक सकते

इस भवन में 60 वर्ष से ज्यादा के ऊपर के लोगों को नहीं रुकने दिया जाता। काशीवासी अपनी क्षमता के अनुसार करीब एक लाख रुपये का दान देते हैं तो उनको एक कमरा आवंटित कर दिया जाता है, जहां वे मरने तक रह सकते हैं।

15 दिन वाले मेहमान

मुक्ति भवन में अधिकतम 15 दिन रहने की ही अनुमति है। अगर व्यक्ति इस दौरान नहीं मरता तो उसे विनम्रता के साथ चले जाने के लिए कहा जाता है। हालांकि कुछ अपवाद में कभी-कभी आदमी की सेहत देखकर मैनेजर उसे कुछ दिन और रुकने की अनुमति दे सकते हैं।

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यहां रहने के हैं कुछ नियम

इस भवन में एक छोटा मंदिर भी है जहां प्रतिदिन भजन-कीर्तन होता है। यहां ताश के पत्ते खेलने, यौन क्रिया में लिप्त होने, मांस, अंडे और प्याज-लहसुन खाने की मनाही है।