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कोई मुस्लिम चेहरा या महिला नेता, कौन होगा कांग्रेस पार्षद दल का नेता

इस बार के चुनाव में पार्टी को मिला अल्पसंख्यकों का सहारा, जीते 15 अल्पसंख्यक पार्षद। महिलाओं की हिस्सेदारी 12 की।

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वाराणसी  नगर निगम

नगर निगम वाराणसी

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी. नगर निकाय चुनाव परिणाम आने के बाद अब पार्षद दल के नेता पद को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है। खास तौर पर कांग्रेस में। चर्चा में खास यह कि इस बार पार्षद दल का नेता कोई मुस्लिम होगा या महिला। वजह साफ है, पर्टी के जितने पार्षद विजयी हुए हैं उसमें अल्पसंख्यकों की तादाद सबसे ज्यादा है और उसके बाद हैं महिला पार्षद। ऐसे में इस लिहाज से जिसकी जितनी भागीदारी उसकी उतनी हिस्सेदारी। यानी इस बार कांग्रेस पार्षद दल का हक बनता है तो किसी मस्लिम या महिला का। यह सुनगुनी अब तेज हो गई है। इसे कुछ हिंदू नेता भी हवा दे रहे हैं। उनका तर्क है कि नगर निगम में संख्याबल के आधार पर नेता का चयन होना चाहिए।


बता दें कि पार्टी के जो 22 पार्षद विजयी हुए हैं उसमें अल्पसंख्यकों की तादाद ज्यादा है। कांग्रेस के 15 मुस्लिम पार्षदों ने इस बार जीत हासिल की है जबकि 12 महिला पार्षद विजयी हुई हैं। महज सात हिंदू पार्षद विजयी हुए है। ऐसे में वाजिब हक तो बहुसंख्यक वर्ग का ही बनता है। लेकिन अगर अनुभव को तरजीह दी जाती है तो ऐसे में अल्पसंख्यक वर्ग का दावा ज्यादा मजबूत है। कारण इसी वर्ग से एक पार्षद ऐसे हैं जो दूसरी बार जीत कर नगर निगम पहुंचे हैं। महिलाओं में सभी अनुभवहीन हैं। वो पहली बार नगर निगम पहुंची हैं। जहां तक बहुसंख्यक समुदाय की बात है तो इसमें महानगर अध्यक्ष व पिछली बार पार्षद दल के नेता रहे सीताराम केशरी हैं तो दूसरे हैं संजय डॉक्टर। वहीं मुस्लिम वर्ग का नेतृत्व कर रहे हैं रमजान अली जिन्होंने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की है। ऐसे में पार्टी के नेताओँ का तर्क है कि अल्पसंख्यकों ने पार्टी की हर पद के लिए जोरदार समर्थन दिया है। चाहे वह मेयर पद का चुनाव रहा हो या पार्षद पद का। अल्पसंख्यकों के ही मत से मेयर पद का कोई कांग्रेसी 1995 के बाद से पहली बार एक लाख मतों की संख्या पार कर सका है। इससे पहले शमीम अहमद ही 85 हजार मतों तक पहुंच पाए थे। ऐसे में मुस्लिम पार्षद का पलड़ा भारी दिखता नजर आ रहा है।

ऐसे में जब कांग्रेस संकट में जूझ रही है तो पिछले विधानसभा चुनाव में भी मुस्लिम मतदाताओं ने भरपूर समर्थन किया था। फिर नगर निगम चुनाव में भी उन्होंने भरोसा जताया है। लिहाजा कम से कम एक ऐसा वर्ग जो लंबे समय तक कांग्रेस का वोटबैंक माना जाता रहा था वह सपा और बसपा की ओर खिसक गया था और जब वह दोबारा कांग्रेस के प्रति भरोसा जता रहा है तो संगठन को भी इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। इस संबंध में पार्टी के वरिष्ठ नेता अनिल श्रीवास्तव 'अन्नू' भी इसका समर्थन करते हैं कि यह सवाल तो वाजिब है। उनका कहना है कि अगर नगर निगम में सर्वाधिक पार्षद अल्पसंख्यक वर्ग से हैं तो नेता भी उस वर्ग से होना चाहिए। हालांकि अन्नू यह भी कहते हैं कि यह पार्षदों पर निर्भर करेगा कि वो किसे अपना नेता चुनते हैं। लोकतंत्र में यही तो व्यवस्था और परंपरा रही है अब तक। नेता पद ऊपर से थोपा नहीं जाना चाहिए। कांग्रेस पूरी तरह से लोकतांत्रिक परंपराओं में विश्वास करने वाली पार्टी है।