30 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

BHU में नेताओं की एंट्री पर बवाल! कांग्रेस बोली- शिक्षा के मंदिर को बना रहे राजनीतिक अड्डा, नहीं बनने देंगे RSS की शाखा

Varanasi News: बीएचयू की नई कार्यकारिणी परिषद में पूर्व मंत्री, मेयर और भाजपा नेताओं की नियुक्ति पर कांग्रेस ने विरोध जताया है। प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने इसे विश्वविद्यालय का "राजनीतिकरण" बताते हुए कहा कि बीएचयू को आरएसएस का अड्डा नहीं बनने देंगे।

3 min read
Google source verification
Ruckus over entry of politicians in BHU in varanasi

BHU में नेताओं की एंट्री पर बवाल! Image Source - Social Media

Ruckus over entry of politicians in BHU in Varanasi: देश के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में शुमार काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में नई एक्जीक्यूटिव काउंसिल (EC) की घोषणा के साथ ही सियासत गरमा गई है। चार साल बाद गठित हुई कार्यकारिणी परिषद में नेताओं की नियुक्ति को लेकर कांग्रेस ने कड़ा विरोध जताया है।

उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय, वाराणसी के मेयर अशोक तिवारी और भाजपा के क्षेत्रीय अध्यक्ष दिलीप पटेल की नियुक्ति पर नाराजगी जताते हुए तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि "BHU को भाजपा और आरएसएस का अड्डा नहीं बनने देंगे। यह शैक्षणिक संस्थान है, राजनीतिक प्रयोगशाला नहीं।"

शिक्षाविदों की जगह भाजपाई क्यों? कांग्रेस ने खड़े किए कई सवाल

अजय राय ने कहा कि कार्यकारिणी परिषद में शामिल अधिकांश सदस्य शैक्षणिक पृष्ठभूमि से नहीं हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि "विश्वविद्यालय की कार्यकारिणी में योग्य शिक्षाविदों, पद्म सम्मानित विद्वानों और वैज्ञानिकों की बजाय भाजपा नेताओं को शामिल करना संस्थान की गरिमा को ठेस पहुंचाने जैसा है।"

उन्होंने यह भी जोड़ा कि “देश में हजारों ऐसे योग्य प्रोफेसर, वैज्ञानिक और विद्वान हैं जो शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दे चुके हैं। लेकिन मोदी सरकार की मंशा विश्वविद्यालयों को शिक्षा केंद्र के बजाय राजनीतिक विचारधारा का केंद्र बनाने की है।”

केंद्र सरकार की अधिसूचना से हुआ खुलासा

बुधवार को शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग की ओर से जारी एक पत्र के अनुसार, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु (जो कि BHU की विजिटर हैं) ने कार्यकारिणी परिषद के आठ सदस्यों को नामित किया। यह पत्र BHU के कुलसचिव कार्यालय को केंद्र सरकार के अनु सचिव प्रवीर सक्सेना के माध्यम से प्राप्त हुआ।

लेकिन इस सूची में जब प्रमुख नाम भाजपा नेताओं के सामने आए, तो राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई। कांग्रेस ने इसे "BHU का आरएसएस करण" करार दिया।

योग्यताओं पर उठे सवाल

अजय राय ने प्रेस वार्ता में कहा - "BHU की पहचान विश्व स्तरीय शोध और शिक्षा केंद्र के रूप में रही है। लेकिन भाजपा सरकार इसे विचारधारा थोपने और पदों पर अपनों को बैठाने का अड्डा बना रही है। यह न केवल संस्थान के वर्तमान को प्रभावित करेगा बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के साथ भी अन्याय है।"

कांग्रेस का कहना है कि जब विश्वविद्यालय में स्थायी कुलपति थे, तब कार्यकारिणी परिषद ही नहीं थी। अब जब परिषद गठित हुई है, तो कुलपति कार्यवाहक हैं। यह स्थिति स्वयं में एक विरोधाभास है और बताती है कि नियुक्तियां कैसे मनमाने ढंग से की गई हैं।

कौन-कौन हैं BHU कार्यकारिणी परिषद के सदस्य?

डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय – पूर्व केंद्रीय मंत्री, पूर्व सांसद, चंदौली
अशोक तिवारी – महापौर, वाराणसी नगर निगम
दिलीप पटेल – भाजपा क्षेत्रीय अध्यक्ष, अध्यक्ष, आदर्श जनता महाविद्यालय चुनार (मिर्जापुर)
प्रो. योगेश सिंह – कुलपति, दिल्ली विश्वविद्यालय
प्रो. ओमप्रकाश भारतीय – समाजशास्त्र विभाग, BHU
प्रो. श्वेता प्रसाद – समाजशास्त्र विभाग, BHU
प्रो. (सेवानिवृत्त) बेचन लाल – प्राणीशास्त्र विभाग, BHU
प्रो. (सेवानिवृत्त) उदय प्रताप शाही – रेडियोथेरेपी एवं विकिरण चिकित्सा विभाग, BHU

कांग्रेस की चेतावनी संसद से सड़क तक होगा विरोध

अजय राय ने एलान किया कि यदि सरकार ने यह निर्णय वापस नहीं लिया, तो कांग्रेस पूरे देश में आंदोलन छेड़ेगी। "BHU जैसे संस्थान में राजनीति की घुसपैठ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। कांग्रेस इसका पुरजोर विरोध करेगी और योग्य लोगों की नियुक्ति की मांग को लेकर संसद से लेकर सड़क तक आंदोलन चलाएगी।"

क्या कहता है शिक्षा जगत?

शिक्षाविदों का कहना है कि विश्वविद्यालयों की कार्यकारिणी परिषद में योग्य और निष्पक्ष शिक्षाविदों का होना बेहद जरूरी है, जिससे शैक्षणिक वातावरण बना रहे और राजनीतिक प्रभाव से संस्थानों को बचाया जा सके।

कई विशेषज्ञों ने इस बात पर चिंता जताई कि अगर विश्वविद्यालयों को राजनीतिक विचारधाराओं के आधार पर संचालित किया जाएगा, तो उनका अकादमिक स्वतंत्रता और गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।