आजादी की लड़ाई के कद्दावर नेता जो भारतीय जनता के बीच लोकप्रिय रहे, जैसे गांधी, खान अब्दुल गफ्फार खान, अम्बेडकर, बोस, भगत सिंह, तिलक, नेहरू, मौलाना आजाद, पटेल, टैगोर व अन्य, अपने विचारों व रणनीति में फर्क को अलग रखकर इन साझा मूल्यों पर सहमत थे। वे बहुलतावाद, धर्म-निपेज़्क्षता, न्याय, लोकतंत्र जैसा मूल्यों पर कोई समझौता नहीं करने को तैयार थे। यही वजह है कि ये मौलिक मूल्य हमारे संविधान की भी आत्मा में हैं और हमारे राष्ट्रीय प्रतीकों जैसे तिरंगे या जय हिन्द के नारे में भी। यदि राष्ट्रवाद की भावना धार्मिक प्रतीकों जैसे भारत माता के साथ जोड़ कर देखी जाने लगी तो समाज में बंटवारा व तनाव फैलेगा। अतार्किक उत्तेजना का परिणाम खुलेआम हत्याएं भी हो सकती हैं जैसे कि दादरी व झारखण्ड में एक अन्य भावनात्मक मुद्दे - गोरक्षा और गोमांस - पर हुईं। भगत सिंह ने युवाओं को इस किस्म के धार्मिक-राष्ट्रवाद के विचार से सावधान भी किया था।