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शती के दांत गिरने से काशी में हुई थी इस माता की उत्पत्ति, नवरात्रि के इस दिन दर्शन करने पर पूरी होती है मनोकामना

नवरात्रि के सप्तमी पर दर्शन करने का है विधान, वाराही देवी क्षेत्र पालिका के रूप में करती है काशी की रक्षा  

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Varahi Devi

Varahi Devi

वाराणसी. जिस तरह काशी के कोतवाल कालभैरव काशी को बाहरी बाधाओं से बचाने का जिम्मा सम्भालते हैं वैसे ही काशी में मां वाराही देवी क्षेत्र पालिका के रूप में काशी की रक्षा करती हैं। इनका मंदिर वाराणसी के दशाश्वमेध घाट के मानमंदिर घाट के कुछ मीटर की दूरी पर गलियों के बीच में बसी हुई हैं। गलियों के बीच में मां वाराही देवी की स्वयंभू प्रतिमा है। मां के महात्म्य के बारे में बताया कि शक्तिपीठ होने से इनके समक्ष निर्मल मन से जो मांगा जाय पूरी होती है। इन्हें गुप्त वाराही भी कहा जाता है। जबकि पुराणों के अनुसार मां शती का जिस स्थान पर काशी में दांत गिरा था वहीं मां वाराही देवी उत्पन्न हुई थीं। इसलिए इन्हें शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि मां वाराही असुरों से युद्ध के समय मां दुर्गा के सेना की सेनापति भी थी। मान्यता यह भी है कि इनके दर्शन मात्र से सभी तरह के कष्ट से मुक्ति मिलती है और आयु और धन में वृद्धि होती है।

नवरात्रि के सप्तमी को दर्शन का है विधान
नवरात्रि के सप्तमी को मां के दर्शन का विधान है। मंगलवार और शुक्रवार को इस मंदिर में काफी भीड़ देखने को मिलती है। वाराही देवी का यह मंदिर दर्शनार्थियों के लिए केवल सुबह ही खुला रहता है। मंदिर प्रात: काल साढ़े 4 बजे से सुबह 9 बजे तक ही खुला रहता है।

दर्शन मात्र से भक्तों की पूरी होती है मुरादें
मान्यता है कि जो भी यहां अपनी मुरादें लेकर आता है, मां झट से उसे पूरी कर देती हैं। यहां पूरे साल भक्तों की भारी भीड़ रहती है। जो यहां आकर सच्चे दिल से मां का दर्शन करता है मां उसकी झोली खुशियों से भर देती हैं।

25 मिनट तक कराया जाता है माता को स्नान
वाराही देवी को मंदिर खुलते ही 25 मिनट तक स्नान कराया जाता है। फिर 5 बजे आरती शुरू होती है। मान्यता है कि माता को शास्त्रीय संगीत बहुत पसंद है इसलिए इनकी आरती शास्त्रीय संगीत के साथ ही होती है। इनकी आरती करीब डेढ़ घंटे तक होती है।

कैसे पहुंचे इनके स्थान
वाराही देवी का मंदिर कैंट स्टेशन से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए ऑटो से गोदौलिया चौराहे पर पहुंचकर वहां से पैदल दशाश्वमेध घाट होते हुए मानमंदिर घाट की सीढियों के ऊपर चढ़ने पर कुछ मीटर की दूर पर गलियों के बीच में मां वाराही देवी का दिव्य मंदिर स्थित है। इनके मंदिर के पास ही द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक सोमनाथ के प्रतिरूप सोमेश्वर महादेव का भी मंदिर स्थित है।