
शालिनी यादव
वाराणसी. जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजीदक आता जा रहा है, विभिन्न राजनीतिक दलों और दावेदारों की सक्रियता तेज होती जा रही है। इधर बीच जब से प्रियंका गांधी को कांग्रेस का महासचिव और पूर्वी ईस्ट का प्रभारी बनाया गया है, कांग्रेसजनों में जबरदस्त उत्साह है। लोगों ने अपने स्तर से तैयारी शुरू भी कर दी है। इसी कड़ी में अब पिछले साल बनारस कांग्रेस से मेयर का चुनाव लड़ने वाली और एक लाख से ऊपर वोट पाने वाली शालिनी यादव के नाम की चर्चा भी जोरों पर चलने लगी है। बताया जा रहा है कि वह अपने ससुर राज्यसभा के उपसभापति रहे यादव की कर्मस्थली चंदौली से लोकसभा 2019 का चुनाव लड़ेंगी। इसे ले कर तैयारी भी शुरू हो चुकी है।
बता दें कि पिछले साल हुए मेयर के चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी मृदुला जायसवाल को 1 लाख 92 हजार 188 वोट जबकि कांग्रेस प्रत्याशी शालिनी यादव को को 1 लाख 13 हजार 345 वोट मिले थे। मेयर चुनाव में भले ही शालिनी यादव को जीत नहीं मिली पर पहली बार ऐसा हुआ कि कोई कांग्रेस प्रत्याशी एक लाख से ज्यादा वोट पाया हो। उस उपलब्धि के बाद से शालिनी हमेशा सक्रिय रहीं, चाहे बनारस हो या चंदौली दोनों ही जगह उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। पार्टी के लिए भी उन्होंने बेहतर काम किया। हर छोटे-बड़े मुद्दों को लेकर वह सड़क पर उतरीं। यही वजह थी कि निवर्तमान कांग्रेस महासचिव व उत्तर प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने उस वक्त उन्हें नेशनल मीडिया के सामने प्रोजेक्ट किया जब संसद में तीन तलाक का गर्म था।
बता दें कि यादवों में दो ग्रुप हैं ग्वाल और ढरोर। जहां तक शालिनी का सवाल है तो वह ग्वाल बिरादरी से आती हैं जिसका वर्चस्व चंदौली संसदीय क्षेत्र में कहीं ज्यादा है। फिर सकलडीहा जहां से उनके ससुर आजादी के बाद से यानी 1955 से ही सक्रिय रहे। वह मुगलसराय से तीन बार विधायक रहे। बताया तो यहां तक जाता है कि राज्यसभा के उपसभापति रहे श्याम लाल यादव ने जीवन के अंतिम दिनों तक चंदौली संसदीय क्षेत्र और सकलडीहा, मुगलसराय के लोगों के लिए काम किया। उनकी मदद की। यह श्याम लाल यादव की ही देन है कि सकलडीहा में उन लोगों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित किया गया जिन्होंने ब्रिटिश काल में मुगलसराय से पटना जाने वाले रेल रूट को उखाड़ा था। ऐसे करीब डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित करा कर श्यामलाल जी ने उन्हें पेंशन दिलवाई, सकलडीहा में शहीद स्थल की स्थापना कराई जिसके शिलापट्ट पर उन सभी क्रांतिकारियों के नाम खुदे हैं। यादव परिवार का सकलडीहा में एक कन्या इंटर कॉलेज है तो एक डिग्री कॉलेज भी है और वह भी श्यामलाल जी की देन है।
जहां तक जातीय समीकरण का सवाल है तो ग्वाल यादव की ही तादाद दो से ढाई लाख है। इसके अलावा चंदौली के ब्राह्णण भी श्यामलाल जी के समर्थकों में माने जाते हैं। मुस्लिम व अन्य पिछड़ा वर्ग का भी यादव जी और उनके परिवार को समर्थन मिल सकता है। फिर चंदौली संसदीय सीट का बड़ा हिस्सा बनारस में भी पड़ता है और खास तौर पर शिवपुर विधानसभा क्षेत्र। इस क्षेत्र में पिछले करीब छह महीने से ज्यादा वक्त से शालिनी यादव सक्रिय है। उन्होंने स्वतंत्र रूप से शिवपुर विधानसभ क्षेत्र में काम किया है। महंगाई के मुद्दे पर जब वह लहुराबीर स्थित आजाद पार्क में धरना देने बैठीं तो शिवपुर विधानसभा क्षेत्र की महिलाओँ और पुरुषों का जत्था भी शामिल था।
सूत्र बताते हैं कि अगर शालिनी यादव चंदौली से कांग्रेस प्रत्याशी बनती हैं तो उन्हें सपा-बसपा गठबंधन के अलावा भाजपा के असंतुष्ट गुट का भी परोक्ष रूप से समर्थन मिल सकता है। ऐसे बहुत सारे लोग यादव परिवार के संपर्क में हैं। ऐसे में एक फरवरी को प्रियंका गांधी के विदेश से लौटने के बाद यह मसला तेजी से उठ सकता है। बताया जा रहा है कि यादव परिवार जल्द ही प्रियंका से मिलेगा। कांग्रेस सूत्र बताते हैं कि अगर शालिनी को चंदौली से कांग्रेस का टिकट मिलता है और पीएम नरेंद्र मोदी की तर्ज पर प्रियंका गांधी चुनाव के वक्त वाराणसी मंडल में कैंप करती हैं तो लंबे अरसे बाद इस सीट के कांग्रेस की झोली में जाना तय माना जा रहा है। इसे लेकर कांग्रेस के बडे खेमे में हलचल है। माना जा रहा है कि शालिनी के रूप में पार्टी को एक बेदाग और जुझारू चेहरा मिलेगा जो लोगों को पसंद आएगा। हालांकि यह तय होगा कि स्थानीय कांग्रेस और यादव परिवार इसके लिए किस स्तर से अपनी दावेदारी पेश करता है, प्रियंका गांधी को किस हद कनविंस कर पाता है
वैसे भी जहां तक चंदौली सीट का सवाल है तो यह सीट भारतीय गणतंत्र घोषित होने के शुरूआती वर्षों में कांग्रेस ही काबिज रही। यहां से पंडित कमलापति त्रिपाठी सासंद रहते थे।
चंदौली सीट की स्थिति
2014- डॉ महेंद्र नाथ पांडेय- भाजपा
2009- रामकिशुन- सपा
2004-कैलाश नाथ सिंह यादव-बसपा
1999- जवाहर जायसवाल-सपा
1998-आनंद रत्न मौर्य-भाजपा
1996- आनंद रत्न मौर्य-भाजपा
1991-आनंद रत्न मौर्य-भाजपा
1989-कैलाश नाथ सिंह यादव-जनता दल
1984-चंद्रा त्रिपाठी-कांग्रेस
1980-निहाल सिहं-जेएनपी
1977-नरसिंह-बीएलडी
1971-सुधाकर पांडेय-कांग्रेस
Published on:
27 Jan 2019 02:24 pm
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