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आमतौर पर यह डिविजन मैदानी इलाकों में 30 से 40 किमी के क्षेत्र में युद्ध करने के लिए प्रशिक्षित थी लेकिन अब उसे हजारो वर्ग किलोमीटर में फैले पहाड़ी क्षेत्र में चीन से मुकाबला करना था। उस वक्त अरुणांचल प्रदेश में भारत के पांच फ्रंटियर डिविजन थे मगर कोई सड़क नहीं थे, उस पर से पहुँचते ही क्वार्टर मास्टर जनरल ने तत्काल आपरेशन अमर शुरू करने का हुक्म दिया। चौकिये मत इन्हें कोई युद्ध नहीं लड़ना था बल्कि अपने लिए बांस के मकान बनाने थे जिसे 'बांसा' कहा जाता है।
जब सितम्बर 1962 में चीन ने मैकमोहन लाइन के पास ढोला पोस्ट पर कब्ज़ा जमा लिया अचानक जनरल बी एम् कौल 8 अक्टूबर को तेजपुर पहुंचे उन्होंने कहा कमांडिंग की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई है। मुकाबला कडा होने जा रहा था और जनरल तिवारी की जिम्मेदारी भी बढने जा रही थी। हेडक्वार्टर का हुक्म था कि कोई भी सन्देश टेलीग्राफिक भाषा में नहीं भेजे जायेंगे ,उन्हें एक लिफ़ाफ़े में रखकर भेजा जाना था और उस पर टॉप सीक्रेट लिखा जाना था ,यह खतरनाक था मगर आदेश था '।
जनरल तिवारी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है हमें चीनी कैद में माओवादी साहित्य पढने को दिया जाता था ,वो कहते थे कि रेड बुक पढो ,मैने पढ़ी लेकिन मुझे लता मंगेशकर के उस गाने का इन्तजार रहता था जो अक्सर चीनी कैम्पों में बजता था "आजा रे अब मेरा दिल पुकारा ..।" युद्ध खत्म होने के कुछ दिन बाद एक दिन जनरल कौल मेजर जनरल तिवारी से दिल्ली के एक बैंक में मिले । जनरल तिवारी दौड़ कर गए और कहा " सर मुझे पहचाना ,मैं आपका कमांडिंग आफिसर सिग्नल ', जनरल कौल ने यह सुनते ही तिवारी को गले से लगा लिया और कहा 'तुम पहले अधिकारी हो किशन, जिसने मुझे पहचाना ,रिटायरमेंट के बाद मेरे साथ काम करने वाले भी मुझे देखते हैं तो मुंह फेर लेते हैं ।'Published on:
24 Jul 2017 03:04 pm
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