
पति की मौत के बाद घर चलाने और बच्चों की परवरिश करने के लिए पति के स्थान पर नौकरी करने के सिवा कोई विकल्प न था इसलिए अनुकंपा नियुक्ति पर पोस्टमेन की नौकरी स्वीकार कर ली और तब से लेकर आज दिन तक यह बेबस महिला अंजू गुप्ता हर रोज पैदल चलकर तकरीबन 50 किमी की दूरी तय करके लगभग 60 चिट्ठियां बांटकर लोगों के साथ उनके सुख-दु:ख साझा करने का काम कर रही है, लेकिन इस एवज में इसे सरकार से मात्र 6 हजार रुपए ही वेतन के रुप में दिए जा रहे है। इससे दो बच्चों की शिक्षा, बूढ़ी मां का इलाज व घर खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। लेकिन बच्चों का भविष्य संवारने के लिए अंजू रोजाना ही बिना किसी संसाधन के झौला लटकाए हुए 5 गांवों की डाक बांटने का काम कर रही है।
डाक विभाग के हिसाब से एक दिन में तकरीबन 50 से 60 चिट्ठियां बंटनी चाहिए। इस टारगेट को पूरा करने के लिए सुबह से शाम तक ये गांव-गांव भटकती रहती है। चौंकाने की बात है कि यदि ये बीमार पड़ जाए तो सरकार की ओर से इसे कोई रिलीवर भी नहीं दिया जाता है। इसे ही पेंडिंग चिट्ठियां भी बांटनी होती है। मुफलिसी व लाचारी की दास्तां झेल रही ये कहानी सिर्फ अंजू की ही नहीं है बल्कि पूरे राज्य मेें ऐसी 200 महिला डाककर्मी है जिन्हें सरकार से न्याय की दरकार है लेकिन सरकार ने चुप्पी साध ली है।
केंद्र सरकार भले ही 'डिजिटल इंडिया' के तहत डाक सेवा संबंधी सारे काम आॅनलाइन करने की बाते करती हो लेकिन राज्य में डाक कर्मचारियों की स्थिति बेहद दयनीय है। खासतौर पर गांव-ढाणियों में डाक बांटने वाली महिला पोस्टमेन की। यदि एक नजर प्रदेश की डाक व्यवस्थाओं पर नजर डालें तो हालात बद से बदतर है।
फेक्ट फाइल
देशभर में है करीब 2 लाख 70 हजार डाक कर्मचारी
राज्य में है 13 हजार
इनमें 200 महिला डाककर्मी
3000 खाली है पोस्ट
जबकि राज्य में हैं 8 हजार 934 डाकघर
नहीं आती साइकिल चलाना
अधिकतर महिला पोस्टमैन को साइकिल चलाना नहीं आता है और गांव-गांव जाकर डाक बांटना बस या अन्य साधन से संभव नहीं है। ऐसे में ये महिला पोस्टमेन पैदल-पैदल ही गांवों की लंबी दूरी तय करके डाक बांटती फिर रही है। कुछ महिलाओं को साइकिल चलाना आता है लेकिन वर्दी नहीं मिलने के कारण साड़ी पहने और डाक के बंडल लिए साइकिल चलाना इनके लिए संभव नहीं है।
ड्यूटी सिर्फ 3 घंटे की, निभा रही पूरा 8 घंटा
इन महिला पोस्टमेन की मजबूरी इतनी बड़ी कि इन्हें सिर्फ 3 घंटे की ड्यूटी करने का ही वेतन दिया जा रहा है, लेकिन इतने समय में सभी गांवों की दूरी तय करके टारगेट पूरा करना संभव नहीं है। डाक बांटते-बांटते इन्हें शाम हो ही जाती है। खाली पदों की ड्यूटी भी इनसे हो रही है पूरी।
इधर, प्रदेशभर में करीब 8 हजार 934 डाकघर है जिनमें लगभग 12 हजार डाककर्मी ही लगे हुए है जबकि जरुरत है 17 हजार डाक कर्मियों की। लेकिन प्रदेश में 3 हजार पद खाली चल रहे है। ऐसे में खाली पड़े पदों का कार्यभार भी इन पर पड़ा है। इससे इन्हें काम का बोझ झेलने को भी मजबूर होना पड़ रहा है।
इनका कहना है
प्रदेश में महिला पोस्टमैन की बहुत बुरी स्थिति है। सरकार को कई बार इस संबंध में लिखा है कि इनके लिए कम से कम एक कॉमन संसाधन उपलब्ध कराया जाए जिससे इन्हें पैदल चलकर इतनी लंबी दूरी तय नहीं करना पड़ें। कईयों का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। लेकिन विधवा होने के कारण घर चलाने वाला कोई नहीं। सभी जिम्मेदारी इन पर है। कम से कम वेतन ही बढ़ जाए तो इन्हें शारीरिक कष्ट के साथ आर्थिक तंगी तो नहीं झेलनी पड़ेगी।
- मालीराम स्वामी, परिमंडल सचिव, अखिल भारतीय ग्रामीण डाक सेवक संघ।
Published on:
10 Oct 2016 11:27 am
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