
swami adbhut Vallabhadas
वाराणसी. साफ्टवेयर इंजीनियर को उनके गुरू ने कहा कि तुम जाकर संस्कृत की पढ़ाई करो। गुरू की बात मान कर इंजीनियर से कक्षा आठ में प्रवेश लेकर संस्कृत का अध्ययन शुरू किया। संस्कृत को साधना बनाते हुए इतनी मेहनत से अध्ययन किया कि सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में एक साथ 10 मेडल जीते। यह कहानी सुनने में भले ही कुछ अजीब लग सकती है लेकिन यह सच्चाई है। गुजरात के स्वामी अद्भुत बल्लभ दास ने सफलता का जो मुकाम हासिल किया है वह अन्य किसी के लिए हासिल करना बेहद कठिन है।
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स्वामी अद्भुत बल्लभ दास ने गुजरात से ही शिक्षा पायी थी। इंटर सांइस से उत्र्तीण करने के बाद कम्प्यूटर इंजीनियर में बीटेक किया। इसके बाद तीन साल तक मल्टीनेशलन कंपनी में नौकरी कर अपनी साख जमायी। नौकरी के दौरान ऐसे-ऐसे साफ्टवेयर बनाये कि इनाम भी मिला। स्वामी अद्भुत बल्लभ दास बचपन से ही स्वामी नारायण मंदिर (लोयाधाम) से जुड़े थे। उन्होंने वहा के कोठारी स्वामी घनश्याम प्रकाश दास को गुरू माना। मुलाकात के दौरान गुरू ने कहा कि आप जाकर संस्कृत की शिक्षा ग्रहणक करें। स्वामी अद्भुत बल्लभ दास ने गुरू का आदेश सिर आंखों पर रखा। परिवार छोड़ कर सन्यासी बने और सीधे बनारस आ गये। बनारस के त्रिपुरा भैरवी स्थित एक संस्कृत विद्यालय में कक्षा आठ में (प्रथमा) में प्रवेश लिया। साफ्टवेयर इंजीनियर ने कभी संस्कृत नहीं पढ़ी थी लेकिन गुरू के दिखाये राह पर चलते हुए मेहनत के साथ संस्कृत का अध्ययन शुरू कर दिया। गुरू ने कहा था कि पंाच साल कम्प्यूटर मत छूना। इसका अभिप्राय था कि संस्कृत पढऩे में ध्यान नहीं भटकेगा। साफ्टवेयर इंजीनियर ने कम्प्यूटर को भूल कर जमकर पढाई की। सबसे पहले प्रथम की परीक्षा पास की। इसके बाद (हाईस्कूल), पूर्व मध्यमा व उत्तर मध्यमा (इंटर ) की परीक्षा उत्र्तीण की। इसके बाद सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में शास्त्री (गे्रजुएशन) व आचार्य (पोस्ट ग्रेजुएशन) की परीक्षा पास की। आचार्य में इतने अधिक अंक लाये कि उन्हें एक साथ 10 गोल्ड मेडल मिला।
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दिमाग में बना लिया था देववाणी का साफ्टवेयर
स्वामी अद्भुत बल्लभ दास ने पत्रिका से बाचीत में बताया कि शुरूआती समय बहुत दिक्कत हुई थी इसके बाद अपने दिमाग में संस्कृत भाषा को साफ्टवेयर बना लिया था उसी आधार पर चीजे जल्दी से समझ में आती गयी और मैं वेदांत का आचार्य बन गया। उन्होंने कहा कि गुरू ने कहा था कि वेदांत को रटो मत। इसे अपने जीवन में भी लागू करो। गुरू के इस आदेश का भी पूरा पालन किया। उन्होंने कहा कि जीवन में सफलता पानी है तो सबसे पहले एक गुरू की तलाश करो। इसके बाद गुरू का आदेश मानते हुए आगे बढऩा चाहिए। संस्कृत की पढ़ाई को साधना बना लिया था और साधना रुपी अध्ययन में डटा रहा। इतनी बड़ी सफलता मिलने पर कहा कि व्यक्ति को कभी अंहकार नहीं करना चाहिए। अब ईमानदारी के साथ अपना कर्म करते रहना चाहिए। भविष्य की योजना पर कहा कि स्वामी नारायाण सम्प्रदाय में एक से बढ़ कर एक अद्भृत ग्रंथ रखे हुए हैं। इनका अध्ययन करना है और इसे सरल भाषा में आम लोगों तक पहुंचाने के लिए पुस्तक लिखनी है। स्वामी अद्भुत बल्लभ दास ने कहा कि मानव देह मुक्ति पाने का साधन होता है और इस जीवन को इसी काम में लगाना है।
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Published on:
06 Dec 2019 08:55 am
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