प्रीती भट्ट/अजमेर.शहर में गली मोहल्लों में ढोल बाजों के साथ से गणगौर पूजन व भंवर म्हाने पूजन द्यो गणगौर…….गीत की धुन सुनाई दे रही है । महिलाएं व कुवांरी कन्याएं उत्साह व उमंग के साथ पूजन के साथ ही गीत व नृत्य कर अपने सौभाग्य का पर्व गणगौर मना रही हैं । कई महिला समाजों व किटी पार्टियों में गणगौर पर्व धूमधाम के साथ मनाया जा रहा हैं ।राजस्थानी संस्कृति को सहेजने का और एक समृद्ध परंपरा का प्रतीक है ये गणगौर का त्योहार । होली का त्यौहार नजदीक आते ही मन उमंग व उल्लास से भर उठता है। और गणगौर तक ये अपने पूरे परवान पर होता है। परन्तु दूसरी ओर आधुनिकता की दौड़ में ये उत्साहित परम्पराएं अपना स्वरूप भी बदलती जा रही हैं।
गणगौर का मतलब – दो शब्दों से मिलकर बना है गणगौर जिसमें गण माने शिव और गौर माने पार्वती है । कन्याएं श्रेष्ठ वर की प्राप्ति तथा सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा तथा उसकी दीघार्यु की कामना के लिए गणगौर का पूजन करती हैं। होली के पश्चात अधिकतर गली – मौहल्लों मेें करीब पन्द्रह दिनों तक तो सुबह की शुरूआत मंगल गीतों से होती है जो काफी आनंद प्रदान करने वाली होती है।
मिलने – जुलने व सजने-संवरने का पर्व – इस पर्व में सखी-सहेलियां सामूहिक रूप से आपस में मिलजुल कर खेल -खेल में पूजन कर आनंद प्राप्त करती हैं। सोलह दिनों तक स्वयं सजसंवर कर अपने ईसर – गणगौर की प्रतिमा का श्रृंगार करने का यह पर्व महिलाओं और युवतियों में विशेष रूप से लोकप्रिय है। आजकल तो महिलाएं ,नवविवाहिताएं गणगौर के लिए ब्यूटी पार्लर से तैयार होना भी पसंद करती हैं क्योंकि आजकल विभिन्न समाजों तथा किटी पाटियों तथा महिला मंडलों में भी गणगौर महोत्सव का आयोजन किया जाता हैं जिसमें महिलाएं पार्र्लर से तैयार होकर पूरे उत्साह के साथ भाग लेती है।
गीत संगीत का पर्व – यह भी मान्यता हे कि इस त्यौहार का आरम्भ मां गौरी के गौने अर्थात अपने पिता के घर से वापस लौटने और सखि सहेलियों द्वारा उनके स्वागत गान से हुआ था। यही कारण है कि इस पर्व पर गीत-संगीत और नृत्य को विशेष महत्व दिया जाता है। गौेर-गौेर गोमती ईसर पूजे पार्वती……., भंवर म्हाने पूजन द्यो गणगौर…….गौरिये गणगौर माता खोल किवाड़ी……, अल्ला रंग रे पल्ला रंग दे …….आदि गीत राजस्थानी संस्कृति को समेटे हुए है । होली से शुरू होने वाला 16 दिन का गणगौर पर्व पूरे शहर में परम्परागत उल्लास के साथ मनाया जाता है। कन्याएं व महिलाएं प्राय: इस पर्व का विशेष रूप से इंतजार करती हैं। इधर होली का दहन हुआ और उधर गणगौर पूजन शुरू फिर पन्द्रह दिन बाद गणगौर विर्सजन के साथ ही कब ये उत्साह – उमंग के दिन बीत जाते हैं पता ही नहीं चलता ।
प्रोफेशनल हुआ गणगौर पर्व -बदलते दौर में गणगौर का स्वरूप भी दिन प्रतिदिन बदलता जा रहा है । पहले मोहल्ल्ेा और परिवार की महिलाएं मिलजुलकर गीत गाकर पूरे रीति रिवाजों के साथ यह पर्व मनाती थीं परन्तु आज की कामकाजी महिलाओं के पास और भी अन्य कार्य हैं जिसके चलते वह इसमें अपना पूरा समय नहीं दे पाती। इसके लिए उन्होंने दूसरी व्यवस्था कर ली है । जैसे आजकल कई ऐसी महिला मंडली हैं जो अपना मेहनताना लेकर आपके घर आकर पूरे रिवाज और गीत संगीत के साथ आपकी गणगौर पूजा करवा देती हैं जिससे दोनों का ही काम बन जाता है।
कहीं कामकाज तो कहीं परीक्षा ने करवाया गणगौर पूजा में बदलाव– आज ज्यादातर महिलाएं कामकाजी हैंं इसलिए नौकरी की वजह से समयाभाव के चलते गणगौर पर्व का रूप भी अन्य त्यौहारों की तरह संक्षिप्त होता जा रहा है। कई महिलाएं व युवतियां अब पूरे सोलह दिन इसक ा पूजन न करके 16 दिन की पूजा केवल एक ही दिन में अंतिम दिन ही करने लगी हैं। और दूसरी ओर परीक्षा का समय होने से युवतियों में भरपूर उमंग ,उल्लास की कमी के साथ ही इनकी संख्या में भी कमी है जिसकी वजह से भी इसका स्वरूप बदलता जा रहा है परन्तु गांवों में तो आज भी महिलाएं पूरे मनोयोग से गणगौर का पर्व मना रही है।
इंटरनेट से नहीं अपने परिवार -समाज से सीखें रीति रिवाज- आजकल बच्चे परिवारों में होने वाले आयोजनों से तो दूरी बना लेते हैं और बाद में इन्हीं त्योहारों व रीति – रिवाजों और परंपराओं को इंटरनेट- मोबाइल पर देखकर मनाते हैं। परिवार में ही ऐसा माहौल होना चाहिए जिसमें बच्चे व युवा पूरे उत्साह के साथ हिस्सा लें । गणगौर पर्व सकारात्मक सोच का प्रतीक है । आजकल लोग टी वी , मोबाइल, इंटरनेट में व्यस्त रहते हैं इसके बजाय गणगौर जैसे त्योहारों को मनाकर अपनी संस्कृति ओर रीति रिवाजों को सहेजना चाहिए । इसमें जो मजा है आनंद हैं वो मोबाइल और टीवी में नहीं है।
पारम्परिक आयोजनों से दूरी बनाना गलत – आजकल लोग पारंपरिक आयोजनों से दूरी बनाने लगे हैं जो कि गलत है । त्यौहारों से हम संस्कार, रीति- रिवाज और लोगों से मिलना -जुलना उनसे जुडऩा सीखते हैं। हमें इन आयोजनों को उत्साह के साथ मनाना चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ी भी इस राजस्थानी परंपरा और संस्कृति को कायम रख सके । औरअपने देश के साथ विदेशों में भी अपनी के रंगों को बिखेर सकें । क्योंकि आजकल भारतीय मूल के अधिकांश युवा विदेश जाने में ही रूचि रखते हैं
यूं मनाते हैं गणगौर पर्व – महिलाएं गीत गाती हुई दूब लाने जाती हैं और होली की राख के पींडे बनाए जाते हैं और उन्हें पूजन के लिए सजाया जाता है यह सिलसिला पूरे पखवाड़े चलता है। गणगौर की पूजा के लिए महिलाएं मंगल गीतों के साथ मिट्टी के कुंडों में ज्वार और जौ के बीज की बुवाई करती हैं जो गणगौर की विदाई के साथ निकाले जाते हैं। महिलाएं सोलह सिंगार करके ढोल और बैंड -बाजों के साथ समीप के कुंए,तालाब,नदी पर जाकर वहां कलश भरकर फूल-पत्तियों से सजाकर मंगल गीतों के साथ जैलें घर लाती हैं जिसे पति द्वारा उतारा जाता है। इन लाई हुई सामग्री से दीवार पर ईसर गणगौर का चित्र लगाकर पूजा की जाती है। इसमें काजल,रोली,मेंहदी से 16-16 बिन्दी लगाई जाती है। इसकी मुख्य पूजा में गुणे मंस के पूजा की जाती है तथा सासूजी को बायना दिया जाता है। महिलाओं का उत्साह गणगौर मेले पर पूरे चर्मोत्कर्ष पर होता है। इसके बाद समय आता है विदाई का। भोर होते ही सभी आयु वर्ग की महिलाएं मिट़्टी की कुंडियों में उगाए गए ज्वारे और गौरा माता का उनके सुहाग ईसरजी के साथ विर्सजन करने कु ंओं , तालाबों आदि पर एकत्रित होती हैंतोउत्साहित भीड़ एक रंग- बिरंगे मेले का रूप लेती है।