21वीं सदी में तकनीक और आधुनिक हथियारों की वजह से जंग अब पहले से कहीं ज़्यादा खतरनाक और महंगी हो गई है। ईरान और इज़राइल के बीच हाल ही में हुई 12 दिन की लड़ाई ने दोनों देशों को गहरी चोट दी है। इस जंग में सिर्फ जान-माल के नुकसान की बात नहीं है, बल्कि अरबों डॉलर की आर्थिक तबाही भी हुई है। हालांकि लड़ाई अब थम चुकी है, लेकिन दोनों देश अब अपने-अपने नुकसान का हिसाब लगा रहे हैं। इस जंग में ईरान को सबसे बड़ा झटका लगा है, क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था पहले से ही पश्चिमी देशों की दशकों पुरानी पाबंदियों से जूझ रही थी। अनुमान है कि इस जंग की वजह से ईरान की जीडीपी का लगभग 6 से 9 प्रतिशत हिस्सा मिट गया।
डिफेंस एनालिस्ट क्रिग के मुताबिक, ईरान को सीधे तौर पर कुल मिलाकर 24 से 35 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है। क्योंकि अमेरिका और इज़राइल के हमलों में ईरान की न्यूक्लियर फैसिलिटीज को काफी नुकसान हुआ है, जिसे दोबारा तैयार करने में काफी वक्त लग सकता है। ईरान की सबसे बड़ी ताकत उसका तेल निर्यात है जो इस जंग में प्रभावित हुआ है। तेल के भंडारों और पाइपलाइनों पर हमले हुए, जिससे देश की कमाई और रिकवरी की रफ्तार धीमी हो सकती है। दूसरी ओर इज़राइल की बात करें, तो वहां भी नुकसान का आंकड़ा तेज़ी से बढ़ रहा है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान की मिसाइलों से हुए हमलों की वजह से इज़राइल में करीब 3 अरब डॉलर की क्षति हुई है। इसमें इंफ्रास्ट्रक्चर की मरम्मत और लोकल बिज़नेस को मुआवज़ा देने की लागत शामिल है।
इज़राइली टैक्स अथॉरिटी के डायरेक्टर जनरल ने कहा है कि देश के इतिहास में इतनी ज़्यादा तबाही पहले कभी नहीं देखी गई। वित्त मंत्री बेज़ालेल स्मोटरिच का मानना है कि जंग का कुल खर्च 12 अरब डॉलर तक जा सकता है, जबकि बैंक ऑफ इज़राइल के गवर्नर ने इसे 6 अरब डॉलर तक सीमित माना है। सरकार के पास बजट की कमी है और अब उसे रक्षा क्षेत्र के लिए 857 मिलियन डॉलर की इमरजेंसी फंडिंग चाहिए। इसके साथ ही, शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज कल्याण जैसे अहम क्षेत्रों में 200 मिलियन डॉलर की कटौती का प्रस्ताव रखा गया है जिसे लेकर देश के अंदर काफी विरोध हो रहा है। इस बीच सरकार ने एक विवादास्पद कदम उठाते हुए यहूदी नागरिकों के लिए विदेश यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया है। माना जा रहा है कि यह कदम देश से बाहर जा रहे लोगों और पैसे की निकासी को रोकने के लिए उठाया गया है।
बता दें कि इस युद्ध में अमेरिका भी शामिल हुआ था। ‘ऑपरेशन मिडनाइट हैमर’ के तहत ईरान की न्यूक्लियर फैसिलिटीज को निशाना बनाया गया। इस ऑपरेशन की लागत 1 से 2 अरब डॉलर के बीच मानी जा रही है। इस हमले में अमेरिका ने 125 से अधिक लड़ाकू विमान और कई टॉमहॉक मिसाइलों के साथ-साथ बंकर-बस्टर बमों का इस्तेमाल किया।
इन सभी आंकड़ों के बावजूद, असली लागत अभी सामने नहीं आई है। लेकिन जो साफ है, वो ये कि 12 दिन की ये जंग तीनों देशों के लिए लंबे समय तक चलने वाले आर्थिक झटके छोड़ गई है। ईरान पहले से संकट में था, अब वह और भी पीछे चला गया है। इज़राइल को अब तक के सबसे बड़े रिडेवलपमेंट का सामना करना पड़ रहा है। वहीं अमेरिका ने अरबों डॉलर खर्च करके एक और अंतरराष्ट्रीय तनाव को जन्म दिया है। कुल मिलाकर, इस 12 दिन की भयानक लड़ाई की लागत 40 अरब डॉलर से ज़्यादा आंकी जा रही है। जहां गोलियां और मिसाइलें अब थम चुकी हैं, वहीं इस जंग की असली मार अभी बाकी है — बजट पर, नीतियों पर, और शायद पश्चिम एशिया की ताक़त के संतुलन पर भी।