धूलकोट में होने वाले धरने में आ रहे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और विपक्षी नेता उमंग सिंगार का कार्यक्रम स्थगित
बुरहानपुर. वन अधिकार पट्टे बड़ी संख्या में खारिज करने के बाद आदिवासी समाज ने इसका विरोध जताया। सोमवार को निमाड़भर से 10 हजार से अधिक समाजजन नेहरू स्टेडियम पर जुटे। यहां धरना प्रदर्शन कर पुन: जांच की मांग की। यहां भारी संख्या में पुलिस बल भी तैनात रहा। इसी मामले को लेकर मंगलवार को धूलकोट में कांग्रेस का धरना आंदोलन होना था, जिसमें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और विधानसभा के विपक्षी नेता उमंग सिंगार शामिल होना थे, लेकिन कार्यक्रम स्थगित हो गया।
जागृत आदिवासी दलित संगठन व एकता संगठन के नेतृत्व में सभी लामबंद हुए। संगठन का कहना है कि वन विभाग ने लगभग 8 हजार परिवारों के दावों को खारिज होने का मौखिक दावा कर रहा है और फसल बोवाई की तैयारी कर रहे कानूनी दावेदारों को जगह.जगह धमकियां दी जा रही है, लोगों के ट्रैक्टर अवैध रूप से जप्त किए जा रहें हैं। दावों को बिना सूचना, बिना कारण और बिना अपील का अवसर दिए खारिज कर कानून और नियमों की धज्जियां उड़ाई गई हैं। आदिवासियों ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को प्रशासन द्वारा कानून के उल्लंघन को लेकर ज्ञापन अपर कलेक्टर वीरसिंह चौहान को सौंपा गया। चेतावनी दी की यदि प्रशासन अपने आश्वासन पर खरी नहीं उतरती है, तो आदिवासियों ने इससे बडे आंदोलन करेंगे। आदिवासी समाज की नेता माधुरी बेन, रतन अलावे, पूर्वविधायक सुरेंंद्र सिंह ने भी संबोधित किया।
प्रशासन से किए सवाल
ज्ञापन देने के बाद संगठन कार्यकर्ताओं ने प्रशासन से सवाल जवाब किया। आदिवासियों ने दावा खारिज होने और उसकी कानूनी प्रक्रिया के बारे में किए गए सवाल का प्रशासन के अधिकारी कोई जवाब नहीं दे पाए। संगठन ने कहा कि अवैध रूप से खारिज किए गए दावों की पुन: जांच की जाए और खेती के सीजन में किसी भी दावेदार के बैल जोड़ी, ट्रैक्टर जब्त न किया जाए, ऐसा लिखित आश्वासन की मांग की, जिस पर मौखिक आश्वासन दिया।
कानून लागू हुए 17 साल बीते अब तक पालन नहीं
आंदोलनकारियों ने कहा कि वन अधिकार कानून को लागू हुए 17 साल बीत चुके हैं, लेकिन बुरहानपुर में आज भी प्रशासन और वन विभाग उसकी खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं। भारत सरकार और प्रदेश शासन के स्पष्ट दिशा.निर्देशों को दरकिनार कर जिला प्रशासन आदिवासियों के अधिकारों को कुचल रहा है। मंच से वक्ताओं ने कहा कि वन अधिकार कानून और नियमों के अनुसार हर वन अधिकार दावे की जांच और उस पर निर्णय ग्राम सभा द्वारा लिया जाना चाहिए। अगर किसी दावे को ग्राम सभा ने पास किया हो, तो बिना कारण खारिज नहीं किया जा सकता है। कागज़ों में कमी हो, तो वापस ग्राम सभा को भेजनी चाहिए। वन अधिकार कानून, उसके नियम और भारत सरकार, प्रदेश सरकार के निर्देशों के अनुसार किसी भी दावे को खारिज करने से पहले दावेदार को लिखित सूचना और अपील का अवसर दिया जाना अनिवार्य है।
नहीं तो हम कलेक्टोरेटजाएंगे
वक्ताओं ने बताया कि पहले कार्यक्रम जिला कलेक्टर कार्यालय में प्रशासन को कानून सिखाने करने वाले थे, लेकिन कलेक्टर कार्यालय में आने से पहले ही रोक लिया। इसलिए आज हम यहां से ही प्रशासन को कानून सिखा रहे हैं। अगर आज प्रशासन नहीं सीखती है, तो हम फिर सीधा कलेक्टर कार्यालय ही जाएंगे। जब तक पूरी कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक किसी को जमीन से बेदखल नहीं किया जा सकता। इन दावेदारों को वन विभाग द्वारा बेदखली की धमकियां दी जा रही हैं, जो न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि आदिवासियों के संवैधानिक और कानूनी अधिकारों पर सीधा हमला है। संवैधानिक और कानूनी अधिकारों को संकल्प लेते हुए कई आदिवासी गीत भी गाए गए। प्रदेश सरकार द्वारा पेसा एवं वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित टास्क फोर्स को भी यह ज्ञापन भेजा जाएगा।