छतरपुर. जिला अस्पताल की ओपीडी में जिलेभर से आने वाले मरीजों की सुविधा के लिए 10 माह पहले स्वास्थ्य विभाग ने ओपीडी मैनेजमेंट सिस्टम के तहत मशीनों को लगाया गया। लेकिन यह मशीनें अब तक बंद पड़ी हैं। इसलिए जिला अस्पताल में प्रतिदिन आने वाले 900 से 1000 मरीजों को पर्चा काउंटर के बाद डॉक्टर कक्ष के बाहर इलाज के लिए घंटों कतार में लगना पड़ रहा है। कई बार हालात ये रहते है कि मरीज पर्चा बनवाने, जांच कराने के बाद डॉक्टर के पास दोबारा पहुंचता है, तब तक लंच हो जाता है।
डॉक्टर कक्ष के सामने लगाए गए डिस्प्ले
स्वास्थ्य विभाग ने छतरपुर जिला अस्पताल की वाह्य ओपीडी के विभिन्न कक्षों शिशु विभाग, फिजियोथेरेपी, चर्म रोग, नाक-कान, आंख, दंत, हड्डी, लेबर रूम और मेडिसिन विभाग में बैठने वाले डॉक्टर कक्ष के सामने टोकन डिसप्ले लगाया गया ताकि जिला अस्पताल आने वाले सभी मरीजों को इलाज के लिए चिकित्सक के पास पर्चा जमा करने पर एक नंबर मिल सके और मरीज का नंबर आते ही टोकन मशीन पर डिस्प्ले हो जाए और मरीज को बिना लाइन में लगे इलाज की सुविधा मिल सके, लेकिन ओपीडी मैनेजमेंट का यह सिस्टम प्रबंधन की लापरवाही से आज तक चालू नहीं हो सका है। जिससे मरीजों को परेशानी उठानी पड़ रही है।
सिस्टम शुरु न होने से समस्या नहीं हो पा रही दूर
जिला अस्पताल में अपने बच्चे का इलाज कराने पहुंचे शहर के वीरेन्द्र शर्मा ने बताया कि वे सुबह 9 बजे अस्पताल पहुंचे और पर्चा काउंटर की कतार में लग गए। एक घंटे तक लाइन में लगने के बाद वाह्य ओपीडी का पर्चा बना। इसके बाद वे संबंधित डॉक्टर के पास पहुंचे और कक्ष के बाहर दोबारा कतार में लग गए। ताकि नंबर आने पर बच्चे को इलाज मिल सके। 45 मिनट तक लाइन में लगने के बाद उनका नंबर आया और डॉक्टर ने बच्चे को देखते हुए कुछ जांच लिख दी। इसके बाद वे जिला अस्पताल के लैब पहुंचे और जांच के लिए सैंपल दिया। लैब संचालक ने दो बजे के बाद रिपोर्ट दी, जब तक डॉक्टर लंच हो जाने के कारण अपने घर चला गया। यदि टोकन सिस्टम लागू होता तो पर्चा काउंटर, डॉक्टर कक्ष के साथ लैब के बाहर घंटों लाइन में नहीं लगना पड़ता और समय से इलाज मिल जाता।
जानकारी के लिए भटकना पड रहा
टोकन मशीन चालू नहीं होने के कारण संबंधित मरीजों को इलाज के लिए किससे संपर्क करना है और कौन से कक्ष में बीमारी से संबंधित डॉक्टर बैठता है, यह जानकारी खुद जुटाना पड़ती है। यदि मशीन चालू होती तो मरीजों को टोकन सिस्टम के अनुसार पर्ची कटवाने के बाद किस डॉक्टर के पास जाना है और वह कौन से कक्ष में है। साथ ही मरीज का नंबर कौन सा है, यह सब कम्प्यूटर सिस्टम के तहत एलईडी पर दिखाई देने के साथ ही अनाउंस भी होता है, जो मरीज को दिखाई और सुनाई देता है। इससे मरीज को इलाज कराने में दिक्कत नहीं होती।
इनका कहना है
दो कर्मचारियों को मशीन चलाने ट्रेनिंग दिलाई। लेकिन वे कुछ समय बाद भूल गए और चला नहीं पा रहे। फिर से कंपनी के इंजीनियर को बुलाया है, ताकि वे कर्मचारियों को ट्रेनिंग देते हुए चलाना सिखा दें।
डॉ. जीएल अहिरवार, सीएस जिला अस्पताल छतरपुर