हुब्बल्ली. आपने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम आपने जरूर सुना होगा लेकिन आज हम आपको हम ऐसी ही एक अन्य महिला यौद्धा के बारे में बता रहे हैं जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ चट्टान की तरह खड़ी रही। कर्नाटक के बेलगावी जिले के काकती में जन्मी कित्तूर रानी चेन्नमा।
उनका अपना ऐतिहासिक महत्व है। अक्सर इसका उल्लेख भारत के स्वतंत्रता संग्राम और इसमें महिलाओं की भागीदारी के संदर्भ में किया जाता है। भले ही कित्तूर की रानी चेन्नम्मा अंग्रेजों को भगाने में सफल नहीं हुई, लेकिन उन्होंने कई महिलाओं को ब्रिटिश शासन के खिलाफ लडऩे के लिए प्रोत्साहित किया।
हम अभी कर्नाटक के प्रमुख शहर हुब्बल्ली में है। यहां शहर के बीचोबीच रानी चेन्नम्मा सॢकल बना है जिसमें कित्तूर रानी चेन्नमा की भव्य प्रतिमा लगी है। इसी तरह की प्रतिमाएं कर्नाटक के बेंगलुरू, बेलगावी एवं कित्तूर में भी लगी है। 11 सितंबर 2007 को भारतीय संसद परिसर में भारत की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने कित्तूर रानी चेन्नम्मा की एक प्रतिमा का अनावरण किया गया था। हर साल 22 अक्टूबर से 24 अक्टूबर तक कित्तूर रानी चेन्नम्मा की अंग्रेजों के खिलाफ पहली जीत का जश्न मनाने के लिए कित्तुरु उत्सव का आयोजन किया जाता है। रानी चेन्नम्मा की शादी 15 साल की उम्र में राजा मल्लसर्जा से हुई थी और वह कित्तूर की रानी बनीं लेकिन 1816 में उनके पति की मृत्यु हो गई। 1824 में उन्होंने अपने बेटे को भी खो दिया। बाद में उन्होंने शिवलिंगप्पा को गोद ले लिया और उन्हें सिंहासन का उत्तराधिकारी नामित किया। हालाकि अंग्रेजों ने शिवलिंगप्पा को उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं किया और उन्होंने घोषणा की कि कित्तूर को ब्रिटिश शासन को स्वीकार करना होगा। कित्तूर रानी चेन्नम्मा ने इसका कड़ा विरोध किया। युद्ध छिड़ गया और कित्तूर रानी चेन्नम्मा ने युद्ध जीत लिया। रानी चेन्नम्मा ने दो ब्रिटिश सैनिकों को पकड़ लिया लेकिन बाद में चैपलिन के साथ समझौते के तहत उन्हें रिहा कर दिया। युद्ध यहीं समाप्त नहीं हुआ,रानी चेन्नम्मा और उनके सैनिकों ने 12 दिनों तक अपने किले की सफलतापूर्वक रक्षा की। हालाँकि उसे और उसके सैनिकों को सेना में गद्दारों द्वारा धोखा दिया गया था, जिन्होंने बारूद में मिट्टी और गोबर मिलाया था। परिणामस्वरूप, रानी चेन्नम्मा युद्ध हार गईं और उन्हें बंदी बना लिया गया। शेष जीवन के लिए बेलगांव जिले के बैलहोंगल के किले में रखा गया। उन्होंने एक कैदी के रूप में पवित्र ग्रंथों को पढऩे और पूजा करने में बिताए। चेन्नम्मा की 51 वर्ष की आयु में 2 फरवरी 1829 को ब्रिटिश हिरासत में मृत्यु हो गई। लेकिन रानी चेन्नम्मा की बहादुरी ने उन्हें कर्नाटक में एक लोक नायक के रूप में बदल दिया।