कभी-कभी मरीज और परिजन इन लक्षणों को पहचान नहीं पाते है और इलाज में देरी कर देते है। जिस कारण से स्ट्रोक या लकवे का इलाज समय पर नहीं मिलने से जिंदगीभर का दर्द रह जाता हैं। मतलब की जो भी मरीज स्ट्रोक का शिकार हुआ है वह जिंदगी भर के लिए अपंग हो सकता हैं।
अगर मरीज को स्ट्रोक आने के साढ़े चार घंटे में अस्पताल पहुंच जाए तो मरीज जिंदगी भर की अपंगता से बच सकता हैं। इसलिए इसमें सबसे पहले मरीज के लक्षणों को पहचाकर उसे 4 घंटे के अंदर अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचाना जरूरी हैं। क्योकि मरीज के लिए गोल्डन आवर महत्वूपर्ण होते है।
कभी कभी लक्षणों को देखकर लोग लापरवाही कर देते है और स्ट्रोक को बीपी,चक्कर और सामान्य बीमारी से जोड़ देते हैं। लेकिन स्ट्रोक एक खतरनाक बीमारी हैं। इसके शिकार होने पर व्यक्ति के किसी हिस्से में जिंदगीभर के लिए अपंगता रह सकती है और समय पर इलाज नहीं मिले तो जान भी जा सकती है।
इसलिए स्ट्रोक के मरीज के लिए समय पर इलाज मिलना सबसे आवश्यक दवा हैं। अस्पताल में पहुंचने के बाद चिकित्सक मरीज को खून का थक्का हटाने की दवा देते हैं। जिससे उसे मरीज को आराम मिलता हैं।
इसलिए व्यक्ति इस मामले को हल्के में ले लेता है और इलाज के लिए अस्पताल में नहीं पहुंचता हैं। लक्षणों को नहीं पहचान पाने के लिए इलाज के गोल्डन आवर चिकित्सकों के हाथ से निकल जाते है और मरीज हमेशा के लिए लकवे तक का शिकार हो जाता हैं।
पूरी दुनिया में हर साल करीब 2 करोड़ लोग इससे पीड़ित होते है और इनमें से 50 लाख को समय पर इलाज नहीं मिलने से इनकी मौत हो जाती है। भारत में मरीजों की मौत का तीसरा बड़ा कारण ब्रेन स्ट्रोक की समस्या हैं।
खराब लाइफ स्टाइल,नशा,टेंशन,बीपी,शुगर और गलत खान पान के साथ साथ प्रदूषण के कारण युवाओं में यह समस्या बढ़ रही हैं।