नाटक रंगकर्मी की साधना
प्ले के बाद इस नाटक पर ‘संवाद प्रवाह’ के तहत चर्चा की गई। नाटक में किरदार निभा रहे रमन कुमार ने कहा कि ग्रीक थिएटर सबसे प्राचीन थिएटर माना जाता है। लेकिन भारत के मंदिरों में उसके पहले से नाट्य शास्त्र के अनुरूप नाटक होते रहे। वहीं अंशु हर्ष ने कहा कि कहानी को मंच पर उतारने में जो मेहनत लगती है, वह रंगकर्मी की साधना है। लाइव प्ले में भी रीटेक्स नहीं होते।


रूसी कहानी, भारतीय संदर्भ, लेकिन ‘नाक’ एक जैसी
‘गुमशुदा नाक’ रूसी लेखक निकोलाई गोगोल की १८३६ में लिखी शॉर्ट स्टोरी है। इसका निर्देशन मनोज कुमार मिश्रा ने किया है। नाटक में शहर के सबसे प्रभावशाली अधिकारी की असली नाक खो जाती है। पिल्लू हज्जाम को मिली वह नाक उसके लिए जी का जंजाल बन जाती है, जिससे छुटकारा पाने में उसे कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। नाटक में हास्य के माध्यम से हमारे अभिमान पर तंज किया गया है। अंत में बाल काट रहा पिल्लू उस अधिकारी को नींद से जगाता है। सपने को हकीकत समझ बैठा अधिकारी तब राहत की सांस लेता है। प्ले में प्रसिद्ध तमाशा गायक दिवंगत गुरु गोपी भट्ट को समर्पित था।