राजेश शर्मा
झुंझुनूं. आजकल बच्चों के टिफिन हो, पानी की बोतल हो या रसोई का सामान। अधिकतर बर्तन प्लास्टिक व एल्युमिनियम के हो गए। लेकिन राजस्थान के मलसीसर के खारिया गांव निवासी सुमन चौधरी गांव-गांव जाकर व मेलों के माध्यम से प्लास्टिक व एल्युमिनियम के बर्तनों के नुकसान बता रही है। साथ ही मिट्टी व लकड़ी के बर्तनों को बेचकर कमाई भी कर रही है। सुमन ने बताया कि एक डॉक्टर के पास गई तो वहां लिखा था बच्चों को बोतल से दूध नहीं पिलाएं। मैंने डॉक्टर से पूछा तो उन्होंने इसके अनेक नुकसान बताए। उसी दिन से प्लास्टिक के बर्तनों के नुकसान बताने लग गई। अब लुहारू के पास से लकड़ी व मिट्टी के बर्तन लाती हूं। नारियल के कुछ बर्तन घर पर भी बना लेती हूं। इसमें पति भी पूरा सहयोग करते हैं। अब तो सुमन की पहचान लकड़ी के बर्तनों वाली सुमन की हो गई है।
एमए तक पढ़ी
आंगनबाड़ी केन्द्र हरिपुरा में ग्राम साथिन का कार्य करने वाली सुमन Suman Chowdhary with wooden utensils ने बताया कि जिले में लगने वाले मेलों में खुद की स्टाल लगाती है। इसके लिए अमृता हाट में भी दुकान लगाती है। समाज शास्त्र से एमए कर चुकी सुमन ने बताया कि इस बहाने पर्यावरण बचाने में छोटा सा सहयोग भी हो जाता है। मिट्टी के बर्तन तीन साल से बेच रही है, अब लकड़ी के बर्तन भी बेच रही है। विभाग के उप निदेशक विप्लव न्योला व महिला सुपरवाइजर सुनीता कुल्हरी ने बताया कि पर्यावरण बचाने व नवाचार के लिए सुमन को कई बार सम्मानित भी किया जा चुका।
यहां भी बनते
लुहारू के अलावा पाली जिले का बगड़ी नगर भी लकड़ी के बर्तनों के लिए प्रसिद्ध है। यहां भी कई परिवार कई पीढ़ियों से यह काम कर रहे हैं। इनके बनाए हुए बर्तनों की सुजानगढ़, लाडनूं, सरदारशहर सहित अनेक जगह मांग है।
आयुर्वेद के अनुसार फायदे अनेक
प्लास्टिक व एल्युमिनियम के बर्तनों में तो भोजन करना ही नहीं चाहिए। इनके अनेक नुकसान हैं। कई गंभीर बीमारियां होने की आशंका भी रहती है। इनसे संक्रमण का खतरा भी रहता है। रसोई में मिट्टी व लकड़ी के बर्तन ही रहने चाहिए। यह प्राकृतिक हैं, इनके अनेक फायदे हैं।
डॉ जितेन्द्र स्वामी, वरिष्ठ चिकित्साधिकारी आयुर्वेद