कानपुर देहात-अक्षयवट वृक्ष, जिसे मोक्ष के वृक्ष की उपाधि दी जाती है। ऐसी मान्यता है कि जब सारी सृष्टि का विनाश हो जाये तब भी ये वृक्ष हरा भरा रहता है। इसका उल्लेख पुराणों में भी किया गया है। बताया गया कि पूरे भारत वर्ष में सिर्फ चार अक्षयवट हैं जिनमें से इलाहाबाद, बनारस, नासिक और चौथा वृक्ष कानपुर देहात जनपद के झींझक नगर में स्थित है। सैकड़ो वर्ष पूर्व स्वता जमीन से उगे इस वृक्ष स्थल पर आज भव्य मंदिर बना हुआ है, जो अक्षयवट आश्रम के नाम से विख्यात है, जहां दूर दराज से लोग आते है। लोग इसे सिद्ध स्थान की उपाधि देते हैं। 57 वर्ष पूर्व स्थापित हुए इस अक्षयवट आश्रम की झींझक नगर पर बड़ी कृपा बताई जाती है। जिसका गुणगान करते यहां के लोग नही थकते हैं। कई वर्षों पूर्व अनदेखी में लोग इस वृक्ष के पत्ते तोड़कर ले जाया करते थे लेकिन अब देखरेख के चलते संभव नही होता है। आश्रम के महंत पागलदास बाबा का कहना है कि इस वृक्ष के पत्ते पर भगवान अलग अलग रूपों में विराजमान रहते हैं। जिस क्षेत्र में यह वृक्ष होता है। वहां कभी आपदा नही आती है। इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।
ऐसे हुई अक्षयवट की उत्पत्ति
बताया गया कि उस समय यहां एक घना जंगल था। बनारस के ब्रह्मचारी राधेकृष्ण झींझक आये हुये थे। वह शौचक्रिया के लिये रेलवे लाइन किनारे जा रहे थे। अचानक जंगल में खड़े दो अक्षयवट वृक्ष पर उनकी नजर पड़ी। शौचक्रिया किये बिना वापस आकर वह चेयरमैन के गले लगकर रोते हुये कहने लगे, इस वृक्ष के तो दर्शन दुर्लभ है। तब उन्होंने बताया कि यह अक्षयवट वृक्ष है। इस वृक्ष के नीचे भगवान स्वयं बैठते थे। वह दिन होलिकाष्टमी का दिन था। यहां के तत्कालीन चेयरमैन मन्नीबाबू तिवारी ने ब्रम्हचारी की बात सुन उस परिसर मे एक शिला रखकर मंदिर की स्थापना अक्षयवट नाम से की गयी।
बाबा बोले अब अर्जुन के रूप में प्रकट हुए हैं
आश्रम के पुजारी पागलदास बाबा ने बताया कि बाबा की यहां बड़ी कृपा है। पहले यह अक्षयवट के रूप में थे, जिसमे स्वयं भगवान विष्णु विराजमान थे। प्रत्येक पत्ते पर शंख बना हुआ था। दरअसल एक बार एक महिला ने इस वृक्ष पर चढ़कर झंडा लगा दिया। काफी विरोध करने के बाद महिला नीचे उतर आई लेकिन कुछ समय बाद वृक्ष सूख गया। इसके बाद 6 महीने तक यहां गंगाजल डाला तो फिर ये अर्जुन के रूप में प्रकट हो गए। उन्होंने बताया कि यहां एक अधिकारी ने इस वृक्ष के सूखने पर पूछा तो बाबा ने बताया कि इसके सूखने के बाद बड़ी हानि की आशंका होती है लेकिन अब यह दोबारा अर्जुन के रूप में प्रकट हुये हैं। उन्होंने बताया कि आज भारत में चार में से एक ही अक्षयवट हरा भरा है, जो अनुसुइया आश्रम में स्थित है।