5 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

खंडवा

हौसलों की उड़ान: दर्द से संघर्ष तक, दो दिव्यांग बेटियों की जीत बनी प्रेरणास्पद

कभी कभी जिंदगी अचानक ऐसी दिशा मोड़ देती है, जहां हर कदम दर्द से भरा होता है। पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो टूटते नहीं, बल्कि अपने टूटे सपनों के टुकड़ों से ही जीत का नया आसमान बना लेते हैं। खंडवा की दो दिव्यांग बेटियां इसी साहस की मिसाल हैं। 27 वर्षीय विशाखा पाराशर और सिलोदा की कविता पटेल। एक ने खेल के मैदान में खुद को साबित किया, तो दूसरी सुरों के सहारे दूसरों के हौसलों की रोशनी बन गईं।

Google source verification

विशाखा ने मेडल को बनाया सपनों की ताकत, कविता सुरों के सहारे दे रहीं नई दिशा

नारायण नगर की रहने वाली विशाखा पाराशर के जीवन में 30 सितंबर 2015 का दिन हमेशा के लिए दर्ज हो गया। भाईयों के साथ खेलते हुए तीन मंजिला मकान की छत से गिरने से उनकी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आई और दोनों पैर हमेशा के लिए निष्क्रिय हो गए। कमर से नीचे के हिस्से में दर्द तक महसूस नहीं होता। आठ साल तक बिस्तर पर पड़ी रहीं। कई बार निराशा इतनी गहरी हुई कि उन्होंने परिवार से कहा कि उन्हें मरने का रास्ता दे दिया जाए। लेकिन फिर भीतर कहीं से आवाज आई कि हार मानना जवाब नहीं, कुछ कर दिखाना ही असली जीत है। सोशल मीडिया पर अपने जैसे दिव्यांग खिलाड़ियों के वीडियो देखकर उनके अंदर नई उम्मीद जागी।

पैरा फेंसिंग में जिले व प्रदेश का नाम रोशन किया

यहीं से खेलों का सफर शुरू हुआ। पहली बार पुणे में जेवलिन थ्रो में हिस्सा लिया, फिर बैंगलोर और ग्वालियर में पैरा फेंसिंग की ट्रेनिंग की। चेन्नई में हुए टूर्नामेंट में पहली बार गोल्ड और दूसरी बार सिल्वर मेडल जीता। पिछले वर्ष भोपाल में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सम्मानित किया और मोटराइज्ड व्हीलचेयर दी। इसी वर्ष केंद्र सरकार के खेल विभाग में उनका चयन भी हुआ। विशाखा का कहना है कि उनका हर मेडल सिर्फ उनकी जीत नहीं, बल्कि हर उस दिव्यांग बच्चे की उम्मीद है जो सपने देखने की हिम्मत करता है। उनके अनुसार दिव्यांगता बाधा नहीं, नई शुरुआत की ताकत है।

हौसला हों तो कोई भी बाधा मंजिल की राह नहीं रोक सकती

दूसरी कहानी है सिलोदा की कविता पटेल की, जिनकी जिंदगी तीन साल की उम्र में एक गलत इंजेक्शन से बदल गई। तेज बुखार में डॉक्टर ने हड्डी में इंजेक्शन लगाया जिससे एक पैर की ग्रोथ रुक गई। इलाज, बाबा और अस्पताल कितनी ही कोशिशों के बाद भी पैर जमीन पर टिकना बंद हो गया। केलिपर के सहारे चलना शुरू किया और पढ़ाई नहीं छोड़ी। 12वीं एमलबी स्कूल में पूरी की और एमए तक पहुंचीं। पिछले आठ साल से संस्कृति कॉलेज में बच्चों को हारमोनियम सिखा रही हैं, जिनमें दिव्यांग बच्चे भी शामिल हैं। वे उन्हें हमेशा प्रेरित करती हैं कि खुद को कमजोर समझना ही सबसे बड़ी कमजोरी है। कविता कहती है कि हम किसी से कम नहीं हैं। हम में ओर से भी ज्यादा प्रतिभा है, बस एक हौसले की जरूरत हैं। हौसला हों तो कोई भी बाधा मंजिल की राह नहीं रोक सकती।