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Nagaur patrika…भागवत कथा में शिव-बारात एवं हिरण्यकश्यप व हिरण्याक्ष प्रसंग का किया वर्णन…VIDEO

नागौर. शहर के प्रतापसागर तालाब के निकट चल रही भागवत कथा में श्यामा किशोरी ने वाचन करते हुए शिव-पार्वती विवाह के साथ ही हिरण्यकश्यप एवं हिरण्याक्ष प्रसंग का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि माता पार्वती बाल्यकाल से शिव की भक्त थी। वह शिव पूजा में लीन रहती थी। एक दिन देवर्षि नारद हिमवान के पास […]

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नागौर. शहर के प्रतापसागर तालाब के निकट चल रही भागवत कथा में श्यामा किशोरी ने वाचन करते हुए शिव-पार्वती विवाह के साथ ही हिरण्यकश्यप एवं हिरण्याक्ष प्रसंग का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि माता पार्वती बाल्यकाल से शिव की भक्त थी। वह शिव पूजा में लीन रहती थी। एक दिन देवर्षि नारद हिमवान के पास पहुंचे, और पार्वती के लिए भगवान शिव को वर योग्य बताया। शुरू में मैना तो पार्वती एवं शिव विवाह के पक्ष में नहीं थी। उन्होंने इसका विरोध किया कि उनकी फूल सी कोमल बच्ची एक बैरागी के साथ नहीं रह सकती। देवर्षि नारद के साथ ही देवताओं ने जब उनको शिव-पार्वती रहस्य समझाया। तब जाकर मैना अपनी पुत्री पार्वती के विवाह के लिए तैयार हुई। उन्होंने कहा कि विवाह के दौरान शिव की बारात चली तो तो उसमें भूत, प्रेत एवं पिशाच आदि शामिल थे। इनको देखकर मैना बेहद नाराज हुई। बाद में शिव ने उनको अपना मनोहर रूप दिखाया तो जाकर मैना शांत हुई। सती प्रसंग का वर्णन करते हुए बताया कि दक्ष सदैव शिव का विरोध करते थे। विवाह के उपरांत दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया। इसमें भगवान शिव को छोडकऱ सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया। देवताओं को यज्ञ में जाते देखकर सती भी शिव से अनुमति लेकर यज्ञ स्थल पर पहुंची। जहां पर शिव की अर्धांगनी होने के कारण दक्ष ने उनका उपहास किया। यह देखकर सती ने क्रोध में आकर खुद को योगाग्नि से भस्म कर लिया। सती के भस्म होने पर शिवगणों ने यज्ञ स्थल पर उत्पात शुरू कर दिया। तब दक्ष की प्रार्थना पर महर्षि भृगु ने मंत्रों से सेना उत्पन्न कर दी। इसके बाद पीडि़त हुए शिवगणों से जानकारी मिलने पर शिव ने वीरभद्र को उत्पन्न कर यज्ञ ध्वंस के लिए भेजा। भगवान शिव की आज्ञा पर पहुंचे वीरभद्र जब यज्ञ स्थल पर पहुंचे तो वीरभद्र के रूप में शिव के अंश को देखकर भगवान विष्णु अपने लोक प्रस्थान कर गए। इसके बाद वीरभद्र ने दक्ष यज्ञ का विध्वंश करने के साथ ही दक्ष का वध कर दिया। बाद में देवताओं की प्रार्थना पर शिव ने दक्ष के सिर पर बकरे का सिर लगाकर उनको पुर्नजीवित कर दिया। इसके पश्चात उन्होंने हिरण्यकश्यप प्रसंग का वर्णन करते हुए बताया कि इसके पुत्र प्रहलाद हरि भक्त थे। इनको हिरण्यकश्यप की ओर से खूब यातनाएं दी गई। इस दौरान प्रहलाद को महल के खंभे से बांधकर हिरण्यकश्यप ने उनके वध का प्रयास किया तो फिर भगवान विष्णु ने नृसिंह के रूप में उसका अपने नख से वध कर दिया। हिरण्याक्ष भी इसका भाई था। इसने पृथ्वी को को समुद्र की तली में जाकर छिपा दिया था। के लोप होने पर वराह रूप में पहुंचे भगवान विष्णु का हिरण्याक्ष से घनघोर युद्ध हुआ। युद्ध में हिरण्याक्ष मारा गया। इसके बाद भगवान पृथ्वी को समुद्र से निकालकर स्थापित किया। इस दौरान महर्षि कश्यप प्रसंग का भी वर्णन किया गया।