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Patrika…अधजले रह गए रावण-कुंभकर्ण-मेघनाद…VIDEO

नागौर. नगरपरिषद की ओर से राजकीय स्टेडियम में आयोजित दशहरे के मुख्य पर्व में इस बार रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों का दहन विवादों में घिर गया। आयोजन की शुरुआत भव्य रही, लेकिन पुतलों का निर्माण और दहन श्रद्धालुओं की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सका। रिमोट से बटन दबाने पर धमाका तो हुआ, […]

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नागौर. नगरपरिषद की ओर से राजकीय स्टेडियम में आयोजित दशहरे के मुख्य पर्व में इस बार रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों का दहन विवादों में घिर गया। आयोजन की शुरुआत भव्य रही, लेकिन पुतलों का निर्माण और दहन श्रद्धालुओं की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सका। रिमोट से बटन दबाने पर धमाका तो हुआ, मगर तीनों पुतले पूरी तरह नहीं जले। कई सिर, हाथ और हथियार जस के तस खड़े रह गए। अंतत: ठेकेदार के कारिंदों ने रस्सी से बांधकर उन्हें गिराया। यह दृश्य देखकर श्रद्धालु निराश और मर्माहत नजर आए।
अधजले पुतले, रस्सी से गिराए गए
रावण के कुल 10 सिर लगाए गए थे, मगर उनमें से पांच सिर जल ही नहीं पाए। रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के हाथों में केवल हल्की कटारनुमा ढांचा बनाया गया था, जबकि पौराणिक प्रसंगों में रावण का अस्त्र च्चंद्रहासज् और अन्य हथियार वर्णित हैं। तीनों पुतलों के एक-एक हाथ अंत तक बिना जले खड़े रहे। अंत में कारिंदों ने रस्सी खींचकर उन्हें गिराया, जिससे पूरे आयोजन की पवित्रता पर प्रश्नचिह्न लग गया।
श्रद्धालुओं ने जताई नाराजगी
स्टेडियम में मौजूद श्रद्धालुओं ने इस पर गहरी नाराजगी जताई। रामेन्द्र, जितेन्द्र और राजकुमार ने कहा कि दशहरा हमारे लिए बेहद पवित्र पर्व है, मगर इस बार पुतलों का निर्माण पौराणिक स्वरूपों का ध्यान रखकर नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि रावण भले बुराई का प्रतीक था, लेकिन वह चार वेदों का ज्ञाता भी था। कुंभकर्ण की लंबाई पौराणिक कथाओं में रावण से अधिक बताई गई है, मगर यहां इसका भी ध्यान नहीं रखा गया। मेघनाद और कुंभकर्ण को केवल रंगीन कागज और बांस की डंडियों से खड़ा कर दिया गया, जो परंपरा के साथ मजाक जैसा लगा।
लाखों खर्च, फिर भी रंगीन कागज का ढांचा
नगरपरिषद ने इन तीनों पुतलों के निर्माण के लिए ठेकेदार को करीब छह लाख रुपए का अनुबंध दिया था। बावजूद इसके, रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले बांस की खपच्चियों और रंगीन कागज का ढांचा भर साबित हुए। 60 फीट ऊंचाई का दावा किया गया, लेकिन इसमें भी सिर और मुकुट के हिस्से को केवल कागज से सजाया गया। श्रद्धालुओं के मन में सवाल रहा कि आखिर छह लाख रुपए का खर्च हुआ तो कहां।
आतिशबाजी भी आधे समय में सिमटी
दशहरे के दौरान आतिशबाजी का प्रदर्शन भी निराशाजनक रहा। 5 बजकर 29 मिनट पर शुरू होकर मात्र 5 बजकर 58 मिनट पर ही समाप्त हो गया। यानी केवल आधा घंटे की आतिशबाजी हुई, जबकि पूर्व में दावा किया गया था कि कम से कम एक घंटे तक आतिशबाजी होगी।
अनुबंध पर उठे सवालिया निशान
ठेकेदार द्वारा किए गए इस पूरे आयोजन पर अब सवालिया निशान लग गया है। श्रद्धालुओं ने कहा कि दशहरे का पर्व केवल आतिशबाजी और औपचारिकताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह परंपरा, पौराणिकता और आस्था से जुड़ा आयोजन है। ऐसे में पुतलों का निर्माण भी उसी गरिमा और पवित्रता को ध्यान में रखकर होना चाहिए था।

दशहरा के पर्व पर दहन की खास बातें
रावण के 10 में से 5 सिर अधजले रह गए
तीनों पुतलों के एक-एक हाथ जले ही नहीं
अंत में रस्सी से खींचकर गिराना पड़ा पुतलों को
चंद्रहास जैसे पौराणिक अस्त्र के बजाय हल्की कटार का ढांचा लगाया
पुतलों में केवल बांस और रंगीन कागज का प्रयोग
आधा घंटा ही चली आतिशबाजी, जबकि दावा था एक घंटे का
नगरपरिषद ने छह लाख का अनुबंध दिया, पर गुणवत्ता पर उठे सवाल